जर्मन गिरजों में भारतीय पादरी
२२ अप्रैल २०११बॉन के नजदीक आल्फ्टर कस्बे के चर्च में ईस्टर के मौके पर अधिकतर वयोवृद्ध लोगों की भीड़ है. काफी लोग बेंच के साथ लगे ईयर फोन का इस्तेमाल कर रहे हैं, ताकि पादरी की बातें समझ सकें. वे जर्मन ही बोल रहे हैं, लेकिन दक्षिण भारत के लहजे में. पादरी जॉनी पाउलोस केरल से यहां आये हैं. वे कहते हैं कि जर्मनी में विदेशी पादरियों की सख्त जरूरत है. यहां काम करने के लिए उनकी खातिर खास कोर्स चलाए जाते हैं. इनसे यहां की संस्कृति और लोगों की मानसिकता समझने में भी मदद मिलती है. फादर पाउलोस कहते हैं कि यहां वे लोगों के बीच घर जैसा महसूस कर रहे हैं. बिल्कुल ही परायेपन का अहसास नहीं होता.
फादर पाउलोस जर्मनी में इस समय काम कर रहे 300 भारतीय पादरियों में से एक हैं. जर्मनी में पिछले 30 सालों में पादरियों की संख्या लगभग 25 हजार से घटकर 16 हजार हो चुकी है. पादरियों की कमी की वजह से खासकर देहाती इलाकों में चर्च बंद हो रहे हैं. इस कमी को दूर करने के लिए खासकर भारत, पोलैंड और लातिन अमेरिका से पादरी लाए जा रहे हैं. विकार जोसे थामारासिरी बॉन के बॉयल इलाके में तीन चर्च समुदायों के लिए जिम्मेदार हैं. वे कहते हैं कि शुरू में सब कुछ नया लगता था. जर्मन सीखना मुश्किल लग रहा था, खाने में मसाले नहीं होते थे, जाड़े में कड़ाके की सर्दी बर्दाश्त करनी पड़ती थी. लेकिन सबसे मुश्किल था पादरी के रूप में मुसीबत में पड़े लोगों को ढ़ाढंस दिलाना. प्रार्थना तो किताबों से पढ़ी जा सकती है, लेकिन जर्मन भाषा में लोगों से बात करना आसान नहीं होता था, साथ ही सांस्कृतिक अंतर भी आड़े आते थे.
इन समस्याओं से निपटने के लिये विदेशी पादरियों के लिए दो साल का एक विशेष कोर्स आयोजित किया जाता है. कोलोन कैथेड्राल के आर्चबिशप के जनरल विकार डोमिनिक श्वाडरलाप इस कार्यक्रम के साथ जुड़े हुए हैं. वे कहते हैं कि भारत के साथ सिर्फ भाषाई अंतर ही नहीं है, बल्कि यह एक दूसरा धार्मिक जगत है. इसलिए यहां आने वाले पादरियों को सबसे पहले जर्मनी के समाज में, यहां के सांस्कृतिक माहौल में गिरजे की भूमिका के बारे में जानकारी देनी पड़ती है. इस बीच कैथलिक गिरजे की ओर से बंगलौर में भी ऐसे प्रशिक्षण की व्यवस्था की गई है.
गिरजे में आने वाले श्रद्धालु भी भारत के पादरियों से खुश हैं. बॉन की अंगेला हॉफमान्न को तो उनका विदेशी उच्चारण भी पसंद है. वे कहती हैं, "हां, समझने में थोड़ी सी कठिनाई होती है. लेकिन इसकी वजह से हम पूरा ध्यान लगाकर सुनते हैं कि फादर क्या कह रहे हैं."
रिपोर्ट: प्रीति जॉन/उभ
संपादन: ए कुमार