दुनिया भर में असुरक्षित लड़कियां
१२ नवम्बर २०११"फिर बेटी...डॉक्टर साहब मैं इस बच्ची को जन्म नहीं दे सकती. मेरी पहले ही तीन बेटियां हैं."
यह डॉयलॉग एकदम भारतीय लगता है. समस्या वही, जज्बात वही, इलाज भी वही. लेकिन कहने वाली महिला भारतीय नहीं अल्बानिया की है. आंसू भरी आंखों से रोजा ने तिराना शहर में यह बात अपनी डॉक्टर से कही. 28 साल की रोजा के बाल अभी से सफेद होने लगे हैं. वह चौथी बार मां बनने वाली हैं. प्रेग्नेंसी को चार महीने हो चुके हैं. मतलब अबॉर्शन की वैध सीमा पार हो चुकी है. लेकिन वह बच्ची को जन्म न देने के लिए अपनी जिंदगी दांव पर लगाने को तैयार हैं.
बिगड़ता संतुलन
भारत में यह सामान्य बात लगती है. लेकिन अल्बानिया में भी अब यह बात सामान्य होने लगी है. और लोकतंत्र और मानवाधिकारों के लिए काम करने वाली 47 देशों की संस्था काउंसिल ऑफ यूरोप ने चेतावनी दे दी है कि बेटों को जन्म देने के लिए कन्या भ्रूण हत्या जारी रही तो मामला गंभीर हो जाएगा. फिलहाल अल्बानिया में हर 100 लड़कियों पर 112 लड़के हैं. कुदरती तौर पर यह अनुपात 100 के मुकाबले 106 का होना चाहिए.
दक्षिण एशिया में कन्या भ्रूण हत्या पुरानी और गंभीर समस्या है. संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के मुताबिक चीन, भारत और वियतनाम में लड़के लड़की का अनुपात सबसे ज्यादा बिगड़ा हुआ है. लेकिन काउंसिल ऑफ यूरोप चिंतित है कि समस्या ने यूरोप जैसे आधुनिक माने जाने वाले समाज में भी जगह बना ली है. अल्बानिया, आर्मेनिया, अजरबैजान और जॉर्जिया में स्थिति गंभीर होती जा रही है.
इन देशों में भी समस्या वही है जो भारत में है. बेटा नाम चलाता है और परिवार के लिए कमाने वाला बनता है. जानी मानी मानवविज्ञानी आफ्रेडिटा ओनुजी कहती हैं, "यह मानसिकता है जो चली आ रही है. कुछ क्षेत्रों में लड़कियों को बड़ा बोझ माना जाता है."
इस मानसिकता के नतीजे वैसे ही भयानक होते हैं जैसे भारत में बेटियों को जन्म देने वाली मांओं को भुगतने पड़ते हैं. रोजा बताती हैं, "पिछली बार मेरे पति ने मेरी जान ही ले ली होती. जब उसे पता चला कि मैं उसे बेटा नहीं दे सकती तो वह हिंसक हो गया. और मेरी सास भी." रोजा का पति तो उन्हें और उनकी बेटियों को घर से निकाल देना चाहता था. इसलिए रोजा पैदा होने से पहले अपनी चौथी बेटी को मार देना चाहती है.
सख्त कानून की जरूरत
अल्बानिया में एक सीमा से पहले अबॉर्शन की कानूनन इजाजत है. वहां 12 हफ्ते के गर्भ से पहले अबॉर्शन कराया जा सकता है. इसके बाद अबॉर्शन तभी हो सकता है जब तीन डॉक्टर उस पर राजी हों. लेकिन मानवाधिकार संगठन कहते हैं कि पाबंदियां सख्त नहीं हैं इसलिए अबॉर्शन कराना इतना मुश्किल नहीं है. 2002 से भ्रूण जांच की सुविधा उपलब्ध है, जिसने कन्या भ्रूण के अबॉर्शन को और ज्यादा बढ़ा दिया है. 15 यूरो यानी लगभग एक हजार रुपये में ही अल्ट्रासाउंड से भ्रूण की लिंग जांच कराई जा सकती है. और अबॉर्शन भी 9-10 हजार रुपये में हो जाता है.
काउंसिल फॉर यूरोप ने एक प्रस्ताव पारित कर इस स्थिति को खतरनाक बताया है. उसने अल्बानियाई अधिकारियों को इस बारे में गहन जांच करने और उचित कदम उठाने को कहा है. हालांकि अल्बानियाई अधिकारी स्थिति को ज्यादा गंभीर नहीं मानते. देश के स्वास्थ्य मंत्री पेट्रिट वासिली कहते हैं, "अस्पतालों में सब कुछ नियंत्रण में होता है. ग्रामीण क्षेत्रों में लोग बेटों को तरजीह देते हैं लेकिन उसका जनसंख्या के नियंत्रण पर कोई असर नहीं है."
देश के स्वास्थ्यकर्मी सिर्फ सख्त कानून को समस्या का इलाज नहीं मानते. तिराना के कोचो ग्लोजेनी अस्पताल की मुखिया रुबेना मोइजू कहती हैं कि कानूनों को दाव पेंच से धोखा दिया जा सकता है, इसलिए इसका तरीका यही है कि लिंग जांच को ही बंद कर दिया जाए. वह कहती हैं, "हमें मानसिकता बदलनी होगी."
रिपोर्टः एएफपी/वी कुमार
संपादनः एन रंजन