दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बना चीन
१४ फ़रवरी २०११मोनेक्स सिक्योरिटीज के प्रमुख अर्थशास्त्री नाओकी मुराकामी ने कहा, "मंदी से जूझ रही जापानी अर्थव्यवस्था के लिए आत्मनिर्भर विकास का लक्ष्य पाने में मुश्किलें पेश आ रही हैं." वहीं चीन की कुलांचे भरती अर्थव्यवस्था इस बात को साबित करती है कि कभी गरीबी से पीड़ित रहा देश अब विश्व मंच पर दुनिया की बड़ी आर्थिक ताकत बनने के लिए तैयार है. विश्लेषक मान रहे हैं कि चीन की चुनौती से निपटने के लिए सिकुड़ती जापानी अर्थव्यवस्था को फिर से विकास के रास्ते तलाशने होंगे.
2010 के आखिर में जापान की अर्थव्यवस्था 54.74 खरब डॉलर आंकी गई जबकि इसी अवधि में चीन की अर्थव्यवस्था 58 खरब डॉलर के रूप में सामने आई. लेकिन चीन में प्रति व्यक्ति आय 4,500 डॉलर है जबकि जापान में प्रति व्यक्ति आय 40 हजार डॉलर है और इस क्षेत्र में जापान अब भी आगे है.
दूसरे विश्व युद्ध के बाद "आर्थिक चमत्कार" के जरिए जापान दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में शामिल हुआ. अमेरिका के बाद दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के पायदान पर जापान चार दशक तक काबिज रहा लेकिन अब उसका दबदबा टूट गया है. 1990 में जापान में प्रॉपर्टी का बुलबुला फूट जाने के बाद जापान को विकास में अवरोध का सामना करना पड़ा. वहीं चीन तेजी से बढ़ता गया.
अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है और अब चीन दूसरे स्थान पर पहुंच गया है. अब इस बात के भी कयास जाने लगे हैं कि अगले 10-15 सालों में अमेरिका को पछाड़ कर चीन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा. वर्ल्ड बैंक, गोल्डमैन सैक्स और अन्य वित्तीय संस्थानों का अनुमान है कि 2025 के आसपास चीन सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होगा.
जापान की मुश्किलें इसलिए बढ़ी क्योंकि कारों की खरीद पर मिलने वाली सब्सिडी की मियाद खत्म हो गई जिससे कारों की बिक्री पर चोट पहुंची, तंबाकू पर नया टैक्स लगने से सिगरेट की मांग घट गई और फिर मजबूत होती येन मुद्रा की वजह से निर्यात को झटका लगा.
2010 में जापान की अर्थव्यवस्था 3.9 फीसदी की रफ्तार से बढ़ी और तीन साल में पहली बार अर्थव्यवस्था में सालाना वृद्धि दर्ज की गई. लेकिन यह चीन को रोकने के लिए काफी साबित नहीं हुआ. जापान के सामने सबसे बड़ी चुनौती सार्वजनिक कर्ज, चीजों की कीमतों में भारी गिरावट आना और जनसंख्या की बढ़ती उम्र है.
इसके साथ मजबूत येन मुद्रा की वजह से जापान का निर्यात भी प्रभावित हो रहा है. अन्य मुद्राओं के मुकाबले येन मजबूत होने से जापान के उत्पादों को दूसरे बाजार में जाने में मुश्किलें होती हैं जबकि चीन अपनी मुद्रा को कमजोर रखता है जिससे उसके उत्पाद आसानी से अन्य बाजारों में रास्ता बना रहे हैं.
अक्तूबर से दिसंबर तक की तिमाही में निर्यात में गिरावट दर्ज की गई है क्योंकि पिछले 15 सालों में डॉलर के मुकाबले येन अपने सबसे मजबूत स्तर पर है. हालांकि विश्लेषक मान रहे हैं कि जनवरी-मार्च की तिमाही में जापानी अर्थव्यवस्था फिर से पटरी पर आएगी और बढ़ोत्तरी दर्ज करेगी. जापान की सरकार भी दूसरे से तीसरे स्थान पर पहुंच जाने को ज्यादा अहमियत नहीं दे रही है और कहा है कि पड़ोस में मजबूत अर्थव्यवस्था होने से उसे भी फायदा पहुंचेगा.
रिपोर्ट: एजेंसियां/एस गौड़
संपादन: ओ सिंह