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धान के कटोरे में जान देते किसान

२२ जनवरी २०१२

धान के कटोरे के नाम से मशहूर पश्चिम बंगाल के बर्दवान जिले में अपनी फसल का उचित दाम नहीं मिलने और साहूकार के बढ़ते कर्ज के बोझ तले दब कर किसान आत्महत्या कर रहे हैं.

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तस्वीर: DW/Prabhakar Mani

धान और आलू पैदा करने में पश्चिम बंगाल देश के शीर्ष राज्यों में शुमार है. लेकिन इस साल धान और आलू की शानदार फसल ही किसानों के लिए जानलेवा साबित हो रही है. बीते दो महीनों में राज्य में 24 किसान आत्महत्या कर चुके हैं. इनमें से 14 मामले अकेले बर्दवान जिले के हैं. छह किसानों ने तो बीते एक सप्ताह के दौरान अपनी जान दी है. आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं पर अब राजनीति भी तेज होने लगी है. विपक्षी सीपीएम के अलावा ममता बनर्जी सरकार में सहयोगी कांग्रेस भी इन हत्याओं के लिए सरकार को घेरने लगी है. इन मौतों पर सरकारी उदासीनता के खिलाफ आंदोलन शुरू हो गया है. सीपीएम से जुड़े किसान संगठन तो इसी मुद्दे पर ग्रामीण इलाकों में एक दिन की सांकेतिक हड़ताल भी कर चुके हैं. कई जगह फसलें भी जलाई गई हैं. लेकिन सरकार का कहना है कि इन आत्महत्याओं का खेती से कोई संबंध नहीं है.

Kartoffeln in West-Bengal
तस्वीर: DW/Prabhakar Mani

किसानों का दर्द
बर्दवान, मुर्शिदाबाद और बांकुरा जिलों में किसान फसलों की बुवाई और उनमें खाद-पानी डालने के लिए स्थानीय साहूकार से ऊंचे ब्याज पर कर्ज लेते हैं. फसलों की पैदावार ज्यादा पर लागत से भी कम मूल्य पर उसे बेचना पड़ता है. नतीजतन वे साहूकार का कर्ज नहीं चुका पाते. बर्दवान में पूर्वस्थली के तापस मांझी ने चार दिनों पहले अपने घर से छह किलोमीटर दूर एक पेड़ पर रस्सी का फंदा लगाया और उससे लटक कर अपनी जान दे दी. मांझी के घर वाले बताते हैं, तापस ने धान और हरी सब्जियों की खेती के लिए साहूकार से कर्ज लिया था. लेकिन फसल नहीं बेच पाने की वजह से वह कर्ज नहीं चुका सका. पड़ोसी मुर्शिदाबाद जिले के वैद्यनाथ बाउरी ने ट्रैक्टर खरीदने के लिए साहूकार से कर्ज लिया था. लेकिन दो वर्षों की कोशिश के बावजूद वह अपना कर्ज नहीं चुका सका.

बर्दवान जिले के मेमारी में चार बीघे खेत में धान रोपने वाले वैद्यनाथ कहते हैं, "सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य पर किसानों से धान खरीदने का भरोसा दिया था. लेकिन अब तक हमारा धान खरीदने कोई नहीं आया है." अमिय साहा नाम के जिस किसान ने एक महीने पहले आत्महत्या की थी, उसके घर पर रखा दो सौ क्विंटल धान अब तक बिक नहीं सका है. उसके पड़ोसी जितेन हालदार कहते हैं, "साहा को कर्ज और इस धान के बोझ ने ही मार दिया." आलू किसानों की हालत भी ऐसी ही है. लाखों टन आलू कोल्डस्टोरेज में रखे रखे सड़ रहे हैं. आलू रखने के लिए राज्य में पर्याप्त कोल्ड स्टोरेज भी नहीं हैं. किसानों को 50 किलो आलू की बोरी सौ रुपए में बेचनी पड़ रही है. जबकि बाजार में इस आलू की कीमत आठ से 10 रुपए प्रति किलो है.

साहूकारों का जाल
राज्य के ग्रामीण इलाकों में साहूकार ही अर्थव्यवस्था की धुरी बन गए हैं. ग्रामीण या कोआपरेटिव बैंक किसानों को खेती के लिए कर्ज देने से बचते हैं. किसानों को मामूली रकम के लिए भी इतनी बार बैंकों का चक्कर लगाना पड़ता है कि वह थक हार कर स्थानीय साहूकारों की शरण में चले जाते हैं. वहां चंद कागजों पर अंगूठा लगाते ही उन्हें एक घंटे में नकद रकम मिल जाती है. इन ग्रमीण इलाकों में खाद और कीटनाशक बेचने वाले व्यापारी और दुकानदार ही साहूकार की दोहरी भूमिका भी निभाते हैं. वह लोग गरीब किसानों को दस प्रतिशत मासिक की ब्याज दर पर कर्ज मुहैया कराते हैं. सालाना यह ब्याज 120 प्रतिशत होता है.

