तालिबान के बम हमले में शियाओं की मौत
२४ नवम्बर २०१२भारी सुरक्षा इंतजामों के बावजूद आतंकवादी हमला करने में कामयाब रहे और चार बच्चों समेत सात लोगों की जान गई. पुलिस के मुताबिक रिमोट कंट्रोल से किए गए बम धमाके में कम से कम 30 लोग घायल भी हुए हैं. तालिबान के प्रवक्ता अहसानुल्लाह अहसान ने समाचार एजेंसी एएफपी को किसी अज्ञात जगह से फोन पर बताया, "शिया समुदाय के खिलाफ हमने हमले किए हैं. हमने 20-25 आत्मघाती हमलावरों को देश भर में बम हमले और आत्मघाती हमला करने के लिए भेजा है. सरकार जितनी चाहे सुरक्षा व्यवस्था कर ले लेकिन इससे हमारे हमले नहीं रुक सकेंगे."
इससे पहले गुरुवार को रावलपिंडी में शियाओं के जुलूस पर हमला हुआ था जिसमें 23 लोग मारे गए थे. पाकिस्तान सरकार ने देश में मुहर्रम के मौके पर सुरक्षा कड़ी करने के लिए मोबाइल नेटवर्क जाम कर दिया और बडी संख्या में सुरक्षा बलों को तैनात किया. सारी तैयारियों के बावजूद अधिकारी शनिवार के हमले को नहीं रोक सके. पुलिस के मुताबिक कम से कम 10 किलोग्राम का बम जुलूस के रास्ते में कूड़ेदान में छिपा कर रखा गया था. बम धमाके की आवाज कई किलोमीटर दूर तक सुनी गई.
स्थानीय अस्पताल के प्रमुख अजीज बलोच नें बताया, "सात लोगों की मौत हुई है जिनमें चार बच्चे हैं. घायलों में चार की हालत नाजुक है, उन्हें मुल्तान शहर ले जाया गया है." सरकारी अस्पताल के एक और अधिकारी अख्तर नवाज ने बताया कि तीन बच्चे अस्पताल पहुंचने से पहले ही दम तोड़ चुके थे जबकि चार लोगों की मौत अस्पताल में भर्ती किए जाने के बाद हुई है. शहर के पुलिस प्रमुख खालिद सुहैल ने बताया कि मारे गए बच्चों की उम्र छह से ग्यारह साल के बीच थी.
पाकिस्तान के कराची, दक्षिण पश्चिमी शहर क्वेटा, खैबर पख्तूनख्वा और पंजाब प्रांत के कई शहरों के साथ ही इस्लामाबाद के कई इलाकों में मुहर्रम के मौके पर मोबाइल का नेटवर्क जाम कर दिया गया. देश में तालिबान सुरक्षा बलों के साथ तो 2007 से ही जंग लड़ रहा है लेकिन इस सुन्नी चरमपंथी गुट ने शियाओं को भी जम कर निशाना बनाया है. डेरा इस्माइल खान पाकिस्तान के पास एक अर्धस्वायत्त कबायली इलाका है जहां तालिबान और अल कायदा से जुड़े आतंकवादियों का गढ़ है. इसकी सीमा आतंकवाद झेल रहे दक्षिण पश्चिमी प्रांत बलूचिस्तान और सबसे ज्यादा आबादी वाले प्रांत पंजाब से भी लगती है.
मुहर्रम के महीने में सबसे बड़ा दिन अशूरा को होता है और अकसर इस दिन को सुन्नी चरमपंथी शियाओं को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल करते हैं. दिसबर 2009 में कराची के अशूरा जुलूस के दौरान एक आत्मघाती हमलावर ने 43 लोगों की जान ले ली थी. शिया काले झंडे और लेकर शहर की मुख्य सड़कों से जुलूस निकालते हैं और इमाम हुसैन को याद करते हैं. जुलूस में निकलने वाले लोग हाथों से अपनी छाती पीट कर मातम मनाते हैं. हुसैन को सुन्नी समुदाय भी उतनी ही इज्जत देता है लेकिन वह उनकी शहादत पर सार्वजनिक रूप से मातम मनाने का विरोध करते हैं. दोनों समुदायों की आपसी हिंसा ने 1990 के दशक से लेकर अब तक पाकिस्तान में 4,000 से ज्यादा लोगों की जान ली है.
एनआर/ओएसजे (एएफपी)