दिल अपना वापस पाया
१४ जुलाई २००९चिकित्सा विज्ञान की दुनिया में इसे चमत्कार माना जा रहा है. विशेषज्ञों के मुताबिक अपनी तरह का ये शायद पहला मामला है जिसमें मरीज़ के अपने हृदय के दुरुस्त होते ही प्रत्योरोपित किए गए दिल को निकाला गया हो.
16 साल की हाना क्लार्क नाम की ये लड़की दो साल की थी जब उसे दिल का दौरा पड़ा था. तत्काल नया हृदय लगाकर उसका जीवन बचाया गया था. उसे कार्डियोमायोपैथी नाम की बीमारी थी. इसमें हृदय की मांसपेशियों में समस्याएं आ जाती हैं.
लड़की का इलाज करने वाले सर्जनों का कहना है कि वो अब एकदम स्वस्थ है और उसका अपना दिल सामान्य रूप से धड़क रहा है.
दो साल की उम्र में हाना के अपने दिल के पास, दान में मिला दिल भी धड़क रहा था और वो कमज़ोर पड़ने से पहले कई साल बख़ूबी काम करता रहा.
हाना एक तरह के कैंसर की भी मरीज़ रही है. ये आमतौर पर उन लोगों को होता है जिनका अंग प्रत्यारोपण करना होता है. प्रत्यारोपित अंग को शरीर स्वीकार नहीं करता और शरीर की इस प्रतिरोधी क्षमता को ख़ास दवाओं के सहारे रोके रखना पड़ता है. इससे ईबीवी पीटीएलडी नाम का कैंसर हो जाता है.
हाना की कीमोथैरेपी की गयी. दवाएं बदली गयीं, कम कर दी गयीं लेकिन कैंसर लौटता रहा. और दवाओं के उलट पुलट असर और शरीर की अपनी आंतरिक गतिविधियों के चलते प्रत्यारोपित दिल धीरे धीरे नाकाम होने लगा. हाना के गुर्दे भी इस दौरान ख़राब हुए. उसे सांस लेने में तक़लीफ़ होने लगी. ये वो दौर था जब उसकी ज़िंदगी एक यातना जैसी थी.
डॉक्टरों को तब इस बात पर हैरानी हुई कि एक तरफ़ ये दिल बेकार जा रहा था तो दूसरी तरफ़ हाना का अपना दिल ठीक से काम करने लगा. 2006 में डॉक्टरों ने फ़ैसला किया कि डोनर दिल को निकाल दिया जाए. ऐसा पहले कभी नहीं किया गया था.
हाना का शुरू से इलाज करने वाले डॉक्टर मागदी याक़ूब हैं और वो इंपीरियल कॉलेज लंदन में प्रोफ़ेसर हैं. प्रोफ़ेसर याक़ूब और उनकी टीम ने अपने उल्लेखनीय काम पर एक पर्चा भी द लांसेट जर्नल में प्रकाशित कराया है.
प्रोफ़ेसर याक़ूब का कहना है कि हृदय में सुधार की संभावना किसी जादू से कम नहीं. हाना और उसके परिवार की हिम्मत और हौसले की भी उन्होंने तारीफ़ की. उन्होंने कहा कि इस अभूतपूर्व मामले का एक सबक ये भी है कि कभी हिम्मत मत हारो.
रिपोर्ट- एजेंसियां, एस जोशी
संपादन- ओ सिंह