जीएसएलवी नाकामी भारत के लिए झटका
२५ दिसम्बर २०१०वरिष्ठ अंतरिक्ष वैज्ञानिक प्रोफेसर यशपाल ने विफल प्रक्षेपण के बाद कहा, "यह बेहद दुखद है. मुझे लगता है कि प्रक्षेपण के शुरुआती चरणों में ही कुछ हो गया हो. मैंने पहले ऐसा कभी नहीं सुना क्योंकि हमें अतीत में काफी सफलताएं मिली हैं."
GSLV-F06 लॉन्च व्हीकल श्रीहरिकोटा में सतीश धवन स्पेस सेंटर से प्रक्षेपण के कुछ ही देर बाद हवा में फट गया. प्रोफेसर यशपाल के मुताबिक सैटेलाइट की नाकाम शुरुआती चरणों में ही सामने आ गई, दूसरे चरण तक जाने का मौका ही नहीं मिला. कुछ न कुछ तो गलती हुई होगी.
प्रोफेसर यशपाल का कहना है कि डाटा उपलब्ध होगा और उसके अध्ययन से वैज्ञानिक निश्चित रूप से नाकामी का कारण पता लगा पाने में सफल होंगे. उनका कहना है कि लॉन्च व्हीकल में यह दुर्घटना अपने आप में एक अजीब है क्योंकि सैटेलाइट का भारत में कई बार परीक्षण किया गया और उसकी सफलता की दर 100 फीसदी है. "लॉन्च व्हीकल में मुश्किल मूलभूत सिद्धांतों से जुड़ी नहीं लगती. यह उससे बड़ा मसला है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है. यह एक तरह की दुर्घटना है."
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के पूर्व इंजीनियर मदन लाल ने कहा है कि रूस के क्रायोजेनिक इंजन के चरण में नहीं बल्कि लॉन्च व्हीकल के पहले चरण में ही कुछ तकनीकी दिक्कतें रही होंगी. "क्रायोजेनिक चरण सैटेलाइट प्रक्षेपण का तीसरा स्तर होता है. यह नाकामी क्रायोजेनिक स्तर से जुड़ी हुई नहीं लगती है."
मदन लाल ने बताया कि भारत बार बार लॉन्च व्हीकल के शुरुआती चरणों में सफल रहा है और इसरो वैज्ञानिकों के लिए यह मुश्किल की बात नहीं है. इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्ट्डीज एंड एनालिसिस के रिसर्च फैलो अजय लेले ने इसे इसरो के लिए बड़ा झटका बताया है. हालांकि उन्होंने उम्मीद जताई है कि वैज्ञानिक फिर से सैटेलाइट लॉन्च करने में सफल हो जाएंगे.
"यह इसरो के लिए बेहद अहम अभियान है. इसरो ने कम ही बार इतने भारी सैटेलाइट का प्रक्षेपण किया है लेकिन सैटेलाइट प्रक्षेपण में विफलता आपके काम का हिस्सा होती है."
घरेलू तौर पर तैयार रॉकेट GSLV के लिए सात प्रक्षेपणों में यह तीसरी नाकामयाबी है. वैज्ञानिकों के मुताबिक शनिवार को प्रक्षेपण के दौरान इसरो को विफलता की आशंका बिलकुल नहीं थी और वे इसे नियमित प्रक्षेपण मान कर चल रहे थे.
रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़
संपादन: ओ सिंह