डॉल्फ़िन के दर्द की सच्चाईः द कोव
९ मार्च २०१०दुनिया के एक धनी और विकसित देश जापान के होनशू द्वीप के ताइजी, वाकायामा में होने वाली एक सालाना रस्म ड्राइव हंटिंग, जिसमें उस इलाके की समुद्री खाड़ी में बनी कई गहरी खोह (कोव) में शरण लेने आई डॉल्फिनों और व्हेलों के अवैध शिकार के बारे में बताया गया है.
सर्वश्रेष्ठ फीचर की श्रेणी में ऑस्कर जीतने वाली फिल्म द कोव में जापान में होने वाले डॉल्फिन के अवैध शिकार को दर्शाया गया है. सन डांस फेस्टिवल 2009 का अवार्ड जीत चुकी द कोव को निर्देशित किया है नेशनल ज्योग्राफिक के फोटोग्राफर लुई सिहोयोस ने. प्रोड्यूसर हैं मार्क मोनेरो और म्यूज़िक है जे. रॉल्फ का. लायंसगेट द्वारा डिस्ट्रीब्यूट की गई इस डॉक्युमेंटरी ने विश्व भर में लगभग 25 प्रतिष्ठित अवॉर्ड्स जीते हैं.
दरअसल इस डॉक्युमेंट्री का विचार दुनिया भर में डॉल्फिन संरक्षण के लिए मशहूर रिक ओबेरी से मिलने के बाद आया. 1960 में एक अमेरीकी डॉल्फिन ट्रेनर ओबेरी ने कुछ डॉल्फिनों को पकड़कर फ्लिपर नामक हिट टीवी शो में करतब दिखाने के लिए प्रशिक्षित किया था. पॉप कल्चर से भरे इस शो ने जल्दी ही ज़ोरदार शोहरत हासिल कर ली, लोग डॉल्फिन को बेहद पसंद करने लगे और मानो ओबेरी के लिए यह शो वरदान साबित हुआ.
पर यह वरदान ओबेरी के लिए तब एक अत्यंत पीड़ादायक लम्हा साबित हुआ जब उनकी एक डॉल्फिन ने उनकी बांहों में दम तोड़ दिया. ओबेरी बताते है उन्हें ऐसा लगा कि इस डॉल्फिन ने मुक्त होने की उम्मीद में अपनी जान दे दी. इस घटना के बाद ओबेरी ने सभी डॉल्फिन को समुद्र में छोड़ दिया था और तब से वे डॉल्फिन संरक्षण के लिए काम कर रहे हैं.
ताइजी का यह छोटा सा शहर ऊपर से तो देखने में डॉल्फिन और व्हेल मछलियों के लिए स्वर्ग था, परंतु समुद्री खाड़ी में चेतावनी बोर्ड और जालियों से घिरे प्रतिबंधित क्षेत्र में बनी ख़ुफ़िया गुफ़ाओं में एक भयानक राज़ छिपा था. ऐसा लगता था कि ताइजी के लोग डॉल्फिन पर आधारित इंटरटेनमेंट इंडस्ट्री की आड़ में डॉल्फिन के मांस का करोड़ों डॉलर का अवैध व्यापार कर रहे थे.
इस डॉक्युमेंट्री को फ़िल्माने में लुई और उनकी टीम के फोटोग्राफ, डाइवर्स को बहुत मश्किलों का सामना करना पड़ा. उन्हें शहर के मेयर ने अप्रत्यक्ष धमकी दी, स्थानीय लोगों ने ज़रा भी सहयोग नहीं किया और अकसर उन पर स्थानीय पुलिस द्वारा कड़ी निगरानी रखी गई. यहां तक कि इसमें दिखाए गए अधिकतर दृश्य चोरी छिपे फ़िल्माए गए हैं. इस काम में उनकी टीम को बहुत धैर्य और विशेष तकनीक इस्तेमाल में लाना पड़ी. हालांकि अंत में लुई और उनकी टीम इस दुखद और खूनी सच को दुनिया के सामने ले ही आई.
इस फिल्म में जापान में कथित रूप से अवैधानिक तरीके से अंतरराष्ट्रीय व्हेलिंग कमीशन के वोट खरीदने की बात भी उठाई गई है. ग़ौरतलब है कि अंटार्कटिक में मारी जाने वाली व्हेलों से भी ज़्यादा संख्या में हर साल यहां डॉल्फिन का अवैध शिकार होता है. एक आंकड़े के अनुसार हर साल जापान में 27 हजार से ज़्यादा डॉल्फिन और सूंस मारी जाती हैं.
जापान की एग्रीकल्चर, फॉरेस्ट और फिशरी मिनिस्टरी की हाल की रिपोर्ट के मुताबिक़ साल 2007 में ताइजी में 1569 छोटी व्हेल तथा पूरे जापान में 13080 व्हेल ड्राइव हंटिंग के ज़रिए मारी गई हैं.
वैसे देखा जाए तो व्हेलिंग इंडस्ट्री 1979 में ही बंद हो चुकी है पर समुद्र में मछलियां पकड़ने वाले देशों को मोटे तौर पर दो भागों में बांटा जा सकता है - व्हेलिंग कंट्रीज़ और नॉन व्हेलिंग कंट्रीज़ और दोनों ही श्रेणी के देशों में इस मामले पर मतभेद बने रहते हैं.
पर्यावरण की नज़र से देखा जाए तो व्हेल प्रजाति की मछलियां जिस प्लांकटन को खाती हैं उनमें प्रचुर मात्रा में प्रोटीन होता है और व्हेल के अपशिष्ट पर सैकड़ों प्रकार की मछलियां निर्भर रहती हैं. व्हेलों के खत्म होने से इनमें से अधिकतर प्रजातियां भी बच नहीं पाएंगी जिसमें से बहुत सी इंसान की भोजन श्रृंखला का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं. इसी तरह डॉल्फिन समुद्र की बहुत ही संवेदनशील प्राणी है. हाल की रिपोर्टों से पता चला है कि समुद्र में बढ़ते प्रदूषण से डॉल्फिन के मांस में पारे की अत्यधिक मात्रा पाई गई है.
इस डाक्युमेंट्री का सबसे उजला पक्ष यह है कि इसके प्रदर्शन के बाद ताइजी के स्कूलों में बच्चों को दिए जाने वाले दोपहर के भोजन से डॉल्फिन का मांस गायब हो गया है. साथ ही दुनिया भर में डॉल्फिन को बचाने के लिए मुहिम और तेज़ हो गई. बिना संदेह लुई सिहोयोस इस फिल्म के लिए बधाई के पात्र हैं.