मुर्शिदाबाद जिले में लगभग 36 लाख किसान हैं. लेकिन अपनी 400 शाखाओं के जरिए किसानों को खेती के लिए कर्ज मुहैया कराने वाले सेंट्रल कोआपरेटिव बैंक ने साल 2009-10 के दौरान 30 हजार किसानों को कर्ज के रूप में 30 करोड़ की रकम दी थी. 2010-11 के दौरान महज 34 हजार किसानों को 48 करोड़ की रकम दी गई. यानी 35 लाख से ज्यादा किसानों को स्थानीय साहूकारों कर्ज लेना पड़ा. स्थानीय साहूकार किसानों से कम कीमत पर धान और आलू खरीद कर उसे ज्यादा कीमत पर सरकार को बेचते हैं. मुर्शिदाबाद के बाओरा में आत्महत्या करने वाले आनंद गोपाल दास के घरवाले बताते हैं कि बैंक से सात प्रतिशत की दर पर कर्ज मिलता है.

आधारभूत सुविधाओं का अभाव
किसानों का आरोप है कि राज्य में आधारभूत सुविधाओं का अभाव है. सरकार ने इस साल राज्य में किसानों से 20 लाख मीट्रिक टन धान खरीदने का लक्ष्य रखा था. लेकिन अब तक दो लाख मीट्रिक टन की भी खरीद नहीं हो सकी है.स्टोरेज या भंडारण की सुविधा नहीं होने की वजह से फसलों का एक बड़ा हिस्सा बिकने से पहले ही सड़ जाता है. किसान फुलेश्वर साहू कहते हैं, "सरकार अगर समय पर हमारी फसल खरीद ले तो आत्महत्या की घटनाएं काफी कम हो सकती हैं. लेकिन इसके लिए पहले स्थानीय साहूकारों और बिचौलियों का नेटवर्क ध्वस्त करना जरूरी है." केंद्र ने धान का न्यूनतम समर्थन मूल्य 1080 रुपए प्रति क्विंटल तय किया है. लेकिन किसानों का आरोप है कि उनको इससे कम रकम दी जा रही है.

Reisanbau in West-Bengal
तस्वीर: DW/Prabhakar Mani

राजनीतिक रंग
किसानों की आत्महत्या की बढ़ती घटनाओं पर अब राजनीतिक रंग चढ़ने लगा है. जगह-जगह आंदोलन और प्रदर्शन हो रहे हैं. सीपीएम के महासचिव प्रकाश करात कहते हैं, "इन आत्महत्याओं के लिए राज्य सरकार की नीतियां जिम्मेदार हैं. बंगाल में पहले किसानों के आत्महत्या की इतनी घटनाएं नहीं हुईं थी." राज्य सरकार में सहयोगी कांग्रेस भी इस मुद्दे पर मुखर है. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रदीप भट्टाचार्य कहते हैं, "राज्य सरकार को तुरंत इस मामले की विस्तृत जांच करानी चाहिए कि अब तक कितने किसानों ने आत्महत्या की है और उसकी वजह क्या थी." उनका आरोप है कि राज्य के कई जिलों में धान की मिलें भी जरूरत से कम है. कांग्रेस ने सरकार से किसानों के बैंक खातों के जरिए समर्थन मूल्य का भुगतान करने की अपील की है ताकि बिचौलिए यह पैसा नहीं ले सकें.

दूसरी ओर, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा है कि इन आत्महत्याओं का खेती से कोई संबंध नहीं है. उनका कहना है कि ज्यादातर लोग गंभीर बीमारियों की वजह से मरे हैं. जो किसान मरे भी हैं उन्होंने फसलों के लिए लिए गए कर्ज के बोझ की वजह से जान नहीं दी है. उन लोगों ने निजी जरूरतों के लिए ऊंचे ब्याज दर पर कर्ज लिया था. ममता ने उल्टे राज्य की पूर्व वाममोर्चा सरकार पर 200 से ज्यादा किसानों को मौत के मुंह में धकेलने का आरोप लगाया है. खाद्य और आपूर्ति मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक कहते हैं, "बर्दवान जिले के किसानों के पास सौ-सौ बीघे जमीन है. उनको गरीब कहना सही नहीं है."

Bauer in West-Bengal
तस्वीर: DW/Prabhakar Mani

मानवाधिकार आयोग ने मांगी रिपोर्ट
किसानों की आत्महत्या के मामलों पर राजनीतिक विवाद शुरू होने के बाद अब राज्य मानवाधिकार आयोग ने इस मामले पर सरकार से रिपोर्ट मांगी है. आयोग के अध्यक्ष जस्टिस नारायण चंद्र सील ने मुख्य सचिव को पत्र भेजकर उनसे एक महीने के भीतर पूरा ब्यौरा देने को कहा है. राजनीतिक दलों की खींचतान के बीच किसानों की आत्महत्या की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं. धान के कटोरे का तमगा अब इन किसानों के लिए एक अभिशाप बनता जा रहा है.

रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता

संपादनः एन रंजन