धूम्रपान का धुंआधार प्रचार
४ मई २०१०श्वसन रोगों के डॉक्टर सैफ़ुद्दीन बेन्नूर ने सिगरेट कंपनियों के एक से एक भ्रामक विज्ञापन देखे हैं. यह कि, धूम्रपान करने से शरीर में ताज़गी आती है, कामक्रिया का भरपूर सुख मिलता है, व्यक्तित्व प्रभावशाली बनता है, इत्यादि. लेकिन, एक देहाती इलाके में उन्होंने एक ऐसा विज्ञापन भी देखा, जिस के कहने का अर्थ था, "यदि कोई महिला धूम्रपान करती है, तो उसका बच्चा छोटा होगा, इसलिए प्रसववेदना कम होगी और प्रसव में आसानी होगी."
इस तरह के भ्रामक विज्ञापनों का चिंताजनक असर हो रहा है. देश में सिगरेट की बिक्री तेज़ी से बढ़ रही है-- विशेषकर युवाओं और महिलाओं के बीच. विश्व स्वास्थ्य संगठन के नवीनतम सर्वेक्षण से सामने आया है कि बंगलादेश की 28 प्रतिशत वयस्क महिलाएं तंबाकू या सिगरेट की रसिया हैं. देश की 43 प्रतिशत वयस्क जनसंख्या किसी न किसी रूप में तंबाकू का उपयोग करती है. 2004 में यह अनुपात 37 प्रतिशत था.
गुमनाम विज्ञापन
वैसे तो बंगलादेश में भी तंबाकू के विज्ञापनों पर 2005 से रोक लगी हुई है, इसलिए अब ऐसे पोस्टरों के माध्यम से विज्ञान किये जाते हैं, जिन पर किसी कंपनी का नाम नहीं होता. इन विज्ञापनों के लिए शायद ही किसी को सज़ा मिल पाती है.
सिगरेट की लत से छुटकारा पाने में लगी 25 साल की एक महिला ने कहा, "मैंने तंबाकू वाली कंपनियों को अपने विश्वविद्यालय परिसर पर प्रचार अभियान चलाते देखा है. उनके लोग छात्रों के पास एक प्रश्नावली लेकर आते हैं और कहते हैं कि उसे भर कर देने पर उन्हें सिगरेट जलाने का लाइटर या टी-शर्ट इनाम में मिल सकता है."
महिलाओं को लुभने से लाभ बढ़ा
सिगरेट कंपनियां समझ गयी हैं कि महिलाओं को लुभा कर अपना लाभ वे आसानी से बढ़ा सकती हैं. बंगलादेश के सिगरेट बाज़ार पर ढाका टोबैको का एक तरह से एकछत्र राज है. बाज़ार का 40 प्रतिशत धंधा उसीके हाथों में है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अधिकारी कहते हैं कि बंगलादेश ही नहीं, एशिया के अन्य विकासशील देश भी-- और विशेषकर उनकी महिलाएं-- सिगरेट कंपनियों के प्रचार अभियान का असली निशाना हैं.
विकसित देशों में स्वास्थ्य और पर्यावरण के प्रति बढ़ती हुई जागरूकता के कारण सिगरेट कंपनियों के पैरों तले की ज़मीन खिसक रही है. इसलिए अब वे एशियाई विकासशील देशों में पैर जमा रही हैं. बंगलादेश में करोड़ों लोगों की दैनिक आय एक डॉलर भी नहीं है, तब भी सिग्रेट कंपनियों की बिक्री एक अरब डॉलर वार्षिक आंकी जाती है.
रिपोर्ट- एएफ़पी, राम यादव
संपादन- उज्ज्वल भट्टाचार्य