पथरीली है फुटबॉल लीग की राह
२२ फ़रवरी २०१२वर्ल्ड कप विजेता इटली के फाबियो कानावारो और फ्रांस के अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी रॉबर्ट पिरेस सहित बड़े फुटबॉल सितारों वाले आयोजन को आगे बढ़ा दिया गया है. पीएलएस का आयोजन करने वाली कंपनी के सीईओ धर्मदत्त पांडे ने बताया, "राज्य सरकार के साथ इस बारे में बातचीत चल रही है लेकिन अगर एक हफ्ते में हल निकल भी आए तो भी हमें मैदान तैयार करने के लिए वक्त की जरूरत होगी."
सर मुंडाते ही ओले
पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता को फुटबॉल का मक्का कहा जाता है. लेकिन इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) की तर्ज पर यहां होने वाले फुटबाल टूर्नामेंट प्रीमियर सॉकर लीग (पीएसएल) के साथ सर मुंडाते ही ओले पड़े वाली कहावत चरितार्थ हो रही है. पहले तो इसके लिए छह टीमों और दर्जनों जाने माने विदेशी खिलाड़ियों की नीलामी हुई. लेकिन बाद में ऑल इंडिया फुटबाल फेडरेशन (एआईएफएफ) ने पीएलएस पर फीफा के ट्रांसफर मैचिंग सिस्टम में शामिल होने पर रोक लगा दी. नतीजतन स्थानीय खिलाड़ियों की नीलामी का कार्यक्रम टालना पड़ा. फीफा के हस्तक्षेप के बाद अब वह रोक हटा ली गई है.
पहला टूर्नामेंट
पीएसएल फुटबाल अपने किस्म का पहला टूर्नामेंट है. इंडियन फुटबाल एसोसिएशन (आईएफए) और स्पोर्ट्स मैनेजमेंट फर्म सीएमजी ने इसका खाका तैयार किया है. इसके तहत पहले छह टीमों की नीलामी की गई. इनमें कोलकाता के अलावा बारासात, हावड़ा, हल्दिया, दुर्गापुर और सिलीगुड़ी की टीमें शामिल थीं. दिलचस्प बात यह है कि नीलामी के दौरान उत्तर 24 परगना जिले में स्थित बारासात की टीम ने कोलकाता को भी पीछे छोड़ दिया.
बारासात की बोली लगी 25.15 करोड़ रुपये. उसकी कीमत 80 लाख रुपये रखी गई थी. कोलकाता की टीम 11.5 करोड़ में बिकी और सिलीगुड़ी की 18 करोड़ रुपये में. लेकिन हल्दिया की टीम को खरीददार नहीं मिला. आईपीएल की तरह ही इसमें हर टीम चार विदेशी खिलाड़ियों को खरीद सकती है. विदेशी खिलाड़ियों की नीलामी के दौरान अर्जेंटीना के क्रेस्पो, इटली के विश्वकप विजेता कप्तान फैबियो कैनावारो और फ्रांस के राबर्ट पिरेस जैसे मशहूर फुटबॉलर लगभग आठ आठ लाख डॉलर में खरीदे गए. कीमत के मामले में क्रेस्पो बाकियों पर भारी साबित हुए. उनको 8.40 लाख डॉलर में खरीदा गया. उनके बाद कैनावारो को 8.30 लाख डॉलर मिले और पीरेस को आठ लाख डॉलर.
कोच भी विदेशी
अब तक जो पांच टीमें बिकी हैं, उनके कोच भी विदेशी हैं. उनको भी दो से ढाई लाख डॉलर तक की भारी भरकम रकम दी गई है. फुटबालर बाइचुंग भूटिया को बारासात टीम का ब्रांड अंबेसडर बनाया गया है. भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली के भी इस टीम से जुड़ने की खबरें हैं. लेकिन अभी इसकी पुष्टि नहीं हुई है. आईएफए फिलहाल छठी टीम के लिए भी खरीदार तलाशने में जुट गया है. लंदन की एक फर्म को इस टूर्नामेंट के टीवी प्रसारण अधिकार बेचने का जिम्मा सौंपा गया है. दुनिया भर के 50 देशों में इस टूर्नामेंट के सीधे प्रसारण का दावा किया जा रहा है.
समस्या की वजह
पीएसएल के लिए भारी भरकम खर्च कर पांच टीमों और कई विदेशी फुटबॉलरों की नीलामी तो हो गई. लेकिन भारतीय खिलाड़ियों की नीलामी से ठीक पहले एआईएफएफ ने यह कह कर इसकी राह में रोड़ा अटका दिया कि वह फीफा के ट्रांसफर मैचिंग सिस्टम में शामिल नहीं हो सकती. उसकी दलील थी कि पीएसएल में शामिल टीमें फेडरेशन से जुड़ी नहीं हैं. बंगाल में फुटबॉल का संचालन करने वाले आईएफए ने जब टीमों के दर्जे के बारे में कागजात सौंपे तब जाकर फेडरेशन ने इसकी अनुमति दी.
