दास प्रथा से दक्षिण अमेरिका पहुंचा मलेरिया
२७ दिसम्बर २०११यह बात मोंटपेलियर विश्वविद्यालय में एरहान यालसिनडाग के नेतृत्व वाली शोध टीम ने मच्छरों के तुलनात्मक जेनेटिक विश्लेषण में पता की है. शोध के नतीजों को अमेरिका की राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी की कार्यवाही में पेश किया गया है.
वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि यह अध्ययन मलेरिया फैलाने वाले एजेंट की जन्म की बहस में स्पष्टता लाने में योगदान दे सकता है. अब तक शोधकर्ताओं में इस बात पर सहमति नहीं थी कि मलेरिया के कीटाणु यूरोपीय आप्रवासन और अफ्रीकी दास व्यापार की वजह से आए या उनकी वजह लंबे समय में किटाणुओं में हुआ विकास है.
इस अध्ययन के लिए शोधकर्ताओं ने मलेरिया के शिकार लोगों के खून की जांच की. जिन लोगों के सैंपल लिए गए वे सहारा के दक्षिणवर्ती अफ्रीका, मध्यपूर्व, दक्षिण पूर्व एशिया और दक्षिण अमेरिका के थे. शोधकर्ताओं ने मलेरिया के एजेंट के जेनेटिक रिश्ते तय किए और प्लासमोडियम फाल्सीपारुम का स्रोत अफ्रीका में मिला.
इसके अलावा शोधकर्ताओं को दक्षिण अमेरिका में पाए जाने वाले कीटाणुओं की दो मुख्य जेनेटिक धाराएं मिली. इनमें से एक उत्तरी और एक दक्षिणी धारा है और शोधकर्ताओं को अंदेशा है कि ये धाराएं दास व्यापार के सिलसिले में एक दूसरे से स्वतंत्र रूप से दक्षिण अमेरिका में आईं.
प्लासमोडियम फाल्सीपारुम के कीटाणु मलेरिया के सबसे घातक कीटाणु हैं और हर साल मलेरिया से मरने वाले साढ़े छह लाख से अधिक लोगों में से अधिकांश इसी कीटाणु की वजह से मरते हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन की ताजा रिपोर्ट के अनुसार मच्छरों से मानव शरीर में पहुंचाये जाने वाले कीटाणु से 2010 में विश्व भर में 655,000 लोगों की मौत हो गई.
रिपोर्ट: डीपीए/महेश झा
संपादन: एन रंजन