ड्रोन पर भारी पड़ी लेजर किरणें
९ जनवरी २०१३इसे बीम सुपर इम्पोजिंग तकनीक कहा जाता है. 50 किलोवाट वाले लेजर हथियार के साथ एक रडार और ऑप्टिकल सिस्टम की मदद ली जा रही है. रडार ड्रोन की गति और ऊंचाई का अंदाजा लगाता है. ऑप्टिकल सिस्टम सटीक ढंग से विमान का रूट पकड़ता है. इसके बाद शक्तिशाली लेजर किरणें बरसती हैं और हवा में ही ड्रोन तबाह हो जाता है.
लेजर की मारक क्षमता इतनी अचूक है कि यह 50 मीटर प्रति सेकंड की रफ्तार से गोता लगाते ड्रोन को भी निशाना बना रहा है. राइनमेटाल इसे हर मौसम में टेस्ट कर चुकी है. लेजर एक किलोमीटर की दूरी से 15 मिलीमीटर मोटी स्टील की चादर को भी काट सकता है.
कंपनी चाहती है कि इस हथियार को आसानी से कहीं भी ले जाने लायक बनाया जाए. अब इसे गाड़ियों में लगाया जा रहा है. कंपनी 20 और 30 किलोवाट के हल्के लेजर रिवाल्वर भी बना रही है. लेजर सिस्टम छोटे रॉकेट और मोटार के हमलों को हवा में भेद सकता है.
अमेरिका और रूस की सरकारें और रक्षा कंपनियां भी इसी किस्म के लेजर हथियार बनाने में जुटी हैं. ऐसा भी नहीं है कि इस तकनीक का इस्तेमाल सिर्फ हथियार में ही हो सकता है. इन उपकरणों को आपदा प्रबंधन और मेडिकल क्षेत्र में भी इस्तेमाल किया जा सकता है. सर्जरी में तो लेजर का इस्तेमाल किया ही जा रहा है.
भविष्य में हादसों के दौरान लेजर रिवॉल्वर के जरिए मलबे या स्टील के ढांचे में फंसे लोगों को निकाला जा सकता है. किरणों की शक्ति से बहुत तेजी से डाटा ट्रांसफर भी किया जा सकता है. अंतरिक्ष विज्ञान में भी लेजर किरणों से दूरी का सटीक पता लगाया जा सकता है.
रिपोर्टः ओंकार सिंह जनौटी
संपादनः अनवर जे अशरफ