जर्मनों के बिना जर्मन फुटबॉल टीम
१२ जून २०१०दक्षिण अफ़्रीका में फीफा फुटबॉल विश्व कप 2010 चल रहा है. जर्मनी की तरफ से गई टीम का नाम ख़ास तौर पर लिया जा रहा है - मानुएल नौयर, जेरोम बोआटेंग, सरदार ताशी, पेर मेर्टेसाकर, सामी खदीरा, पियोत्र त्रोखोव्स्की, मेसूत ओएज़िल, लूकास पोडोल्स्की, हेलमूट काकाऊ और मीरोस्लाव क्लोज़े.
नौ खिलाड़ी जर्मन मूल के नहीं हैं. गोलकीपर नौयर और रक्षा पंक्ति में खेलने वाले मेर्टेसाकर जर्मन मूल के हैं. टीम के आधे से ज़्यादा खिलाड़ी आठ अलग अलग देशों से आते हैं. लेकिन कप्तान फिलिप लाम जर्मन हैं.
साओ पाउलो के हेलमुट
विश्व कप फुटबॉल में जर्मन टीम में खेल रहे हेलमुट काकाऊ से लोगों की बड़ी उम्मीदे हैं. काकाऊ का परिवार ब्राज़ीली शहर साओ पाउलो से है. काकाऊ के बारे में कहा जाता है कि इन्होंने विश्व कप टीम में जगह पाने के लिए जीतोड़ मेहनत की है. जर्मनी में सबसे पहले म्यूनिख के एक फुटबॉल क्लब ने उन्हें खेलने का मौका दिया. काकाऊ के जादू से बड़े क्लब भी ज़्यादा दिन दूर नहीं रह सके और अब वे मशहूर श्टुटगार्ट फुटबॉल क्लब में खेलते हैं. हेलमुट का कहना है, "मैं खुश हूं कि जर्मनी ने मुझे अपना लिया. मेरे सोचने का तरीका पूरी तरह से जर्मन है."
बाकी खिलाड़ियों के माता पिता बोस्निया-हर्जगोवीना, तुर्की, घाना. ट्यूनीशिया, स्पेन, नाइजीरिया और पोलैंड से हैं. अपने खेलों के यूनिफॉर्म में जर्मनी के राष्ट्रीय चिह्न चील को लगाकर वे जर्मनी को चौथी बार विश्व कप विजेता बनाना चाहते हैं.
कोई फर्क नहीं पड़ता!
मार्को मारिन का जन्म बोस्निया-हर्जगोवीना में हुआ. वे दो साल के ही थे जब उनके माता पिता युद्ध से बचते हुए फ़्रैंकफर्ट आ पहुंचे. बड़े होने पर मारिन ने जर्मन नागरिक बनने का फैसला किया. मारियो गोमेज़ बाडेन व्युर्टेंबर्ग में पैदा हुए लेकिन उनके पिता स्पेन के एक छोटे गांव के रहने वाले थे. लूकास पोडोल्स्की, मीरोस्लाव क्लोज़े और पियोत्र त्रोखोव्स्की तीनो पोलैंड में पैदा हुए और बचपन में उनके परिवार जर्मनी चले आए. जेरोम बाओटेंग के पिता मूल तौर पर घाना के हैं और सामी खदीरा के पिता ट्यूनीशिया से. डेनिस आओगो की रगों में नाइजीरिया का खून भी दौड़ता है.
सरदार ताशी और मेसूत ओएज़िल के माता पिता तुर्की मूल के हैं. लेकिन दोनों की पैदाइश जर्मनी की है. खदीरा का कहना है, "हम सब विश्व कप में सफलता चाहते हैं और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कौन कहां से आया है. हम एक टीम हैं."
जर्मन फुटबॉल संगठन डीएफ़बी 2010 की टीम से काफी खुश है. समाज में अलग मूलों के लोगों को साथ करने में खेल से अच्छा विकल्प और कोई नहीं है, और यह बात 2010 में जर्मन टीम ने साबित कर दी है. हालांकि चार साल पहले ही जर्मन टीम में अफ्रीकी मूल के जेरल्ड आसामोआह और पैट्रिक ओवोमोयेला नस्लवादी तत्वों का निशाना बने.
आगे बढ़ने का मौका
अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के अध्यक्ष ज़ाक रोग ने टीम के कोच योआकिम लोएव से कहा है कि समाज में खेल लोगों को एक साथ लाने में बड़ी भूमिका निभाता है. जर्मन शहर डार्मश्टाड्ट में मई में एक बैठक के दौरान उन्होंने कहा कि ओलंपिक खेलों के दो सबसे बड़े मक़सद हैं, समाज में लोगों को साथ लाना और अल्पसंख्यकों को समाज में जगह देना.
2008 में जर्मन सांख्यिकी विभाग के मुताबिक जर्मनी में हर पांचवां व्यक्ति विदेशी मूल का है. जर्मनी में एक करोड़ 59 लाख लोग विदेशी मूल के हैं जिनमें से लगभग 30 लाख लोग तुर्की से हैं. फुटबॉल एक ऐसा खेल है जिससे समाज में आगे बढ़ा जा सकता है क्योंकि फुटबॉल खेलना गरीब परिवारों के लिए भी मुश्किल नहीं है जैसा कि कई और खेलों में हो सकता है.
1954 के बाद जर्मनी कभी भी 20 साल से ज्यादा फीफा वर्ल्ड कप खिताब से दूर नहीं रहा है. आखिरी बार जर्मनी ने 1990 में यह कप जीता है. यानी 20 साल पहले. और हो सकता है कि विश्व के अलग अलग कोनों से आए इन खिलाड़ियों की वजह से जर्मनी इस साल विश्व कप जीत भी जाए!
रिपोर्टः स्रेको मैटिक/एम गोपालकृष्णन
संपादनः ए जमाल