नंबर वन पर लगी साइना की नजर
२२ मार्च २०१०साइना नेहवाल पांचवें नंबर की बैडमिंटन खिलाड़ी बनने से खुश तो हैं लेकिन अब उनकी नज़र पहले नंबर पर है. डॉयचे वेले से खास बातचीत में साइना ने कहा कि वह कुछ और टूर्नामेंट खेल कर अपनी रैंकिंग सुधारना और नंबर बन बनाना चाहती हैं.
हाल ही में बर्मिंघम में हुई ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप के सेमीफ़ाइनल में पहुंच कर साइना नेहवाल विश्व की पांचवीं पायदान पर चढ़ गई हैं. लेकिन कैसा है यह सफ़र और क्या हैं दुश्वारियां.
बीजिंग ओलंपिक्स में अपनी प्रतिभा की छाप छोड़ कर साइना घर लौंटी थीं एक नए इरादे और दृढ़ निश्चय के साथ. और उस इरादे को कोर्ट पर अंजाम देती हुई साइना आज बैडमिंटन की दुनिया में एक बड़ा नाम हैं. उनके शानदार प्रदर्शन के लिए देश ने हैदराबाद की इस स्टार को पद्मश्री से नवाज़ा है. "इस छोटी सी उम्र में इस तरह का सम्मान मेरे लिए बहुत मायने रखता है. और यह तब और भी अच्छा लगता है जब मेरी तुलना मेरे कोच गोपीचंद और प्रकाश पादुकोण से की जाती है." कहना है साइना का.
वैसे विश्व स्तर पर पहुंचना किसी के लिए भी मुश्किल होता है. लेकिन सामाजिक रीति रिवाज के कारण भारतीय महिलाओं के लिए यह और भी मुश्किल होता है. लेकिन खुशकिस्मत हैं साइना कि उन्हें अपने माता पिता का भरपूर साथ मिला. वह कहती हैं, "आज मैं जहां भी हूं अपने माता पिता और कोच की वजह से ही हूं. मैं छोटी तो हूं लेकिन जब अपनी उपलब्धियों को देखती हूं तो अपने को बहुत बड़ा महसूस करती हूं." उनका कहना है, "हालांकि आज समाज में बदलाव आ रहा है और माता पिता बेटियों को खेलने भेज रहे हैं लेकिन फिर भी अभी भी कुछ जगह हैं जहां लड़कियों को बिलकुल खेलने नहीं दिया जाता. और मुझे ये बुरा लगता है. तो मैं उन माता पिता से कहना चाहूंगी की बेटियों को खेलने भेजें. जब मैं कर सकती हूं तो कोई भी लड़की टॉप पर आ सकती है."
एक और मुश्किल जो खिलाडियों को अक्सर झेलनी पड़ती है वो है पैसे की. खास तौर से बैडमिंटन जैसे खेल में, जहां स्पॉन्सर कम ही आते हैं. लेकिन हाल में भारतीय बैडमिंटन संघ ने एक कंपनी से आठ करोड़ रुपये का क़रार किया है और साइना इससे खुश हैं. वह कहती हैं, "खेल में पैसा बहुत ज़रूरी है और इस तरह के स्पॉन्सर आने से हम एक मन से खेल में ध्यान लगा सकते हैं. मुझे यकीन है की अगर और स्पॉन्सर आते रहे तो और चैपिंयन्स भी आते रहेंगे."
लेकिन सिर्फ पैसा ही सब कुछ नहीं होता. एक खिलाडी को चैंपियन बनने के लिए ज़रूरी होता है जज्बा और लगन. और साइना में यह दोनों ही भरपूर मात्रा में है. साइना स्कूल के बाद कॉलेज नहीं गईं क्योंकि उनका सारा समय कोर्ट पर गुज़रता रहा. न ही उनका कोई बॉय फ्रेंड है जैसा कि आम तौर पर उनकी उम्र की लड़कियों के साथ होता है. लेकिन साइना को इसका मलाल नहीं. वह कहती हैं, "क्या कर सकते हैं. गेम मेरे लिया जॉब बन गया है. जैसे पापा रोज़ ऑफिस जाते हैं, वैसे मैं प्रैक्टिस को जाती हूं और मुझे गेम से इतना लगाव हो गया की मुझे किसी और चीज़ की चिंता नहीं होती."
देश के युवा खिलाडियों को भी साइना की यही संदेश है. "मन लगा कर काम करो और अपने माता पिता और कोच की इज्ज़त करो. ज़रूर नंबर वन बनोगे."
लेकिन औरो के लिए नंबर वन की कामना करने वाली साइना की अपनी मंजिल क्या है? "और टूर्नामेंट खेलूंगी और जीतूंगी और वर्ल्ड नंबर वन बनूंगी. " साइना की लगन देख कर लगता है की दिन दूर नहीं जब वो इन आखिरी चार सीढ़ियां चढ़ कर टॉप पर पहुंच जाएंगी.