टीका अभियान रोक सकता है हैजे को फैलने के बाद भी
७ फ़रवरी २०११दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में स्थित अंतरराष्ट्रीय टीका संस्थान (आईवीआई) द्वारा कराए गए एक अध्ययन से यह बात सामने आई है. अध्ययन का प्रकाशन पब्लिक लाइब्रेरी ऑफ साइंस की ऑनलाइन पत्रिका में किया गया है. विशेषज्ञों का कहना है कि इस अध्ययन के नतीजे खासकर हैती में हैजा फैलने की रोशनी में महत्वपूर्ण है. हैजे को गरीबों की बीमारी कहा जाता है.
इस अध्ययन के प्रकाशन के सिलसिले में लिखे गए संपादकीय में मैसाच्युसेट्स जनरल हॉस्पिटल के फीजिशियन एडवर्ड टी रायन ने लिखा है, "हाल में हैती, पाकिस्तान और जिम्बाब्वे में हैजे का फैलना दिखाता है कि हैजे के खिलाफ वर्तमान कार्रवाई योजना विफल हो रही है." रायन का कहना है कि सभी सहमत हैं कि हैजे को पूरी तरह रोकने के लिए विश्व की सारी आबादी के लिए साफ पानी और स्वच्छता की जरूत है, लेकिन हकीकत यह है कि आने वाले कई दशकों तक यह लक्ष्य पूरा नहीं होगा.
हर साल तीस से पचास लाख लोग हैजे का शिकार होते हैं. संक्रमित होने पर डायरिया और पानी की कमी के लक्षण दिखते हैं. यदि इनका इलाज न किया जाए तो कुछ ही घंटों के अंदर मरीज की मौत हो सकती है.
हैजे पर एक अध्ययन में डांग डुक आंह और उनके साथियों ने वियतनाम में तीन साल पहले हैजा फैलने के बाद खाने वाली दवा दिए जाने के केस कंट्रोल स्टडी का जिक्र किया है. इस दवा की सुरक्षात्मक क्षमता 76 फीसदी थी. अध्ययन के लेखकों ने इस पर और शोध किए जाने की सलाह दी है.
एक अन्य अध्ययन में अंतरराष्ट्रीय टीका संस्थान के एक दल ने रिएक्टिव टीका अभियानों के लाभ का आकलन किया है. उन्होंने हैजे के फैलने पर उपलब्ध सूचनाओं का इस्तेमाल कर रोके जाने वाले मामलों का अध्ययन किया. वे यह मानकर चले कि 50 से 75 फीसदी लोग इस अभियान में भाग लेंगे और हैजा फैलने की रिपोर्ट आने के बाद लोगों को टीका देने में 10 से 33 सप्ताह लगेंगे. अध्ययन के लेखकों ने पाया कि टीका अभियान देर से शुरू करने के बावजूद महत्वपूर्ण संख्या में लोगों को बचाया जा सकेगा. उनका कहना है कि देने और लेने वाले देशों में फैसला करने वालों को हैजे के खिलाफ रिएक्टिव टीका के महत्व का भरोसा दिलाना होगा.
रिपोर्ट: डीपीए/महेश झा
संपादन: एन रंजन