जो बिजली के बल्बों से दुनिया बनाते हैं
१५ अक्टूबर २०१०चंदननगर में पांच हजार से ज्यादा ऐसे बिजली कारीगर हैं जो दुनिया की किसी भी घटना और जगह को बिजली की सजावट के जरिए सजीव बनाने में सक्षम हैं. हुगली जिले में इनकी तादाद 40 हजार से ज्यादा है. बंगाल की पूजा के मौके पर इन कारीगरों का हुनर देखने को मिलता है.
पूरे भारत पर जब अंग्रेजों का शासन था तब चंदननगर का शासन फ्रांसीसियों के हाथों में था. फ्रांस की सेना के कमांडर डुपलेसिस वर्ष 1673 में पहली बार इस शहर में पहुंचे थे और तबसे 1947 तक चंददनगर को फ्रांस की कॉलोनी के तौर पर जाना जाता था. वर्ष 1950 में फ्रांस ने औपचारिक रूप से इस शहर को भारत सरकार को सौंप दिया. इस दौरान कई बार अंग्रेजों ने इसे अपने कब्जे में ले लिया था. लेकिन बाद में समझौते के तहत चंदननगर को फिर फ्रांस को सौंप दिया गया..
फ्रांस की तत्कालीन सत्तारुढ़ पार्टी के अनुमोदन के बाद चंदननगर 2 अक्तूबर 1955 को पूरी तरह भारत का हिस्सा बन गया. चंदननगर पर फ्रांसीसी आधिपत्य की झलक अब भी नजर आती है. फ्रांस के लोगों ने वहां अपना व्यापार शुरू किया. हुगली की तट पर होने की वजह से माल से लदे जहाजों की आवाजाही में काफी सहूलियत होती थी. वर्ष 1915 में पहले विश्वयुद्ध में चंदननगर के 20 लोगों ने फ्रांस के समर्थन में लड़ाई में हिस्सा लिया था.
लगभग दो सौ साल तक फ्रांसीसी उपनिवेश रहे चंदननगर में क्या बिजली की सजावट की यह कला फ्रांसीसियों की ही देन है? इस सवाल का कोई ठोस जवाब नहीं मिलता. ये कारीगर पूरी दुनिया में साल भर के दौरान घटने वाली घटनाओं को बिजली के बल्बों के जरिए पूजा पंडाल में सजीव कर देते हैं. वह चाहे 9/11 हो या मुंबई में आतंकवादी हमलों की घटना, बिजली की रंग-बिरंगी रोशनियों के जरिए वह जीवंत हो उठती है.
कई पंडालों में तो बिजली की सजावट का खर्च लाखों में होता है. महानगर के तमाम पंडालों में बिजली की सजावट का काम इन कारीगरों के ही जिम्मे होता है. सिर्फ पश्चिम बंगाल ही नहीं, बल्कि देश के दूसरे हिस्सों में भी इस काम के लिए चंदननगर के कारीगरों को ही बुलाया जाता है.
चंदननगर के इन कारीगरों की कल्पना शक्ति लाजवाब है. ये लोग पूरे साल घटने वाली घटनाओं पर पैनी नजर रखते हैं. उसके बाद उन प्रमुख घटनाओं को बिजली के बल्बों के जरिए सजीव करने का खाका तैयार किया जाता है और फिर उसे अमली जामा पहनाया जाता है. चंदननगर के इन कारीगरों को सिर्फ पूजा पंडालों की सजावट ही नहीं बल्कि शादी-ब्याह और दूसरे समाराहों में की सजावट का भी जिम्मा सौंपा जाता है.
चंदननगर के ऐसे ही एक कारीगर परेश पाल कहते हैं, "हम मार्च से ही पूजा पंडालों में बिजली की सजावट की थीम पर काम शुरू कर देते हैं. विभिन्न घटनाओं और विश्वप्रसिद्ध इमारतों को बिजली के छोटे-छोटे रंगीन बल्बों के जरिए जीवंत बनाने का काम काफी मेहनत भरा है. इसके लिए लंबी तैयारी की जरूरत पड़ती है."
ये कारीगर भले ही मशहूर हों लेकिन आय के नाम पर इनके पास ज्यादा साधन नहीं हैं. पाल बताते हैं कि सिर्फ पूजा के समय ही एक-एक कारीगर 25 से 50 हजार रुपए की कमाई कर लेता है. इसके अलावा पूरे साल थोड़ा-बहुत काम मिलता रहता है. साल के खाली दिनों में रोजी-रोटी चलाने के लिए हम दूसरे काम करते हैं.
इन कारीगरों का कहना है कि दुर्गा पूजा में बिजली की सजावट की लगातार बढ़ती अहमियत ने ही शायद उनके पुरखों को इस कला में माहिर बना दिया होगा. दुर्गा पूजा के दौरान जहां पूजा समितियों में बिजली की सजावट के मामले में एक-दूसरे को पछाड़ने की होड़ रहती है, वहीं इन कारीगरों में भी इसकी होड़ मची रहती है कि सबसे चर्चित सजावट किसकी होगी. अब विभिन्न कंपनियों ने बिजली की सजाटव के लिए संबंधित पंडाल और कारीगरों को पुरस्कार देना शुरू किया है. यह रकम भी लाखों में होती है. इस होड़ से हर गुजरते साल के साथ चंदननगर के यह कारीगर अपने काम को और जीवंत बनाने के लिए दिन-रात कड़ी मेहनत में जुटे रहते हैं.
एक कारीगर शुभेंदु पाल बताते हैं कि अब तकनीक की सहायता से उनको बेहतर काम करने में काफी मदद मिल जाती है. पहले सजावट का जो खाका हाथ से कागज और पेंसिल जरिए बनाया जाता था, वही अब कंप्यूटरों के जरिए और सटीक बन जाता है.
रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता
संपादनः वी कुमार