जर्मनी देता रहेगा अफगानिस्तान का साथः वुल्फ
१७ अक्टूबर २०११मजारे शरीफ के सैन्य ठिकाने पर वुल्फ ने कहा, "जर्मन नागरिकों को इस बात का शुक्रगुजार होना चाहिए और देखना चाहिए कि यहां क्या हासिल किया जा रहा है." हालिया सर्वे बताते हैं कि ज्यादातर जर्मन अफगानिस्तान में सैनिक रखने के हक में नहीं हैं. हाल में बर्लिन में रेल नेटवर्क पर वामपंथियों की ओर किए गए हमलों की वजह भी कहीं न कहीं अफगान मिशन को बताया गया.
अफगान दौरे के दूसरे दिन मजारे शरीफ में पुलिस ट्रेनिंग सेंटर पर पहुंचे वुल्फ ने कहा, "देश में जारी सभी तरह की सैन्य और नागरिक सहायता की कोशिशों से यह सुनिश्चित होना चाहिए कि अफगान अपना भविष्य खुद के हाथों में ले सकें." विदेशी सेनाएं 2014 तक समूचे देश की सुरक्षा जिम्मेदारियां अफगान पुलिस और सेना को सौंप देंगी.
'पुराना दोस्त जर्मनी'
वुल्फ ने मजारे शरीफ में अमेरिकी सैनिकों से भी मुलाकात की. उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि अमेरिकियों को धन्यावाद कहा जाना चाहिए. बहुत से जर्मन सैनिकों ने मुझे बताया कि उनकी जान अमेरिकी हेलीकॉप्टरों की बदौलत बची जो उन्हें घायल होने पर युद्ध के मोर्चे से निकाल कर ले गए."
वुल्फ ने क्षेत्र में साझा अभियान की तारीफ की. उन्होंने नाजियों के चंगुल से जर्मनी की मुक्ति और फिर 1990 के दशक में अपने देश के एकीकरण में अमेरिका के योगदान का भी जिक्र किया.
इससे पहले रविवार को वुल्फ ने अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई से मुलाकात की और वादा किया कि जर्मनी अफगानिस्तान को नहीं छोड़ेगा, भले ही उसके सैनिक स्वदेश लौट जाएं. लेकिन उन्होंने अफगानिस्तान में भ्रष्टाचार, अपराध और नशीले पदार्थों के अवैध कारोबार को रोकने की जरूरत पर जोर दिया.
करजई ने वुल्फ को बताया कि जर्मनी अफगानिस्तान का पुराना दोस्त है. अफगान राष्ट्रपति ने कहा कि जर्मनी उन देशों में है जिन्होंने पिछले एक दशक के दौरान अफगानिस्तान को सबसे ज्यादा आर्थिक मदद दी है. उनके मुताबिक, "जर्मनी ने अफगानिस्तान के लोगों की सेवा की है और अफगानिस्तान के विकास और समृद्धि के लिए काम किया है. उसने अपने लोगों की खून पसीने की कमाई को अफगान लोगों की भलाई के लिए लगाया है."
अफगान मिशन का विरोध
अफगान राष्ट्रपति से मिलने के बाद वुल्फ ने अफगान सिविल सोसायटी के लोगों से भी मुलाकात की जिनमें मानवाधिकार कार्यकर्ता और खास कर महिला अधिकारों के लिए काम कर रहे लोग शामिल थे.
अफगानिस्तान में लगभग 5000 हजार जर्मन सैनिक हैं और इस साल के अंत में उनकी वापसी शुरू हो जाएगी. जर्मनी में अफगान मिशन की खूब आलोचना होती है. वुल्फ से पहले राष्ट्रपति होर्स्ट कोएलर को अफगान मिशन पर सरकार से मतभेदों के चलते इस्तीफा देना पड़ा था.
44 वर्षों में किसी जर्मन राष्ट्रपति का यह पहला अफगान दौरा है. इसका खास मकसद दिसंबर में जर्मनी में होने वाली अफगान कांफ्रेंस के लिए तैयारी करना भी है. बीते साल दिसंबर में जर्मन चांसलर ने अफगानिस्तान का दौरा किया था. करजई के साथ मुलाकात में वुल्फ ने कहा, "अफगानिस्तान और अंतरराष्ट्रीय समुदाय क्षेत्र में आतंकवाद और निर्दोष लोगों के खिलाफ हिंसा को खत्म करने की अपनी जिम्मेदारी से मुंह नहीं चुरा सकते."
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः वी कुमार