नेताओं और डॉक्टरों का 'घातक' फैसला
२९ दिसम्बर २०१२एयरलाइन कंपनियां चालक दल के सदस्यों को निर्देश देती हैं कि वे सिर्फ जुकाम की हालत में भी फ्लाइट पर न जाएं. ज्यादा ऊंचाई पर जुकाम भी घातक साबित हो सकता है. कान के पर्दे फट सकते हैं. सिर और चेहरे के ऊपर वाले हिस्से में तेज दर्द हो सकता है. जुकाम के बावजूद विमान में यात्रा करने पर कई बार आंखों के आस पास दबाव इतना बढ़ जाता है कि असहनीय दर्द होने लगता है.
30,000 से 32,000 फुट की ऊंचाई पर हवा के दबाव के वजह से शरीर का व्यवहार बदल जाता है. ऐसी स्थिति में किसी मरीज को एक जगह से दूसरी जगह तभी ले जाया जाता है जब उसकी हालत स्थिर हो. स्थिति गंभीर होने पर विमान यात्रा न करने की सलाह दी जाती है. यह मानक तरीका है.
दिल्ली की बलात्कार पीड़िता की हालत बहुत गंभीर थी. इसके बावजूद डॉक्टरों ने उसे सिंगापुर भेजने का फैसला किया. आरोप हैं कि फैसला नेताओं के दवाब में किया गया. भारतीय अखबार द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक यह राजनीतिक फैसला था और डॉक्टरों से यह नहीं पूछा गया कि लड़की को बेहतर इलाज के लिए सिंगापुर भेजा जाना चाहिए या नहीं. डॉक्टरों से सिर्फ यही पूछा गया कि क्या वह सिंगापुर तक यात्रा कर सकती है या नहीं. डॉक्टरों ने जवाब दिया हां. इसके बाद उसे तुरंत एयर एंबुलेंस से सिंगापुर भेज दिया गया.
ऊंचाई पर हालत बिगड़ी
रास्ते में विमान जब 30,000 फुट की ऊंचाई पर था तो लड़की का ब्लड प्रेशर अचानक गिर गया. इसके बाद सिंगापुर से रिपोर्ट आई कि लड़की के सिर में गंभीर चोटें हैं. भारत में करीब 10 दिन तक इलाज के दौरान सफदरजंग के डॉक्टरों ने एक बार भी यह नहीं कहा कि उसके सिर पर ऐसी चोटें हैं. भारतीय डॉक्टर यही कहते रहे कि उसके पेट में गंभीर चोटें हैं. सिर और दिमाग की चोट की बात सिंगापुर पहुंचने पर सामने आई. सिंगापुर के डॉक्टरों ने कहा कि मतिष्क में सूजन की वजह से उसकी मौत हुई.
तो क्या ब्लड प्रेशर गिरने की वजह से उसके सिर में खून का प्रवाह बंद हुआ? मेदांता हॉस्पिटल के क्रिटिकल केयर स्पेशलिस्ट डॉक्टर यतिन मेहता के मुताबिक सिंगापुर ले जाने के बाद उसकी हालत और बिगड़ी, "उसकी हालत दिल्ली से भी बुरी हो गई थी."
डर डर कर सफाई
फिलहाल सरकार और सफदरजंग के डॉक्टर सफाई दे रहे हैं. सफदरजंग अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉक्टर बीडी अथानी के मुताबिक, "पूरी मंशा उसकी जान बचाने की थी. पूरा देश उसके लिए प्रार्थना कर रहा था और बेहतरी की उम्मीद कर रहा था. हमने उम्मीदें नहीं छोड़ी, हम उसकी जान बचाना चाहते थे." लेकिन डॉक्टर अथानी के पास इस बात का जवाब नहीं है कि 30,000 फुट की ऊंचाई पर छात्रा का ब्लड प्रेशर अचानक क्यों गिर गया. क्या डॉक्टरों को इसका अहसास था ब्लड प्रेशर गिरेगा तो वह कैसे निपटेंगे.
अभी यह बात सामने नहीं आई है कि पूरी यात्रा के दौरान विमान किस ऊंचाई पर था. क्या छात्रा की हालत को देखते हुए स्पेशल रूट और कम ऊंचाई में उड़ान भरने की अनुमति मांगी गई थी या नहीं.
भारतीय इलाज पर सवाल
कनाडा और भारत के कई विशेषज्ञ सरकार और सफदरजंग के डॉक्टरों के फैसले पर सवाल कर रहे हैं. सर गंगाराम अस्पातल के विशेषज्ञ डॉक्टर समीरन नंदी कह चुके हैं कि 23 साल की छात्रा को सिंगापुर भेजा जाना ठीक नहीं था. उनका कहना है कि उसके अंगों के ट्रांसप्लांट का मौका आया ही नहीं था क्योंकि उसकी हालत गंभीर बनी हुई थी और सबसे पहले उसकी स्थिति स्थिर करने की चुनौती थी. उसके बाद ही अंगों के प्रत्यारोपण के बारे में सोचा जा सकता था. तर्क दिए जा रहे हैं कि सिंगापुर के अस्पताल में अंगों के प्रत्यारोपण की बेहतर व्यवस्था है.
अब यह भी साफ हो चुका है कि सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ हॉस्पिटल में अंग प्रत्यारोपण के विशेषज्ञ नहीं हैं, बल्कि उनके पास सिर्फ इसका आधुनिक ढांचा है. मीडिया रिपोर्टों में कहा जा रहा है कि यहां अब तक एक बार भी आंतों का प्रत्यारोपण नहीं किया गया है. इसके बावजूद छात्रा को वहां भेजा गया. शनिवार को सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ हॉस्पिटल से छात्रा की मौत की खबर आने के बाद भारतीय गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे भी फौरन बचाव की मुद्रा में आ गए. शिंदे ने कहा, "यह राजनीतिक फैसला कतई नहीं था, मरीज के हित में लिया गया फैसला था. यह सफदरजंग अस्पताल, एम्स और डॉक्टर नरेश त्रेहन की सलाह पर लिया गया फैसला था."
रिपोर्टः ओंकार सिंह जनौटी (रॉयटर्स, एएफपी, पीटीआई)
संपादनः अनवर जे अशरफ