लेकिन उसके पहले ही स्थानीय खिलाड़ियों की नीलामी स्थगित की जा चुकी थी. अब यह नीलामी बाद में होगी. पहली बाधा पार करने के बावजूद पीएसएल की राह अबी पूरी तरह साफ नहीं है. फेडरेशन ने विभिन्न घरेलू प्रतियोगिताओं में खेलने वाले भारतीय खिलाड़ियों को पीएसएल में शामिल होने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है. उसकी दलील है कि पीएसएल एक राज्य स्तरीय टूर्नामेंट है. इस फैसले ने शुरू होने से पहले ही पीएलएस की चमक फीकी कर दी है. अब आगे सब कुछ ठीक ठाक भी रहा तो विदेशी खिलाड़ियों को सात सप्ताह तक चलने वाले इस टूर्नामेंट में जिला स्तर के अनाम खिलाड़ियों के साथ कंधे से कंधा मिला कर खेलना पड़ेगा. आईपीएल और पीएलएस में यहीं मूल फर्क है.
आयोजकों को उम्मीद
आईएफए के सचिव उत्पल गांगुली कहते हैं, "पहले कुछ समस्याएं थीं. लेकिन अब उनको दूर कर लिया गया है. हम सही रास्ते पर बढ़ रहे हैं." गांगुली कहते हैं कि जल्दी ही भारतीय खिलाड़ियों की नीलामी की जाएगी. वह कहते हैं कि इस टूर्नामेंट के आयोजन से राज्य के विभिन्न जिलों में फुटबॉल का ढांचा विकसित और मजबूत करने में काफी सहायता मिलेगी. इससे फुटबॉल के प्रति आम लोगों में घटते आकर्षण को भी लौटाने में मदद मिलेगी. इस खेल के प्रति आकर्षण बढ़ाने के लिए टूर्नामेंट के कुछ मैच दूधिया रोशनी में कराए जाएंगे.
भारतीय फुटबाल पर असर
पीएसएल का भारतीय फुटबाल पर आखिर कितना और कैसा असर होगा? टूर्नामेंट के आयोजन से पहले ही यह सवाल उठने लगा है. इसकी सबसे बड़ी वजह यह है कि भारत के जाने माने खिलाड़ियों को इसमें शामिल होने की अनुमति नहीं मिली है. यह सवाल भी पूछा जाने लगा है कि जब विभिन्न घरेलू टूर्नामेंटों के बावजूद देश में फुटबाल का स्तर अपेक्षित रूप से नहीं सुधरा है तो पीएलएस को इसमें कितनी कामयाबी मिल पाएगी. हां, यह जरूर है कि इससे फुटबाल प्रेमियों को जिला स्तर पर विदेशी फुटबॉलरों के अलावा बाइचुंग, विजयन और अंचेरी जैसे देशी फुटबालरों को अपनी आंखों के सामने खेलते देखने का दुर्लभ मौका मिलेगा.
कुछ लोग सवाल उठा रहे हैं कि क्या इस टूर्नामेंट के आयोजन पर भारी भरकम खर्च की बजाय उस रकम का इस्तेमाल प्रतिभावान फुटबॉलरों को तराशने और देश में फुटबाल ढांचे को मरम्मत करने पर नहीं किया जा सकता था? कोलकाता ही नहीं, बल्कि पूरा बंगाल पहले से ही फुटबॉल का दीवाना रहा है. इसी दीवानगी की वजह से पेले, माराडोना, ओलिवर कान और डेविड फोरलान जैसे कई फुटबालर और बायर्न म्यूनिख जैसी टीम भी कोलकाता का दौरा कर चुकी है. ईस्ट बंगाल और मोहन बागान जैसी दो चिर प्रतिद्वंद्वी टीमों के बीच मैच देखने के लिए राज्य के कोने कोने से लोग कोलकाता पहुंचते रहे हैं. अपनी प्रिय टीम के हारने की स्थिति में मारपीट भी आम है.
लोग अपनी टीमों के साथ भावनात्मक स्तर पर जुड़े हैं. क्या पीएलएस इन खेल प्रेमियों के साथ वैसा ही भावनात्मक लगाव पैदा करने में कामयाब रहेगा या फिर यह सब महज एक तमाशा बन कर रह जाएगा ? इस लाख टके के सवाल के जवाब का इंतजार तो आयोजकों को भी है. पथरीली राह पर बढ़ते हुए यह टूर्नामेंट अपनी कैसी छाप छोड़ेगा, इसका पता तो आयोजन के बाद चलेगा. लेकिन कम से कम आयोजक तो इसके भारतीय फुटबाल का एक नया अध्याय होने का दावा कर रहे हैं.
रिपोर्टः प्रभाकर,कोलकाता
संपादनः ए जमाल