जर्मन मूलकण प्रयोगशाला डेज़ी
७ फ़रवरी २०१०दुनिया किस चीज़ से बनी है - सदियों से यह सवाल पूछा जाता रहा है. आज भी यह पार्टिकल फ़िज़िक्स, यानी मूलकण भौतिकी का मूल विषय है. इसके अंतर्गत पता लगाने की कोशिश की जाती है कि किन मौलिक तत्वों से पदार्थ बनता है.
हवाई अड्डे से शुरुआत
पचास साल पहले जब यहां निर्माण का काम शुरू किया गया, तो यह एक ख़ाली हो चुका सैनिक हवाई अड्डा था. यहां 300 मीटर लंबी एक सुरंग बनायी जा रही थी, जिसमें एक नई मशीन फ़िट की जानी थी - एक एक्सिलरेटर यानी त्वरक. इसको नाम दिया गया डॉयचे इलेक्ट्रोनन सिंक्रोटोन, संक्षेप में डेज़ी, और इसके साथ विज्ञान की एक नई शाखा, पार्टिकल फ़िज़िक्स अर्थात मूलकण भौतिकी के क्षेत्र में अनुसंधान शुरू किया गया. इस क्षेत्र में शुरू से ही अमेरिकियों का दबदबा था, लेकिन यूरोप भी सामने आने लगा था. उन दिनों की याद करते हुए भौतिकशास्त्री एरिष लोअरमान कहते हैं "सेर्न के निर्माण के ज़रिये यूरोप भी सामने आने की कोशिश कर रहा था. और फिर डेज़ी का निर्माण किया गया."
सेर्न, यानी परमाणु अनुसंधान के लिए यूरोपीय संगठन के फ़्रांसीसी नाम का संक्षिप्त रूप. यह जेनेवा के निकट स्थित है. वहां भौतिक शास्त्र के सैद्धांतिक पक्षों पर अनुसंधान किया जाता है और यह संस्थान अपने विशाल पार्टिकल एक्सिलरेटेर के लिए मशहूर है. जर्मनी में भी ऐसे एक केंद्र की स्थापना के लिए उस समय परिस्थितियां काफ़ी अनुकूल थीं. लेकिन इस एक्सिलरेटर की क़ीमत पड़ रही थी दस करोड़ डॉएचमार्क - उस समय जर्मनी के लिए एक विशाल राशि. डेज़ी के पहले डाइरेक्टर विलिबाल्ड येंचके को भी यह पता था कि यह राशि जुटाना बेहद मुश्किल होगा. लोग उस समय सैद्धांतिक अनुसंधान की परियोजनाओं के लिए ऐसी रकम खर्च करने के आदी नहीं थे. हमें अपनी परियोजना के बारे में पूरी तरह आश्वस्त होना था, नहीं तो आगे बढ़ने का कोई तुक नहीं था.
विलिबाल्ड येंचके परमाणु उर्जा मंत्रालय को कायल कर सके, और 18 दिसंबर, 1959 को हैम्बर्ग के नगरपालिका भवन में डेज़ी की स्थापना के अनुबंध पर हस्ताक्षर किया गया. डेज़ी की स्थापना का अनुबंध हो गया लेकिन समस्याएं ख़त्म नहीं हुईं. एरिष लोअरमान बताते हैं कि "हम तो इस क्षेत्र में बिल्कुल नौसिखिए थे. हममें उत्साह था, आदर्श था."
विदेश से ली जानकारी
लोअरमान और उनके साथियों को विदेश से जानकारी हासिल करनी पड़ी, कि एक्सिलरेटर कैसे बनाया जाता है. और वे एक कुशल मशीन बनाने में कामयाब रहे. 1964 के आरंभ में यहां पहले फ़ास्ट इलेक्ट्रॉन और प्रोटोन के साथ प्रयोग शुरू किए गए, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर के रहे. इस कामयाबी के आधार पर डेज़ी के वैज्ञानिकों को और बड़े व कुशल एक्सिलरेटरों के निर्माण का मौक़ा मिला. इनमें से सबसे बड़ा था हेरा, ज़मीन के नीचे 6 किलोमीटर लंबी सुरंग में एक एक्सिलरेटर, जहां इलेक्ट्रॉन और प्रोटोन एक दूसरे से टकराते हैं. इसे दुनिया की एक अनोखी मशीन माना जाता है. "अब तक ऐसी मशीन कभी नहीं बनी थी. यह बिल्कुल नई बात थी. लेकिन कई सालों की तैयारी के बाद हम विश्वास दिला सके, कि हम इसे बना सकते हैं."
इसे बनाने में सात साल लग गए. फिर नवंबर, 1990 में तत्कालीन विज्ञान और अनुसंधान मंत्री हाइंत्ज़ रीज़ेनहूबर ने उसका उद्घाटन किया. "देवियों और सज्जनों, यह एक निर्णायक मुहुर्त है. इस बटन को दबाने के साथ ही हीलियम बहने लगा. एक अच्छी शुरुआत की शुभकामनाएं."
उस समय के एक अरब जर्मन मार्क से बनी हेरा 17 साल तक काम करती रही. उससे प्रोटोन की जटिल अंदरूनी बनावट के बारे में कुछ नई जानकारी मिली. समस्या यह है कि ऐसे एक्सिलरेटर बहुत महंगे होते हैं, इसलिए विभिन्न संस्थानों के बीच सहयोग बहुत ज़रूरी है.
प्रयोगों में सहयोग
डेज़ी इन दिनों विदेशी संस्थानों के प्रयोगों में भी हाथ बंटा रहा है, मसलन जेनेवा के सेर्न संस्थान में. लेकिन हैम्बर्ग में भी नई मशीनें बनाई जा रही हैं. सन 2007 के मध्य में यहां यूरोपीय एक्स रे लेज़र मशीन का निर्माण शुरू किया गया. यह सन 2014 से काम करने लगेगी. पार्टिकल फ़िज़िक्स से परे भी डेज़ी के प्रयोग हो रहे हैं, मसलन सामग्री अनुसंधान, आणविक जीवविज्ञान या नैनो टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में.
रिपोर्ट- फ्रांक ग्रेटेल्युशन / उज्ज्वल भट्टाचार्य