जर्मन पुलिस में आप्रवासियों की बढ़ती मांग
२८ जुलाई २०११जर्मनी में पुलिस विभाग में विदेशी मूल के लोगों की भर्ती अनिवार्य होने जा रही है. सरकार चाहती है कि हर चार में से एक पुलिसकर्मी विदेशी मूल का हो. पुलिस ट्रेड युनियन के अध्यक्ष बैर्नहार्ट विटहाउट ने बताया, "हम चाहते हैं कि हम ज्यादा से ज्यादा विदेशी मूल के लोगों को पुलिस में भर्ती कर सकें और इसके लिए हमें बहुत काम करना होगा." विटहाउट ने कहा कि यह इसलिए जरूरी है ताकि पुलिसकर्मियों में अलग अलग संस्कृति के लोगों के साथ काम करने की समझ पैदा हो और इसलिए भी क्योंकि जल्द ही पुलिस विभाग के बहुत से लोग सेवा निवृत होने वाले हैं, इसलिए उन नौकरियों को भी जल्द से जल्द भरने की जरूरत है. सरकार का मानना है कि विदेशी मूल के लोग अक्सर पुलिस और अन्य अधिकारियों से बात करने में हिचकिचाते हैं, लेकिन अपने ही जैसे लोगों को उन पदों पर देख कर वे उनसे खुल कर बात कर सकेंगे. साथ ही पुलिस विभाग में नौकरी मिलने से समेकन की भावना आ सकेगी.
जर्मन भाषा जरूरी
कई राज्यों ने आवेदन पत्र लेना भी शुरू कर दिया है, लेकिन बहुत से आवेदन पत्रों को इसलिए स्वीकार नहीं किया जा सकता क्योंकि बहुत से लोगों को ठीक ठाक जर्मन नहीं आती. जर्मनी में आम तौर पर हर नौकरी के लिए जर्मन भाषा का आना जरूरी होता है, और पुलिस विभाग में यह और भी ज्यादा जरूरी हो जाता है. ट्रेड युनियन ने साफ किया है कि विदेशी मूल के लोगों की जरूरत होने का मतलब यह नहीं है कि विभाग के मानदंडों में कोई फेर बदल किया जाएगा.
लोगों तक यह संदेश पहुंचाने के लिए अखबारों और इश्तेहारों की मदद तो ली ही जा रही है, साथ ही पुलिस विभाग से लोग स्कूलों में जा कर भी यह समझा रहे हैं कि समाज में घुलना मिलना कितना जरूरी है और आपस के भेद भाव मिटाने के लिए यह कदम कितना महत्त्वपूर्ण है. राज्य सरकारों को उम्मीद है कि इस कदम से जर्मनी में रह रहे विदेशी मूल के लोगों को समाज में घुलने मिलने में मदद मिल सकेगी.
बदलती छवि
एक समय था जब जर्मनी में 'आउसलेंडरफाइंडलिषकाइट' शब्द बहुत प्रचलित था. इस जर्मन शब्द का मतलब है विदेशियों से बैर. पिछले कई सालों में जर्मनी ने अपनी छवि बदलने के प्रयास किए हैं. देश में इंजीनियरों और टीचरों की कमी पूरी करने के लिए भी जर्मनी ने विदेशियों के लिए अपने दरवाजे खोले हैं. इसके बाद भी देश में रह रहे आप्रवासियों के लिए समाज का हिस्सा बनना एक बड़ा मुद्दा रहा है.
60 और 70 के दशक में तुर्की से बड़ी संख्या में लोगों को 'गेस्ट वर्कर' के तौर पर यहां बुलाया गया और उन्हें नौकरियां दी गईं. हालांकि जर्मनी चाहता था कि कुछ सालों बाद उन्हें वापस भेज दिया जाए, लेकिन एक दशक तक यहां रह चुके तुर्क वापस जाने की जगह यहीं पर बस गए. आज भी ये लोग समाज में पूरी तरह घुले मिले नहीं हैं. जर्मन और तुर्क लोगों में अक्सर अन-बन लगी रहती है.
रिपोर्ट: ईशा भाटिया
संपादन: महेश झा