छछूंदरों से सीख कर बनाई जाएंगी दर्द निवारक गोलियां
७ जनवरी २०१२वैज्ञानिकों के मुताबिक जमीन के भीतर रहने वाला बिना बालों वाला छछूंदर हमें सिखा सकता है कि दर्द से कैसे निपटा जाए. जर्मन वैज्ञानिकों के मुताबिक अफ्रीका के बिना बालों वाले छछूंदर को कभी दर्द का एहसास ही नहीं होता है. यह कई सालों से वैज्ञानिकों की दिलचस्पी का कारण बने हुए हैं. इन छछूंदरों की उम्र काफी लंबी होती है और इन्हें कैंसर और अन्य घातक बीमारियां भी नहीं होती हैं.
ठंडे खून वाले इन छंछूदरों में एक खास किस्म का अम्ल होता है जो इन्हें दर्द से छुटकारा दिलाता है. पहले यह सोचा जाता था कि बिना बालों वाले छछूंदरों के तंत्रिका तंत्र में कोई गड़बड़ है जिसकी वजह से दर्द के संकेत इनके दिमाग तक नहीं पहुंच पाते हैं. लेकिन जर्मन वैज्ञानिकों के ताजे दावे ने शोध को और दिलचस्प बना दिया है. वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि हमेशा भूमिगत रहने वाले छछूंदरों पर प्रयोग कर वह इंसान के लिए दर्द निवारक दवाएं बना सकेंगे.
टीम ने बिना बाल वाले छछूंदरों पर इलेक्ट्रिक चार्ज का प्रयोग किया गया. वैज्ञानिकों ने पाया कि छछूंदरों में दर्द के संकेतों को दिमाग तक पहुंचाने वाली नसें एक अम्ल से बंद हो जाती है. इस वजह से उन्हें दर्द का एहसास ही नहीं होता. रिसर्च टीम को लगता है कि विषम परिस्थितियों में रहने की वजह से इन छछूंदरों ने ऐसा तंत्र विकसित किया है.
बर्लिन स्थित माक्स डेलब्रुएक सेंटर फॉर मोलेक्यूलर मेडिसिन के गैरी लेविन कहते हैं, "प्रोटीन या एसिड स्थानीय अनेस्थिटिक की तरह काम कर रहा है. जब आप डेनटिस्ट के पास जाते हैं तो वह आपके मसूडें में इजेक्शन लगाता है इससे सिर्फ दांत के आस पास का हिस्सा ही सुन्न होता है. ऐसा इसलिए होता है कि दवा दर्द का संचार करने वाले नसों को बंद कर देती है."
इस रिसर्च के सहारे जर्मनी की कई दवा कंपनियां अब ज्यादा सटीक दर्द निवारक बनाने की कोशिश कर रही हैं. माइंत्स विश्वविद्यालय में डॉक्टर फ्रैंक बर्कलाइन के मुताबिक इसका मतलब है कि दर्द कम करने वाली दवाइयों में यह खोज लगाए जाएं तो उनके मरीजों की जिंदगी काफी बेहतर हो सकेगी.
रिपोर्टः डैनियल बिशटन/ओ सिंह
संपादनः एम गोपालकृष्णन