1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

दुनिया की कहानियों का लाइपजिग में लंगर

२० अक्टूबर २०११

वाइसे एल्स्टर, प्लाइसे और पार्थे नदियों के संगम लाइपजिग में इन दिनों दुनिया भर के किस्सागो लंगर डाले बैठे हैं. मौका लाइपजिग डॉक्यूमेंट्री फिल्म फेस्टिवल के 54वें आयोजन का है. दुनिया भर की समस्याएं और कहानियां आई हैं.

https://p.dw.com/p/12vnP
तस्वीर: DW

पर्यावरण, मानवाधिकार, कीटनाशक, ब्यूटी ट्रीटमेंट, आल्प्स, पूर्वोत्तर भारत, समस्याएं, चुनौतियां, नई दिशाएं, क्रांति और जब इतना कुछ हो तो फिर प्यार, संगीत और फिल्मों की बात कैसे नहीं होगी. लाइपजिग के मंच पर सुबह से लेकर शाम तक चर्चाओं का बाजार गर्म है. इन डॉक्यूमेंट्री फिल्मों के जरिए दुनिया भर की समस्याएं एक जगह जमा हो गई हैं. फिल्में इतनी शिद्दत और मेहनत से बनाई गईं हैं कि दुनिया के रहनुमा एक बार अपने अहं को भूल इन्हें देख लें तो शायद अगली बार से फिल्मकारों को नया विषय ढूंढने में बहुत पसीना बहाना पड़ेगा.

Leipziger Festival für Dokumentar- und Animationsfilm 2011
तस्वीर: picture-alliance/dpa

आल्प्स के खूबसूरत पहाड़ों को काट कर बनते रिहायश और पर्यटन के केंद्र, जर्मन महिलाओं में बढ़ता ब्यूटी ट्रीटमेंट और प्लास्टिक सर्जरी का नशा, लद्दाख की कंपकंपाती वादियों में जोर शोर से बनती छोटे बजट की फिल्में, सरहदों को लांघते कबीर के दर्शन का असर देखने निकली एक गायिका, बनारस के घाट पर जीवन गुजारने के लिए विवश विधवा महिलाओं का दर्द, अमेरिकी ब्लू म्यूजिक से गलबहियां करता कोलकाता और मणिपुर का लोकसंगीत, चीन की कपड़ा मिलों के मजदूरों की कहानी, फुटबॉल के जरिए कश्मीर के युवाओं की समस्या, पंजाब के खेतों में कपास उगाते किसानों में कीटनाशकों से बढ़ता कैंसर, विश्व युद्ध, मिस्र का विद्रोह, जर्मन एकीकरण, ईरान, वियतनाम, मध्यपूर्व, क्यूबा, किस किस का नाम लें. दुनिया की सभी प्रमुख भाषाओं में यहां कुल 110 फिल्में पहुंची हैं.

कई विषयों पर अलग सत्र

मुख्य मुकाबले के अलावा अलग अलग विषयों पर भी फिल्में आई हैं. भारत की कोई फिल्म मुख्य मुकाबले में नहीं लेकिन यहां 14 भारतीय फिल्में दिखाई जा रही हैं. एनीमेशन फिल्में भी पहुंची हैं. इसके अलावा फिल्म का वितरण करने वाली कंपनियां नई फिल्मों की तलाश में हैं तो, डॉक्यूमेंट्री फिल्मों को बढ़ावा देने वाले संस्थान नए फिल्मकारों की. कई तरह की ट्रेनिंग और चर्चा के सत्र अलग से बुलाए जा रहे हैं. एक दीवार के दो ओर बंटे देश किस तरह से जीते रहे इस पर कई छोटी फिल्मों के साथ एक अलग सत्र भी है. इनमें से कई फिल्में तो पहली बार सामने आ रही हैं.

Sachsen erinnert an die Friedliche Revolution
तस्वीर: DW

डॉक्यूमेंट्री बनाने वालों के लिए पैसे का जुगाड़ करना और सेंसर से जूझना हमेशा से एक बड़ी समस्या रही है और लाइपजिग का डॉक फिल्म फेस्टिवल इसकी मुश्किलें कम करने के लिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश कर रहा है. फिल्मकारों, फिल्म का वितरण करने वाली एजेंसियों और फिल्मकारों की तलाश कर रही संस्थाओं को एक जगह बुला कर इसी दिशा में कदम बढ़ाया गया है.

54 साल पुराना फेस्टिवल

लाइपजिग का यह फेस्टिवल जर्मनी का सबसे बड़ा विशुद्ध डॉक्यूमेंट्री फेस्टिवल है. स्विस फिल्मों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बढ़ावा देने के लिए काम करने वाली मारिया स्टेरगियू हाल ही में दक्षिण कोरिया के बुसान फिल्म फेस्टिवल से होकर आई हैं. मारिया लाइपजिग को दुनिया के सबसे बड़े डॉक्यूमेंट्री मेलों में शुमार करती हैं. मारिया कहती हैं, "यहां फीचर फिल्में नहीं दिखाई जातीं इसलिए इसे बर्लिनाले से भी बड़ा माना जाता है. समाजवादी अनुशासन और प्रभाव में रहे पूर्वी जर्मनी के इस शहर में फिल्म फेस्टिवल आयोजित करने का सिलसिला एक बार शुरू होने के बाद तब भी नहीं थमा जब जर्मनी दो भागों में बंटा था."

Sachsen erinnert an die Friedliche Revolution
तस्वीर: DW

लाइपजिग फिल्म फेस्टिवल में अमेरिकी दिग्गज फिल्मकार रॉबर्ट ड्रयू भी अपनी दो फिल्मों के साथ आ रहे हैं. इसके अलवा तीन वरिष्ठ जर्मन फिल्मकारों गिट्टा निकेल, युर्गेन बॉटशर और कुर्त वाइलर का सम्मान भी किया जाएगा.

फिल्म देखने उमड़ती भीड़

डॉक्यूमेंट्री फिल्मों में स्थानीय लोगों की दिलचस्पी भी हैरान करने वाली है. लोग लाइन में खड़े होकर डॉक्यूमेंट्री फिल्मों के टिकट खरीद रहे हैं. आमतौर पर फिल्मों में हॉल की सारी सीटें भर जा रही हैं, वह भी तब जबकि हर फिल्म कम से कम दो या तीन बार दिखाई जा रही है. फिल्म देखने आने वालों में युवाओं और छात्रों की भी बड़ी तादाद है.

रिपोर्ट: लाइपजिग से निखिल रंजन

संपादन: वी कुमार

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी