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जर्मनी को बाजार खोलने की सलाह

५ फ़रवरी २०१३

आर्थिक सहयोग और विकास संगठन ओईसीडी का कहना है कि जर्मनी को अपना श्रम बाजार अब कुशल मजदूरों के लिए भी खोल देना चाहिए. जर्मन सरकार ने जरूरी कदम उठाने की घोषणा की है.

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तस्वीर: picture-alliance/dpa

जर्मनी में सरकारी दफ्तरों में 30 लाख बेरोजगार दर्ज हैं, फिर भी 85,000 नौकरियां खाली पड़ी हैं. घर में बाथरूम बनाने वाले या हीटिंग लगाने वाले कारीगरी वाले पेशों में लोगों की जरूरत है, लेकिन प्रशिक्षित लोग नहीं हैं. जर्मन श्रम मंत्री उर्सुला फॉन डेआ लाएन का कहना है कि अस्पतालों में नर्सों और वृद्धों का देखभाल करने वाले कर्मचारियों की कमी है. छोटे और मझौले उद्यमों को उपयुक्त लोग नहीं मिल रहे हैं. जर्मन सरकार अब इसे बदलना चाहती है.

इंजीनियरों और पेशेवर लोगों के लिए जर्मन सरकार ने जून 2011 में एक पॉजीटिव लिस्ट जारी की. अगस्त 2012 में यूरोपीय देशों से उच्च प्रशिक्षित पेशेवरों के लिए ब्लू कार्ड भी लागू किया गया था. लेकिन कुशल मजदूरों के मामले में जर्मनी का श्रम बाजार अभी तक बंद रहा है. कानूनी ढांचे में परिवर्तन के जरिए इसे बदलने का इरादा है. जर्मन श्रम मंत्री ने कहा है कि जुलाई 2013 में एक नया रोजगार कानून लागू होगा. इसमें एक पॉजीटीव लिस्ट होगी जिसमें उन पेशों को शामिल किया जाएगा जिनमें कुशल कामगारों की जरूरत है.

बदल रहा है जर्मनी

ओईसीडी जर्मन श्रम बाजार के दोनों हिस्सों को अंतरराष्ट्रीय तौर पर खोलने की मांग कर रहा है. औद्योगिक देशों के संगठन के उप महासचिव इव्स लेटेर्मे का कहना है कि तभी आबादी में कमी की वजह से पैदा हो रही कामगारों की कमी को पूरा किया जा सकता है. उनका कहना है कि इस कमी को घरेलू बाजार में बेरोजगारों को प्रशिक्षण देकर या यूरोपीय संघ के आप्रवासियों को बढ़ावा देकर पूरा नहीं किया जा सकता.ओईसीडी का कहना है कि ईयू के दूसरे सदस्य देश भी आबादी में कमी की समस्या का सामना कर रहे हैं और कामगारों के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है.

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कुशल कारीगरों की जरूरततस्वीर: picture-alliance/dpa

लेटेर्मे ने पिछले सालों में जर्मन सरकार के कदमों की सराहना करते हुए कहा, "जर्मनी ने कई तरह के सुधार किए हैं जो सही दिशा में उठाए गए कदम हैं." उनका कहना है कि जर्मनी उच्च प्रशिक्षित पेशेवरों के लिए सबसे कम बाधाओं वाला देश है, लेकिन अभी भी आंकड़ों के हिसाब से अंतरराष्ट्रीय तुलना में जर्मनी में काम करने वाले आप्रवासी बहुत कम हैं. विदेशी कुशल कामगारों के आप्रवासन पर ओईसीडी की रिपोर्ट के अनुसार हर साल सिर्फ 25,000 लोग यूरोपीय संघ के बाहर से जर्मनी आते हैं जबकि ऑस्ट्रेलिया और कनाडा के आंकड़े इससे पांच से दस गुना ज्यादा हैं.

