ट्यूनीशिया में अंतरिम सरकार बनी
१७ जनवरी २०११ट्यूनीशिया की अंतरिम सरकार में पहली बार विपक्षी राजनीतिज्ञों को भी शामिल किया गया है, लेकिन पुरानी सरकार के छह मंत्री नई सरकार में भी शामिल हैं. उनमें प्रधानमंत्री मोहम्मद गनूची के अलावा उनकी सरकार के विदेश मंत्री, रक्षा मंत्री और गृह मंत्री शामिल हैं. मंत्रिमंडल में शामिल विपक्षी राजनीतिज्ञों में मार्क्सवादी पार्टी पीडीपी के अहमद नजीब चेबी भी शामिल हैं.
राजनीतिक बंदी रिहा
नई सरकार ने अपना पहला फैसला सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा करने का लिया. इसके अलावा अंतरिम सरकार ने कहा है कि जितनी जल्दी होगा इस बात की जांच की जाएगी कि क्या अब तक प्रतिबंधित पार्टियों को वैध करना संभव है.
बेन अली का पद छोड़कर निर्वासन में सउदी अरब जाना सभी के लिए आश्चर्यजनक था. राष्ट्रव्यापी सरकार विरोधी प्रदर्शनों के बावजूद 1987 से सत्तारूढ़ बेन अली की सत्ता पर पकड़ अभी भी मजबूत लग रही थी. सरकार और मीडिया का एक हिस्सा प्रदर्शनों को गैर राजनीतिक बता रहा था लेकिन धीरे धीरे लोगों का प्रदर्शन सत्ता विरोधी प्रदर्शन में बदलता जा रहा था. प्रदर्शनकारी सुरक्षा बलों के दमन के आगे भी झुकने को तैयार नहीं थे.
एक आत्मदाह ने बदली सरकार
प्रदर्शनों की शुरुआत 17 दिसंबर 2010 को तब हुई 26 वर्षीय छात्र मोहम्मद बुआजीजी ने आत्मदाह कर लिया. वह आईटी पढ़ता था और कोई काम नहीं मिलने के कारण सब्जी बेचकर गुजारा करता था. चूंकि उसके पास सब्जी बेचने का लाइसेंस नहीं था, उसका सामान जब्त कर लिया गया और थाने पर उसके साथ बदसलूकी की गई. विरोध जताने के लिए उसने ट्यूनिस के पास स्थित शहर सीदी बूजिद में एक सरकारी इमारत के सामने आत्मदाह कर लिया.
4 जनवरी 2011 को एक अस्पताल में उसकी मौत के बाद विरोध और भड़क गया. कई शहरों के अलावा एक सप्ताह बाद राजधानी में भी हिंसक प्रदर्शन हुए. राष्ट्रपति बेन अली ने गृहमंत्री को हटाकर और बंदियों को रिहाकर स्थिति को संभालने की कोशिश की. लेकिन सेना को भेजकर दृढ़ता का परिचय देने का भी प्रयास किया. प्रदर्शनकारियों पर बलप्रयोग से मना करने पर सेना प्रमुख को हटा दिया गया, लेकिन बेन अली स्थिति संभाल नहीं पाए और अंततः देश छोड़कर चले गए.
लोकतंत्र की सुगबुगाहट
संसद प्रमुख फौद मबाजा ने अपने को अंतरिम राष्ट्रपति घोषित किया है और गनूची को अंतरिम सरकार बनाने को कहा है. गनूची 12 साल से प्रधानमंत्री हैं, उन्हें बेन अली का समर्थक माना जाता है. लेकिन संविधान के अनुसार उन्हें 60 दिनों के अंदर नए चुनाव कराने होंगे. लोगों को लोकतांत्रिक शुरुआत की उम्मीद है. लेकिन यह इस बात पर निर्भर करेगा कि सेना राजनीति से दूर रहे और बेन अली के समर्थकों का सत्ता संरचना पर शिंकजा कमजोर हो, उनका राजनीतिक प्रभाव कम हो.
रिपोर्ट: एजेंसियां/महेश झा
संपादन: वी कुमार