जब राजा ही रिफ्यूजी बन जाए
अमेजन के वर्षावनों में रहने वाले जैगुआर, मगरमच्छ और अजगरों पर झपट्टा मारते हैं. लेकिन अप्रैल आते ही ये बड़ी बिल्लियां चार महीने के लिए रिफ्यूजी बन जाती हैं.
शांत शिकारी
ब्राजील में अमेजन के घने वर्षावनों में जैगुआर तमाम खतरों के बीच रहते हैं. साल में एक बार बेहताशा बाढ़ आती है और जैगुआर को चार महीने तक पेड़ में रहने के लिए मजबूर कर देती है.
अलग अलग रंग
यह काले रंग वाला एक नर जैगुआर है. बाघ और शेर के बाद जैगुआर बिल्ली प्रजाति का तीसरा बड़ा जानवर है. वयस्क नर की लंबाई 185 सेंटीमीटर और वजन 100 किलोग्राम से ज्यादा हो सकता है. ये बिना डाल वाले पेड़ में भी बड़ी आसानी से चढ़ जाते हैं. वैसे भी अप्रैल में अमेजन में बाढ़ आने पर इन्हें पेड़ों की ही शरण लेनी पड़ती है.
मुश्किल में जैगुआर
बाढ़, मगरमच्छ और एनाकोंडा जैसे खतरों के बीच रहने वाले जैगुआर सबसे ज्यादा परेशान इंसान से हैं. खेती की वजह से लगातार अमेजन के वर्षावन काटे जा रहे हैं. ब्राजील में अब जैगुआरों के लिए सुरक्षित कुछ ही इलाके बचे हैं. इन्हीं में से एक है यह 600 वर्गकिमी में फैला मामिरोआ रिजर्व.
रहस्य से भरा जीवन
मामिरोआ रिजर्व में जैगुआरों पर रिसर्च करने फोटोग्राफर ब्रूनो कैली पहुंचे. ब्रूनो जानना चाहते हैं कि जैगुआर कई महीनों तक पेड़ों पर कैसे रहते हैं, इस दौरान वे क्या खाते हैं? वे कैसे अपने बच्चों की परवरिश करते हैं. प्रोजेक्ट के जरिए जैगुआरों के संरक्षण की नीति बनाई जाएगी.
नया अध्याय
रिसर्च प्रोजेक्ट से जुड़े इमिलियानो रमाल्हो कहते हैं, 2013 में पहली बार पता चला कि जैगुआर पेड़ों पर इतना लंबा वक्त गुजारते हैं. "पहले उनके इस व्यवहार के बारे में किसी को पता नहीं था."
तकनीक की मदद
इस काले जैगुआर के गले में वैज्ञानिकों ने जीपीएस कॉलर लगा दिया है. अब कंप्यूटर पर इसकी गतिविधि ट्रैक की जा सकेगी. इससे पता चलेगा कि बाढ़ के दौरान भोजन जुटाने के लिए वह क्या क्या करता है.
फुल बॉडी मेजरमेंट
रिसर्चर पकड़े गए जैगुआर के कद, वजन, जबड़े और दांतों का साइज और पैरों के निशान जमा करते हैं. बिल्ली प्रजाति के बाकी जानवरों की तरह जैगुआर भी अपने शिकार की गर्दन दबोचकर या तो हड्डी तोड़ देते हैं या फिर शिकार का दम घोंट देते हैं. जैगुआर एक बाइट में ऐसा करता है. ब्राजील में कहावत है कि "जैगुआर एक झटके में मार देता है."
इकोटूरिज्म से मदद
स्थानीय गाइड नावों के जरिए सैलानियों को पानी से लबालब मामिरौआ रिजर्व के भीतर ले जाते हैं. सब पेड़ पर बैठे जैगुआर की एक झलक पाना चाहते हैं. रिसर्च प्रोजेक्ट के तहत इलाके में इको टूरिज्म को बढ़ावा दिया जा रहा है. एक ट्रिप का खर्चा करीब 2,400 यूरो आता है.
दुलर्भ नजारा
जंगल में एक ऐसे जीव को खोजना जो छुपने में उस्ताद हो, ये आसान नहीं. लेकिन इस बार सैलानियों को एक शावक दिख गया. संरक्षणकर्ताओं को लगता है कि टूरिज्म से होने वाली आमदनी से स्थानीय लोगों को रोजगार मिलेगा और उनके नुकसान भी भरपाई भी हो सकेगी. स्थानीय लोग अक्सर इन बड़ी बिल्लियों से नाराज रहते हैं. जैगुआर अक्सर पालतू जानवरों पर भी हमला करते हैं. (स्वेन टोएनिंगेस/ओंकार सिंह जनौटी)