जर्मन दादियों की बढ़ती मांग
१४ जुलाई २०११आउ पेयर व्यवस्था में टीन एज लड़कियां दूसरे देशों में आया का काम करती हैं. इस दौरान उनका रहना और खाना-पीना हो जाता है, मेजबान परिवार के साथ वे भाषा सीख जाती हैं और उन परिवारों को सस्ते में बच्चों की देखभाल करने वाला मिल जाता है. जर्मन अखबार अब युवा लड़कियों के बदले बुजुर्ग महिलाओं के आवेदनों के लिए विज्ञापन दे रहे हैं. "ऑस्ट्रेलिया में 4 और 2 साल की उम्र के दो बच्चों वाला परिवार तीन से छह महीनों के लिए जर्मन ग्रैंडमा चाहता है."
उत्तर जर्मनी के हैम्बर्ग शहर में एक एजेंसी चलाने वाली 50 वर्षीया मिशाएला हानजेन कहती हैं, "50 से 70 की बुजुर्ग महिलाएं अकसर युवा लोगों से अपने जीवन के अनुभव के कारण बेहतर होती हैं." हानसेन जरूरतमंद परिवारों को किराए की भावी ग्रैंडमा के साथ लाने में मदद करती हैं.
जर्मन मैरी पोपिंस का विदेशों में अच्छा नाम है. परिवार गंभीर और भरोसेमंद महिलाओं का काम देना चाहते हैं जो बच्चों की देखभाल करना जानते हैं और जरूरत पड़ने पर सख्ती भी कर सकते हैं.
एक नौवहन निर्माण कंपनी से रिटायर होने के बाद 61 वर्षीया आंके फेंट याद करती हैं कि जब वह अपने पहले मिशन पर स्पेन के लिए रवाना हुई थीं, तो उनके मन में संदेह थे. दक्षिणी स्पेन में एक जर्मन परिवार को दो बच्चों की देखभाल के लिए एजेंसी के विज्ञापन पर उनकी प्रतिक्रिया थी कि वह वहां क्या करेंगी. लेकिन एक साल बाद वह उन दिनों को प्यार से याद करती हैं. "बहुत मजेदार जिंदगी थी वहां मेरी. मेरा काम था 13 और 16 साल के बच्चों को स्कूल ले जाना और वहां से वापस लाना." उस परिवार के साथ वह बहुत घुल मिल गईं और अब जब भी माता पिता को कहीं काम से बाहर जाना होता है तो वे आंके को बच्चों की देखभाल के लिए बुला लेते हैं.
जर्मनी के सुदूर दक्षिण में स्थित बवेरिया में रिटायर्ड एयर हॉस्टेस एंब्योर्ग एल्स्टर याद करती हैं कि हिमपात के समय को, जो रोमांटिक तो था लेकिन सर्दियों में बहुत कुछ करने को नहीं होता. 55 की उम्र में वे रिटायर हो चुकी थीं. उन्होंने हैम्बर्ग में चार बच्चों की देखभाल करने की एक आउ पेयर नौकरी कर ली. बच्चे 3, 8,10 और 12 साल के थे. वह कहती हैं, "आरंभ में शोरगुल को सहना बड़ा मुश्किल था लेकिन अंत में यह भावना महत्वपूर्ण थी कि आपकी अब भी जरूरत है."
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: ए कुमार