नोबेल शांति पुरस्कार आज
११ अक्टूबर २०१३लंबे वक्त से दक्षिण एशिया से किसी को शांति का नोबेल पुरस्कार नहीं दिया गया है. हालांकि भारत की मदर टेरेसा और बर्मा की आंग सान सू ची को ये पुरस्कार पहले दिया जा चुका है. इसके अलावा तिब्बत के धार्मिक गुरु दलाई लामा को भी नोबेल शांति पुरस्कार से नवाजा जा चुका है. पिछले साल यह प्रतिष्ठित पुरस्कार यूरोपीय संघ को दिया गया था, जिस पर विवाद भी हुआ. संघ को यूरोप में शामिल देशों को एकजुट करने के बड़े प्रयासों के लिए यह पुरस्कार दिया गया था.
मलाला पर नजर
पिछले साल तालिबान की गोली का निशाना बनी मलाला यूसुफजई ने दुनिया भर में अपनी छाप छोड़ी है और उसे एक दिन पहले ही यूरोप का प्रतिष्ठित शखारोव पुरस्कार दिया जा चुका है. गोली लगने के बाद गंभीर हालत में पहले पाकिस्तान के फौजी अस्पताल में और बाद में इंग्लैंड में उसका इलाज किया गया. सिर्फ 16 साल की प्रतिभाशाली मलाला अपने इलाके में महिलाओं की शिक्षा का प्रचार करती है.
कई लोगों का कहना है कि सिर्फ 16 साल की उम्र में मलाला के लिए यह पुरस्कार बहुत भारी होगा और अभी से नहीं कहा जा सकता है कि क्या वह जिंदगी भर इसकी प्रतिष्ठा को संभाल पाएगी. स्टॉकहोम शांति रिसर्च संस्थान सिपरी के टिलमन ब्रुक का कहना है, "मैं पक्के तौर पर नहीं कह सकता कि किसी बच्चे को यह पुरस्कार देना सैद्धांतिक रूप से ठीक होगा." उनका कहना है कि कोलंबिया के शांति वार्ताकारों या म्यांमार में बदलाव करने वाले लोगों को यह पुरस्कार दिया जाना चाहिए.
जिन लोगों के नाम पर चर्चा चल रही है, उनमें मलाला के अलावा रूस के मानवाधिकारों की महिला तिकड़ी लुदमिला अलेक्सेयेवा, स्वेतलाना गनुशकिना और लिल्या शिबानोवा का नाम है. इसमें तीसरे नंबर पर यूगांडा की सिस्टर मेरी टरसीसिया लोकोट, उसके बाद ग्वाटेमाला की क्लाउडिया पेजी पाज और पांचवें नंबर पर कांगो के डॉक्टर डेनिस मुकवेगे का नाम है. मुकवेगे को छोड़ कर पहले चारों स्थान पर हार्पविकेन ने महिलाओं के नाम रखे हैं. वह पिछले चार पांच साल से यह सूची बना रहे हैं और अब तक उनका तुक्का नहीं भिड़ा है.
खास अस्पताल
मुकवेगे के नाम को कई लोग सहानुभूति की नजर से देख रहे हैं, जिन्होंने हजारों महिलाओं की मदद के लिए कांगो में एक अस्पताल बनाया है. यहां बलात्कार पीड़ितों के अलावा विदेशी आतंकवादियों और सैनिकों से प्रताड़ित महिलाओं का इलाज होता है. इतिहासकार एसले स्वीन का कहना है, "कमेटी के पांच सदस्यों को कांगो के इस महिला रोग विशेषज्ञ के हक में वोट देना चाहिए."
लेकिन इन कयासों के अलग सच्चाई तो यह है कि नोबेल शांति पुरस्कार देने वाली समिति बंद कमरों में फैसले करती है और किसी को कानों कान इसकी भनक नहीं पड़ती. जनवरी में नामांकन के बाद से इन नामों पर अलग अलग स्तर पर विचार होता है और उनके काम को लेकर चर्चाएं होती हैं. बाद में कुछ नामों को छांट लिया जाता है और उन पर विशेष तौर पर ध्यान दिया जाता है. कई बार इस बात की मांग उठी है कि नोबेल शांति समिति में दुनिया भर के विशेषज्ञों को शामिल किया जाए, ताकि पुरस्कारों को लेकर कम से कम लोगों में मतभेद हो. लेकिन अब तक ऐसा नहीं हुआ है. इसमें आम तौर पर रिटायर नेता शामिल होते हैं.
कुछ नामों पर विवाद
पिछले साल जब यूरो संकट में घिरे यूरोपीय संघ को नोबेल शांति पुरस्कार देने का फैसला हुआ, तो कई तरह के सवाल उठे. इसके अलावा 2009 में अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा को उनके कार्यकाल के पहले ही साल में नोबेल पुरस्कार दिया गया था. उन्होंने तकनीकी तौर पर 20 जनवरी को पदभार संभाला था, जबकि नोबेल शांति पुरस्कार नामांकन की आखिरी तारीख 31 जनवरी होती है. इस तरह उनके राष्ट्रपति बनने के 10 दिन के भीतर ही उनका नाम भेज दिया गया था.
पूरी दुनिया को अहिंसा का पाठ सिखाने वाले भारत के महात्मा गांधी को नोबेल का शांति पुरस्कार नहीं दिया गया, जिसके लिए नोबेल शांति समिति बार बार माफी मांगती है. गांधीजी का नाम चार बार नामांकित किया गया, जिसमें 1948 का साल भी शामिल है. लेकिन 30 जनवरी को उनकी हत्या हो गई. नोबेल पुरस्कार सिर्फ जीवित लोगों को ही दिए जाते हैं, लिहाजा उनका नाम हटाना पड़ा.
एजेए/एमजे (रॉयटर्स, एपी, एएफपी)