नेपाल में माओवादियों का ज़ोरदार प्रदर्शन
१३ नवम्बर २००९पुलिस अधीक्षक कंछा भंडारी ने बताया, "जब प्रदर्शनकारियों ने सुरक्षा घेरे को तोड़कर निषिद्ध क्षेत्र में घुसने की कोशिश की, तो हमें बल प्रयोग करना पडा." इस साल मई में माओवादियों के सरकार से हटने के बाद यह उनका सबसे बड़ा प्रदर्शन है. इससे कई मंत्रालयों में काम ठप्प पड़ गया. टकराव को टालने के लिए ज़्यादातर सरकारी कर्मचारी अपने घरों पर ही रहे.
नेपाल के सेना प्रमुख रुकमंगुड कटवाल को हटाने के सरकार के फ़ैसले को जब राष्ट्रपति रामबरन यादव ने पलट दिया तो प्रचंड ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफ़ा दे दिया. गुरुवार को सिंह दरबार सरकारी परिसर में प्रदर्शन करने पहुंचे लोगों में से एक संचालाल वाइबा ने कहा, "नेपाल भले ही गणतंत्र बन गया है लेकिन असल मायनों में प्रजा का शासन क़ायम होना अभी बाक़ी है. इस प्रदर्शन से लोगों को कुछ मुश्किलें होंगी लेकिन आगे चलकर यह उनके बेहतर भविष्य को सुनिश्चित करेगा."
पिछले साल हुए चुनावों में माओवादियों ने शानदार कामयाबी हासिल की थी. सत्ता संभालने के बाद उन्होंने राजशाही को ख़त्म करके नेपाल को एक गणतांत्रिक देश घोषित किया. लेकिन सेना प्रमुख की बर्ख़ास्तगी के मुद्दे पर छिड़े विवाद के चलते ही आठ महीने बाद उनकी सरकार गिर गई. माओवादियों का कहना है कि राष्ट्रपति का क़दम असंवैधानिक था. वे इस बारे में माफ़ी की मांग कर रहे हैं. साथ ही राष्ट्र प्रमुख की भूमिका पर एक संसदीय बहस भी चाहते हैं.
गुरुवार का प्रदर्शन नेपाल में पंद्रह दिन तक चलने वाले देशव्यापी प्रदर्शन का हिस्सा है. माओवादियों के नेता पुष्प कमल दहल उर्फ़ प्रचंड ने कहा है कि उनका मुख्य उद्देश्य सेना के ऊपर "असैनिक वर्चस्व" को बहाल करना है. उन्होंने कहा, "जब तक राष्ट्रपति के क़दम को सही नहीं किया जाता, हमारा विरोध जारी रहेगा." माओवादी सांसद बरशानन पुन ने कहा है कि गुरुवार को प्रदर्शनकारियों पर पुलिस की कार्रवाई में 20 लोग घायल हुए हैं.
रिपोर्टः एजेंसियां/ए कुमार
संपादनः एस गौड़