नेपाल में जोश जगाता क्रिकेट
१३ दिसम्बर २०११एशिया के ट्वेन्टी 20 कप में नेपाल की टीम ने भी हिस्सा लिया और मैचों के दौरान फैन्स ने खिलाड़ियों का जम कर उत्साह बढ़ाया. काठमांडू के राष्ट्रीय त्रिभुवन स्टेडियम में 10,000 से ज्यादा लोग जमा हो गए. हालांकि इस स्टेडियम में सिर्फ 8,000 लोग ही जा सकते हैं. यहां बैठने के लिए एक भी सीट नहीं है और लोगों को खड़े होकर ही मैच देखना पड़ता है. कई लोग आस पास के घरों की छतों पर कारों पर चढ़ कर क्रिकेट देख रहे थे.
अभी कुछ साल पहले तक नेपाल में क्रिकेट का कोई नामलेवा नहीं था और बड़े मैचों में भी मुट्ठी भर दर्शक ही जुटते थे. नेपाल क्रिकेट टीम के कप्तान 25 साल के पारस खाडका का कहना है, "दर्शकों की वजह से हमें अच्छा प्रदर्शन करने का प्रोत्साहन मिलता है."
उनका कहना है, "नेपाल क्रिकेट का भविष्य बहुत अच्छा दिख रहा है क्योंकि हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खेल शुरू करने में सफल हो गए हैं. हमें नेपाल की जनता से पूरा सहयोग मिल रहा है और वे हमें वर्ल्ड कप में खेलते देखना चाहते हैं."
आखिरी चार में नेपाल
ट्वेन्टी 20 एशिया कप के सेमीफाइनल में नेपाल को अफगानिस्तान की मजबूत टीम से हार का सामना करना पड़ा. लेकिन उनके अच्छे खेल से उन्हें अगले साल श्रीलंका में होने वाले ट्वेन्टी 20 वर्ल्ड कप क्वालीफायर मुकाबले में शामिल कर लिया गया है. अगर वे मुकाबला जीतने में कामयाब रहे तो वर्ल्ड कप में खेल सकेंगे. नेपाल क्रिकेट के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि है, जहां इस खेल की शुरुआत सिर्फ 15 साल पहले हुई है.
नेपाल में लोगों की औसत आय 60 रुपये रोजाना से भी कम है और पांच साल के बच्चों में 50 प्रतिशत कुपोषण का शिकार हैं. हालांकि नेपाल में फुटबॉल को लेकर लोगों की दीवानगी है लेकिन अब ऐसा समय आ गया है, जब कैफे में बैठ कर लोग राष्ट्रीय क्रिकेट टीम के बारे में बात कर रहे हैं. वे एशिया कप मुकाबले की भी चर्चा कर रहे हैं, जो रविवार को खत्म हो गया.
क्रिकेट का चस्का
काफी मशक्कत के बाद नेपाल का मैच देखने वाली निर्जना शर्मा का कहना है, "मैं नेपाल क्रिकेट टीम की बहुत बड़ी फैन हूं. टीम हमेशा अच्छा प्रदर्शन करती है." अफगानिस्तान से हारने की वजह से नेपाल की टीम फाइनल में नहीं पहुंच पाई. ऐसे में नेपाल के लोगों ने फाइनल में अफगानिस्तान के खिलाफ खेल रही हांग कांग की टीम का समर्थन किया. हर अफगान विकेट के साथ स्टेडियम तालियों से गूंज उठता. करीब 4,000 लोग मैच देखने पहुंचे.
नेपाल स्पोर्ट्स जर्नलिस्ट फोरम के निरंजन राजबंशी का कहना है भारत में क्रिकेट की जैसी दीवानगी है, वैसी तो अभी यहां नहीं हो सकती लेकिन यहां बिलकुल दूसरे तरह का उत्साह देखने को मिल रहा है. उन्होंने कहा, "मैं पूरे एशिया में क्रिकेट ग्राउंड में गया हूं लेकिन जिस तरह के दर्शक यहां हैं, वैसे दूसरी जगहों पर नहीं मिलेंगे."
धीरे धीरे क्रिकेट
ब्रिटेन के उपनिवेशों में क्रिकेट का अच्छा प्रसार हुआ था. लेकिन नेपाल कभी भी किसी देश के अधीन नहीं रहा और इस वजह से वहां क्रिकेट खुद ब खुद नहीं आया. हालांकि नेपाल के राजसी परिवार ने इस खेल को लोकप्रिय बनाने की कोशिश जरूर की. फिर भी नेपाल में क्रिकेट को कभी भी गंभीरता से नहीं लिया गया. फिर 1996 में क्रिकेट विश्व कप के दौरान वहां एक बार फिर लोगों में उत्साह बढ़ा और उसी साल पहली बार राष्ट्रीय नेपाली टीम ने एशिया कप में हिस्सा लिया.
लेकिन इसके बाद माओवादियों के हिंसक दौर में नेपाल में पढ़ाई लिखाई और खेल कूद सब कुछ बुरी तरह प्रभावित हुआ. इस हिंसा में 16,000 लोग मारे गए. बाद में 2006 में एक शांति समझौते पर दस्तखत हुआ, जिसके बाद क्रिकेट फिर से लोकप्रिय होने लगा. मीडिया भी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट मैचों को विस्तार से कवर करने लगा. नेपाल में इस वक्त 72 क्रिकेट ग्राउंड पर 377 सीनियर क्लब हैं. ज्यादातर खिलाड़ी गैरपेशेवर हैं और दूसरे काम के साथ क्रिकेट भी खेलते हैं. हालांकि हाल में नेपाल सरकार ने उन्हें कुछ आर्थिक मदद देने का वादा किया है.
नागरिक डेली के खेल पत्रकार बिनोद पांडे कहते हैं, "फुटबॉल बेशक नंबर एक खेल है लेकिन जिस तरह से क्रिकेट लोकप्रिय हो रहा है, उससे फुटबॉल को चुनौती मिल रही होगी. नेपाल के पास भविष्य में अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट टूर्नामेंटों में खेलने की संभावना बनी हुई है."
रिपोर्टः एएफपी/ए जमाल
संपादनः ओ सिंह