डीएनए की भी जासूसी
१४ जुलाई २०१३दुनिया भर के देश लोगों का डीएनए जमा करने में लगे हैं. सरकारों की दलील है कि ऐसा आतंकवाद से लड़ने के लिए किया जा रहा है. पर इस तरह की जासूसी ने नैतिकता पर सवाल खड़े कर दिए हैं. अमेरिका में तो सुप्रीम कोर्ट ने भी इस बात की इजाजत दी है कि यदि किसी भी व्यक्ति पर संदेह हो तो पुलिस उसका डीएनए सैम्पल ले सकती है. ब्रिटेन की बात करें तो वहां पुलिस के पास 70 लाख लोगों के डीएनए की जानकारी जमा है. यह वहां की आबादी का दस फीसदी हिस्सा है. और इसे जमा करने के सरकार के अभियान ने निजता के लिए लड़ने वाले लोगों के कान खड़े कर दिए हैं और कुछ वैज्ञानिकों के भी. क्या डीएनए की चोरी या जासूसी से भी कोई नुकसान हो सकता है?
लूटपाट, हत्या के राज हल करने के लिए जो डीएनए काम में आते हैं उन्हें रिश्तेदारों को ढूंढने के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है. इतना ही नहीं संभावित बीमारियों के बारे में जानकारी पाई जा सकती है या हमारी आवाजाही पर नजर रखने के लिए इस्तेमाल हो सकती है.
इस साल की शुरूआत में मैसेचूसेट्स यूनिवर्सिटी के व्हाइटहेड इंस्टीट्यूट ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च के यानिव एरलिख ने एक शोध पत्र साइंस पत्रिका में प्रकाशित किया. इसमें उन्होंने बताया था कि कैसे वे इन अनजान डीएनए की मदद से व्यक्ति को पहचान सके, उनके परिवार के बारे में जान सके. इसके लिए उन्होंने इंटरनेट रिकॉर्ड में मौजूद डीएनए का इस्तेमाल किया.
उनके शब्दों में, "यह बहुत अजीब अनुभव था, एक जबरदस्त वाला अनुभव. सिर्फ एक वॉक के दौरान मैंने पूरी प्रक्रिया के बारे में सोचा."
एरलिख बताते हैं कि डीएनए डेटाबेस में बहुत सकारात्मक ताकत है. शोध करने के लिए भी और अपराध नियंत्रण के लिए भी. लेकिन वह ये भी कहते हैं, "हमारा काम दिखाता है कि निजता की कुछ सीमाएं हैं." कई हत्यारों को उनके डीएनए की पहचान करके ही पकड़ा गया है.
इंटरनेशनल पुलिस एजेंसी इंटरपोल ने 54 देशों की पुलिस के साथ मिलकर 2009 में एक डीएनए डेटाबेस बनाया है. इस प्रोजेक्ट में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, फ्रांस, जर्मनी और चीन शामिल हैं. ब्राजील और भारत ने भी इसमें शामिल होने की योजना जाहिर की है. वहीं संयुक्त अरब अमीरात ने कहा है कि वह अपने देश के सब लोगों का डीएनए डेटाबेस बनाएगा.
दुनिया का सबसे बड़ा डेटाबेस फिलहाल अमेरिका के पास है. एफबीआई के डीएनए इंडेक्स सिस्टम में एक करोड़ दस लाख संदिग्धों और अपराधियों का डीएनए सुरक्षित है. हालांकि डीएनए को रखना कानूनी और सुविधाजनक माना गया है लेकिन जस्टिस एंटोनिन कहते हैं कि अगर कोई किसी भी वजह से गिरफ्तार हो तो आज के फैसले के कारण उसका डीएनए लिया जा सकता है और इसे राष्ट्रीय डेटाबेस में डाल दिया जाएगा.
ऐसी ही आशंका ब्रिटिश जेनेटिसिस्ट एलेक जेफ्रेस ने भी जाहिर की थी. उन्होंने ही डीएनए फिंगरप्रिंट की खोज कर आपराधिक जांच में क्रांति की थी. उन्होंने चेतावनी दी थी कि डीएनए में सुरक्षित जानकारी लोगों की जाति, मेडिकल हिस्ट्री, मनोवैज्ञानिक प्रोफाइल जानने के लिए की जा सकती है.
वहीं एरलिष कहते हैं, "अगर नियंत्रण नहीं हो तो पुलिस इसके साथ कुछ भी कर सकती है. वह इससे आपके स्वास्थ्य के बारे में, आपके पुरखों और बच्चों के बारे में जानकारी जमा कर सकती है. "
पुलिस ने कुछ मामलों में ऐसा किया भी है. बाल्टिमोर यूनिवर्सिटी में फोरेंसिंक स्टडीज के असिस्टेंट प्रोफेसर चार्ल्स तुमोसा कहते हैं कि संदिग्धों के रिश्तेदारों का डीएनए से पता लगाया जा सकता है. वे कहते हैं कि इस पर बहस होनी ही चाहिए. "कहां आकर आप कहेंगे कि अब बस. क्या हम ऐसा समाज चाहते हैं जहां पांच फीसदी अपराध ही सुलझे या फिर हम ऐसा समाज चाहते हैं जहां सारे अपराधी पकड़े जाएं लेकिन आपकी निजता दांव पर हो. कौन सी डील हो "
एएम/आईबी (डीपीए,एपी)