डॉल्फ़िन को भी मधुमेह होता है
२२ मार्च २०१०वे मनुष्यों के साथ निकटता ढूंढती हैं. संकट में पड़े आदमी की मदद करती हैं. सबसे नम्र और बुद्धिमान समुद्री जीव हैं.
शांत और विनम्र स्वभाव की डॉल्फ़िन मछलियों और मनुष्य के बीच एक और बड़ी समानता है. मनुष्यों की ही तरह वे भी स्तनपायी हैं, यानी अपनी संतान को दूध पिलाती हैं. हाल ही में पता चला है कि उन को कुछ ऐसी बीमारियां भी होती हैं, जिन्हें हम अब तक केवल अपनी बीमारियां समझते थे. अमेरिका के राष्ट्रीय स्तनपायी समुद्रीजीव प्रतिष्ठान की निदेशक स्तेफ़ानी वेन-वॉटसन बताती हैं कि डॉल्फ़िन मछलियों को हम मनुष्यों की तरह ही डायबेटीस टाईप2 कहलाने वाला मधुमेह रोग भी होता है, हालांकि वे हमारी तरह उस से स्थायी रूप से पीड़ित नहीं होतीं. "डॉल्फ़िन मछलियां जैसे ही कुछ खा लेती हैं, उनका मधुमेह दूर हो जाता है. लेकिन यदि उन्हें रात भर भूखा रहना पड़ जाये, तो मधुमेह की शिकायत हो जाती है. हम उन के रक्त में भी कुछ वैसे ही रासायनिक परिवर्तन पाते हैं, जैसे मनुष्यों में इंसुलिन प्रतिरोध होने पर देखने में आते हैं. लेकिन, डॉल्फ़िन जैसे ही रात बीतने पर कुछ खा लेती हैं, वे सामान्य स्थिति में लौट आती हैं. हम समझते हैं कि इस तरह का लौटना मनुष्यों के मामले में भी संभव होना चाहिये और इस दृष्टि डॉल्फ़िन हमारे लिए एक बहुत ही दिलचस्प नमूना हो सकती हैं."
अच्छा प्रतिरोध
मनुष्यों में डायबेटीस टाईप2 बड़ी आयु में या बहुत अधिक मोटापे के कारण होता है और बना रहता है. डॉल्फ़िन मछलियों को भले ही वह अस्थायी तौर पर होता है, पर है तो मधुमेह ही, इसलिए वेन-वॉटसन जानना चाहती थीं कि क्या उन को मधुमेह के कारण होने वाली दूसरी बीमारियां भी होती हैं, "हमें ऐसी दो बीमारियां मिलीं, गुर्दे का पथरी रोग और शरीर में लोहा जमा होने लगना".
अमेरिका में ही फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के हेंड्रिक नोलेंस को डॉल्फ़िन मछलियों में एक ऐसे वायरस के कई प्रकार मिले, जो वास्तव में मनुष्यों में कैंसर पैदा करने के लिए बदनाम है. उन्होंने चार वर्षों के दौरान डेढ़ हज़ार डॉल्फ़िन मछलियों के शरीर की ऊतक कोषिकाओं के नमूने लिये और उन में वायरस जन्य बीमारियों के निशान ढूंढे. उन्होंने इन नमूनों में पैपिलोम वायरस की 24 अलग अलग किस्मों के निशान पाये. मनुष्यों में यह वॉयरस महिलाओं के गर्भाशय कैंसर का सबसे प्रमुख कारण बनता है, लेकिन उस से संक्रमित डॉल्फ़िन मछलियां पूरी तरह स्वस्थ थीं. हेंड्रिक नोलेंस इस का यही अर्थ लगाते हैं कि डोल्फ़िन मछलियों में इस वायरस से लड़ने की अच्छी प्रतिरोध क्षमता होनी चाहिये,"यदि हम यह जान सके कि यह वायरस डोल्फ़िन मछलियों में वे बीमारियों क्यों नहीं पैदा कर पाता जो वह वह हम मनुष्यों में पैदा करता है, तो हम इस प्रतिरोध क्षमता का उपयोग शायद एक दिन मनुष्यों के उपचार के लिए भी कर सकेंगे.“
इस में अभी समय लगेगा. सबसे महत्वपू्र्ण बात यह है कि डॉल्फ़िन मछलियों और मनुष्यों के बीच समानता और सहानुभूति ही नहीं है, एक जैसी बीमारियां होने से दोनो का दुख दर्द भी बहुत मिलता जुलता है, भले ही डॉल्फ़िन जलचारी हैं और हम थलचारी.
रिपोर्ट- राम यादव
संपादन- आभा मोंढे