देशवासियों के शुक्रगुजार सचिन
६ फ़रवरी २०११हाल ही में सचिन पर विख्यात लेखक गौतम भट्टाचार्य ने एक किताब लिखी जिसका नाम है सैच. इसमें सचिन तेंदुलकर की शख्सियत के भावुक पहलू को उभारा गया है, खास कर जब 2001 में दक्षिण अफ्रीकी दौरे पर गेंद से छेड़छाड़ के आरोप लगे तो देश ने कैसे एकजुट होकर उनका साथ दिया. इस किताब में सचिन ने यह बताया है कि मैच फिक्सिंग कांड और मुंबई हमलों की स्थिति से वह कैसे निपटे.
रेफरी ने एक न सुनी
पोर्ट एलिजाबेथ में गेंद से छेड़छाड़ करने के आरोप में सचिन पर मैच रेफरी माइक डेनेस ने एक मैच की पाबंदी लगा दी थी. सचिन का कहना है, "इस घटना के बावजूद मैं बहुत खुश था कि मेरे देश के लोग मुझ पर इतना विश्वास करते हैं. उस वक्त लिखा गया कि जब मैं बैटिंग करने जाता हूं तो पूरा देश मेरे साथ खड़ा हो जाता है. लेकिन वहां तो बैट ही नहीं था लेकिन फिर भी उन्होंने मेरा साथ दिया. यह बात मुझे छू गई. आज तक मैं इस बात को नहीं भूला हूं."
अपने लंबे अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट करियर में सचिन खेल के साथ साथ अपनी गरिमा के लिए भी जाने जाते हैं. वह कहते हैं कि डेनेस के आरोपों से वह हिल गए थे. सचिन के मुताबिक, "आप जानते हैं मैं तो पूरी तरह से सदमे में था, जब उन्होंने मुझ पर गेंद से छेड़छाड़ करने का आरोप लगाया. मैंने उन्हें सच बताने की कोशिश की. मैं सिर्फ गेंद पर लगी घास को साफ करने की कोशिश कर रहा था. मैं उसकी सिलाई को नहीं उधेड़ रहा था. मैंने कभी ऐसा नहीं किया. अगर कोई घास को साफ कर रहा है तो आप उस पर गेंद से छेड़छाड़ का आरोप कैसे लगा सकते हैं. लेकिन मैच रेफरी ने एक नहीं सुनी. इसके बाद से जब भी मैं गेंद को साफ करता हूं कि अंपायर को इस बारे में बताता हूं."
26/11 से सन्न
भारतीय क्रिकेट पर जब मैच फिक्सिंग के आरोप लगे, तब भी सचिन सन्न रह गए. क्रिकेट जगत में 97 सेंचुरी बनाने वाले सचिन से जब इस फिक्सिंग कांड के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा, "मैं वहीं कर रहा था किसी भारतीय को करना चाहिए. मैं सिर्फ अपनी जिम्मेदारी पूरी कर रहा था. मैं अपनी नियमित दिनचर्या पर अमल कर रहा था. उसी दौरान मुझे ईमानदारी से अपना टैक्स चुकाने के लिए आयकर विभाग की तरफ से सर्टिफिकेट मिला. इससे मुझे बहुत संतोष मिला. मैं चाहता था कि यह सब देखने के लिए काश मेरे पिता जिंदा होते." जब भी सचिन सेंचुरी जड़ते हैं तो आसमान की तरफ से देखते हुए अपने पिता रमेश तेंदुकर को याद करते हैं.
इस किताब में सचिन मुंबई पर 26 नवंबर 2008 को हुए मुंबई हमलों की त्रासदी के बारे में भी बात करते हैं. वह कहते हैं, "हम कटक में (इंग्लैंड के खिलाफ) खेल रहे थे. रात को हमें हमलों के बारे में पता चला. बेशक ऐसे में सबसे पहले आप अपने घर पर फोन करते हो और पता करते हैं कि आपके अपने सही सलामत हैं या नहीं. फिर हम लोग टीवी से चिपक गए और देखा कि क्या हो रहा है. ऐसे मुश्किल समय में देश में क्या हो रहा है. मैं बता नहीं सकता कि कितना दुखी था. लगभग सुन्न हो गया था और खुद नहीं जानता था कि मुझे क्या हो गया है. मुझे फिर से सामान्य होने में कुछ समय लगा. वे शायद मेरी जिंदगी के सबसे निराशा वाले दिन थे."
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः एस गौड़