नेशनल पार्क से डेंजर टैग हटाने की भारत की कोशिश
२० जून २०११रविवार से यूनेस्को मुख्यालय में वर्ल्ड हेरिटेज कमेटी की 35वीं बैठक शुरू हुई है और यह 29 जून तक चलेगी. असम से शुरू होने वाला मानस पार्क भूटान तक जाता है और इसे यूनेस्को ने डेंजर की सूची में रख दिया है.
मानस राष्ट्रीय उद्यान के लिए भारत का बचाव करने के लिए अतिरिक्त महानिदेशक(वाइल्ड लाइफ) जगदीश किश्वान, चीफ वाइल्ड लाइफ वॉर्डन सुरेश चांद, वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक विवेक मेनन बैठक में मौजूद रहेंगे.
1992 से मानस राष्ट्रीय उद्यान यूनेस्को की डेंजर सूची में है क्योंकि इस पार्क में उग्रवादियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह बन गई है. यूनेस्को के मुताबिक इस वैश्विक सांस्कृतिक धरोहर को 1992-93 में काफी नुकसान पहुंचा.
समिति ने कहा, राजनैतिक अस्थिरता के कारण 1989 से लेकर 1992 के बीच 30 गैंडों का अवैध शिकार हुआ. भारत सरकार और यूनेस्को के वर्ल्ड हेरिटेज सेंटर के संयुक्त निगरानी अभियान में, जनवरी 1997 में इस तथ्य की पुष्टि हुई कि उद्यान की संरचना को मुकसान पहुंचा है और कुछ प्रजातियों की संख्या कम हो गई है जिसमें एक सींग वाला गैंडा भी शामिल है.
समिति ने यह भी कहा कि केंद्र सरकार, असम की सरकार और पार्क के अधिकारियों ने 1997 में पुनर्वास कार्यक्रम के लिए 23.50 अमेरिकी डॉलर इस्तेमाल किए और इस कोशिश से संतोषजनक प्रगति हुई है.
"चूंकि मानस और उसके आस पास के इलाके में सुरक्षा हालात पहले से ठीक हुए है लेकिन असम में घुसपैठ की आशंका बनी हुई है. उग्रवादी कई बार सेंचुरी से आते जाते हैं. लेकिन इस धरोहर की सुरक्षा, स्थानीय निवासियों का इससे रिश्ता बेहतर हुआ है."
मेनन के मुताबिक मानस को वर्ल्ड हेरिटेज की 'डेंजर' सूची से हटाना भारत के लिए गर्व का विषय होगा. और स्थानीय लोगों के लिए एक प्रोत्साहन भी कि वह इस धरोहर को बचाने के लिए अपने कामों को आगे भी जारी रखें.
मेनन ने पीटीआई समाचार एजेंसी से बातचीत के दौरान कहा, "मानस में 1980 और 1990 के दशक में काफी सकारात्मक परिवर्तन हुए हैं. उस समय अस्थिरता के कारण बहुत नुकसान हुआ. फिलहाल इस उद्यान में पाई जाने वाली कई मुख्य प्रजातियों की संख्या बढ़ी है, उनका स्वास्थ्य भी अच्छा है. साथ ही लोगों का, स्थानीय निवासियों का भी हालात सुधारने में बड़ा योगदान है."
पार्क अधिकारियों ने दावा किया है कि स्थिति बदली है. उनका कहना है कि वहां स्थिरता है और कांपा बोरोगोयारी जैसे बोडो नेता भी मानस के हालात सुधारने में रुचि ले रहे हैं. "गैंडे, हाथी, जंगली भैंसे यहां लाए गए हैं. इनके अलावा कम जाने जाने वाली प्रजातियों, जैसे सफेद परों वाली बत्तख, मणिपुर की बटेर की संख्या भी बढ़ी है. साथ ही असम में पाए जाने वाले खास हिस्पिड खरगोशों की संख्या भी."
रिपोर्टः पीटीआई/आभा एम
संपादनः एस गौड़