जर्मन लोगों ने संभाला कुदरत की देखभाल का जिम्मा
२४ सितम्बर २०१०जर्मनी की राजधानी बर्लिन में स्थानीय लोगों ने इस काम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेना शुरू कर दिया है. लोग अपने घर के आसपास के पेड़ पौधों में नियमित रूप से पानी दे रहे हैं और इनकी देखभाल की जिम्मेदारी पूरी संजीदगी से निभा रहे हैं. हाल ही में नगर निगमों को मिलने वाले सरकारी फंड में कटौती के कारण स्थानीय अधिकारियों ने बागवानी की जिम्मेदारी से स्वयं को अलग कर लिया.
इससे पेड़ पौधों की सेहत पर असर पड़ता देख लोगों ने स्वप्रेरणा से इस जिम्मेदारी को अपने कंधों पर लेने का फैसला किया. हालांकि प्रशासन ने इस पहल का खुलकर स्वागत नहीं किया है. उनका कहना है कि लोग पेड़ों की निगरानी के नाम पर इन्हें अपने आवासीय क्षेत्र में भी शामिल करने से नहीं हिचक रहे हैं.
जर्मनी में बर्लिन सहित अन्य शहरों में पब्लिक पार्कों के रखरखाव के लिए मालियों को नौकरी पर नहीं रखा गया है. इसके अलावा पार्कों की देखभाल के लिए फंड भी काफी कम है. इस साल गर्मियों में बर्लिन के पार्कों में पानी न मिल पाने के कारण पेड़ों का बुरा हाल हो गया. रिहायशी इलाकों में घरों के आसपास पेड़ों पर धूल जमा होने और गंदगी बढ़ने से परेशान होकर लोगों को खुद साफ सफाई का जिम्मा लेना पडा़.
अब लोगों को पेड़ों को पानी देते और खरपतवार हटाकर अपने इलाके की हरियाली बरकरार रखते सुबह शाम आसानी से देखा जा सकता है. सरकार के पर्यावरण संरक्षण महकमे ने भी लोगों की पहल की शुरुआत को स्वीकार किया है. विभागीय अधिकारी हर्बर्ट लोहनर का कहना है कि पिछले कुछ सालों में पर्यावरण संरक्षण के बारे में लोगों में जागरुकता बढ़ी है. हालांकि लोहनर ने बताया कि इस काम में लोगों के रुचि लेने के कारण आस पड़ोस के लोगों में आपसी मतभेद बढ़ने की भी बातें सामने आई हैं. उन्होंने 1990 का वह समय याद दिलाया जब बर्लिन के एक इलाके में लोगों ने अपनी मर्जी से सड़क के किनारे सघन वृक्षारोपण शुरू कर दिया था. बाद में इसे "गुरिल्ला गार्डनिंग" का नाम दिया गया. बाद में गैरजरूरी पेड़ों के लग जाने के कारण इन्हें हटाना पड़ा.
लोहनर के मुताबिक हालांकि अब पहले जैसी स्थिति नहीं है. लोग बागवानी के काम में अधिकारियों की मदद भी ले रहे हैं और अधिकारी लोगों को गलत पेड़ लगाते देख कर उन्हें ऐसा करने से रोकते भी हैं.
रिपोर्टः डीपीए/निर्मल
संपादनः ए कुमार