छोटी मछलियों को मत मारो !
२३ जुलाई २०११छोटी-छोटी मछलियां महासागर में बड़ी भूमिका निभाती हैं. इन छोटी मछलियों को पकड़ने में कटौती करनी होगी ताकि समुद्री खाद्य ऋंखला बनी रहे. एक अंतरराष्ट्रीय संस्था ने इस बात पर जोर दिया है. छोटी मछलियां जैसे प्लवक, नमकीन स्वाद वाली एन्कोवी, सार्डीन, हेरिंग, मैकरेल, और केपेलीन पर बढ़ता मानव शोषण पर किसी का ध्यान नहीं है. छोटी मछलियों के मुकाबले बड़ी समुद्री मछलियां जैसी कोड, ट्यूना, स्वोर्डफिश या सैलेमन पर शोध होते रहते हैं.
राष्ट्रमंडल वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान, ऑस्ट्रेलिया के मुख्य लेखक और वैज्ञानिक टोनी स्मिथ कहते हैं, "ज्यादा छोटी मछलियों का पकड़ना मरीन इको सिस्टम पर गहरा प्रभाव डालता है." उनके मुताबिक जो तथ्य मिले हैं वे साइंस जर्नल में छपे हैं और उसके मुताबिक छोटी मछलियों के पकड़ने से समुद्री खाद्य ऋंखला बाधित हो सकती है. साथ ही मानव को खाद्य आपूर्ति भी प्रभावित हो सकता है. छोटी मछलियां एक निर्णायक भूमिका निभाती हैं क्योंकि वे सिर्फ छोटी प्लवक खाती हैं और बदले में व्हेल और बड़ी मछलियों का भोजन बनती हैं.
दुनिया भर में मछली उत्पादन में छोटी मछलियां का हिस्सा 30 फीसदी है और कई विकासशील देश के लोगों का मुख्य भोजन स्रोत होती हैं. वैज्ञानिकों ने कंप्यूटर मॉडल की मदद से शोध किया है. वैज्ञानिकों का सुझाव है कि छोटी मछली पकड़ने में तेजी से कटौती होनी चाहिए. उनकी राय में नो फिशिंग जोन भी बनाया जा सकता है. स्मिथ ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स को बताया कि कम मछली पकड़ने से शायद लंबी अवधि में आर्थिक लाभ भी हो सकता है, साथ ही दुर्लभ हो रही बड़ी मछलियों की आबादी बढ़ने में मदद होगी.
रिपोर्ट:रॉयटर्स/आमिर अंसारी
संपादन: एस गौड़