उद्यमों का संयम

स्थिति बदलने के लिए ओईसीडी ने कुछ सुझाव दिए हैं. लेटेर्मे का कहना है कि जर्मन उद्यम नए खुलेपन का बहुत सीमित लाभ उठा रहे हैं. यह बात जर्मनी के ओईसीडी की रिपोर्ट के लिए 1.100 उद्यमों के साथ हुए सर्वे में सामने आई है. सिर्फ बीस फीसदी कंपनियां विदेशी कामगारों की भर्ती के बारे में विचार कर रही है. छोटे और मझौले उद्यमों में धारणा यह है कि विदेशी कामगारों की भर्ती करना बहुत ही जटिल काम है. लेटेर्मे कहते हैं कि इस धारणा को बदलने की जरूरत है.

इसके अलावा भाषा की भी समस्या है. ओईसीडी का कहना है कि विदेशों में व्यावसायिक प्रशिक्षण कर रहे छात्रों के लिए जर्मन भाषा के विशेष कोर्स कराने की जरूरत है. इसके अलावा कमी का सामना कर रहे नर्स जैसे पेशों के लिए विशेष भाषा कोर्स की पेशकश की जरूरत है. लेटेर्मे कहते हैं, "बहुत से संभावित आप्रवासियों के लिए जर्मन भाषा एक बाधा है, क्योंकि बहुत से उद्यमों में जर्मन भाषा का अच्छा ज्ञान भर्ती की महत्वपूर्ण शर्त माना जाता है."

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हंगरी के प्रधानमंत्री के साथ लेटेर्मेतस्वीर: picture alliance/dpa

सिस्टम की टूटती बाधा

ओईसीडी की रिपोर्ट का मकसद जर्मनी के श्रम बाजार की संभावनाओं के बारे में जानकारी फैलाना है. वे कहते हैं, "सुधार रातोंरात लोगों के विचार नहीं बदलते." इसके लिए बहुत सारी जानकारी और पारदर्शिता जरूरी है. जर्मन श्रम मंत्री फॉन डेआ लाएन के अनुसार जर्मनी में विदेशियों की भर्ती को लेकर मानसिकता बदल रही है. "हम यह नहीं पूछते कि कोई कहां से आ रहा है, बल्कि यह कि वह क्या कर सकता है और क्या वह हमारे देश को आगे ले जा सकता है."

व्यावसायिक स्कूलों में खाली जगहों के भरने के लिए उनके मंत्रालय ने दस यूरोपीय देशों के साथ बात की है. श्रम मंत्री ढांचे को पारदर्शी बनाना चाहती हैं ताकि काम चाहने वाले और काम देने वाले एक दूसरे को जान सकें. जर्मनी में नौकरी चाहने वालों को जर्मन भाषा की उनके देश में शिक्षा देने और जर्मनी में इंटेसिव कोर्स के लिए 14 करोड़ यूरो खर्च किए जाएंगे.

श्रम मंत्री का कहना है कि पेशे से संबंधित जर्मन कोर्स करवाने के सुझाव को वह लागू करेंगी. उनका कहना है कि धीरे धीरे यह बात लोगों तक पहुंच रही है कि जर्मनी में काम है. इस सबूत जर्मनी आने और जाने वाले लोगों की बढ़ती संख्या है. वैसे अभी भी सबसे ज्यादा आप्रवासी पूर्वी यूरोप के देशों से आ रहे हैं. लेटेर्मे और फॉन डेआ लाएन के अनुसार खासकर पोलैंड से सबसे ज्यादा लोग आ रहे हैं जबकि दक्षिणी यूरोपीय देशों से बहुत कम जबकि वहां बेरोजगारी दर काफी ज्यादा है. कुल मिलाकर यह भावना बढ़ रही है कि यूरोपीय श्रम बाजार खुल गया है.

रिपोर्ट: काई-अलेक्जांडर शॉल्स/एमजे

संपादन: ए जमाल

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