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परमाणु सुरक्षा पर चिंतित भारतीय वैज्ञानिक

८ अप्रैल २०११

जापान की परमाणु दुर्घटना के बाद भारतीय वैज्ञानिक भी देश में परमाणु रिएक्टरों की सुरक्षा पर अपनी चिंता व्यक्त कर रहे हैं. इस सिलसिले में उन्होंने एक खुले पत्र में परमाणु नीति पर पुनर्विचार की मांग की है.

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कलपक्कम का परमाणु बिजलीघरतस्वीर: AP

भारत में इस समय 20 परमाणु रिएक्टर हैं, जिनसे 4,560 मेगावाट बिजली पैदा की जाती है. सरकार की योजना है कि सन 2032 तक 175 अरब डॉलर की लागत से 21 विदेशी रिएक्टर खरीदे जाएं, जिसके बाद परमाणु ऊर्जा की कुल क्षमता 63 हजार मेगावाट के बराबर हो जाएगी.

लेकिन इस बीच भारत के रिएक्टरों में सुरक्षा के सवाल पर चिंता जताई जा रही है. आणविक ऊर्जा नियंत्रण बोर्ड एईआरबी के पूर्व अध्यक्ष ए गोपालकृष्णन ने कहा है कि भारत में किसी भी प्रकार की आपात स्थिति से निपटने की प्रणाली अत्यंत अव्यवस्थित है. उन्होंने कहा कि एईआरबी का आपात प्रबंधन सिर्फ कागज पर है और कभी कभी होने वाले अभ्यास आधे मन से किए जाते हैं.

इस बीच इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ साइंस के पूर्व प्रधान पी बलराम सहित कई वैज्ञानिकों ने एक खुले पत्र में कहा है कि जापान का परमाणु संकट आंख खोल देने वाली घटना है और उन्होंने सरकार से मांग की कि वह अपनी परमाणु नीति पर फिर से आमूल रूप से विचार करे. इस पत्र पर हस्ताक्षर करने वालों में शामिल हैं एईआरबी के पूर्व अध्यक्ष ए गोपालकृष्णन, नौसेना के पूर्व प्रमुख एल रामदास, पूर्व ऊर्जा सचिव ईएएस शर्मा व अमेरिका में भारत के पूर्व राजदूत निरुपम सेन. पी बलराम ने एक वक्तव्य में कहा है कि जब तक ऐसा नहीं होता है, देश की सारी परमाणु गतिविधियां स्थगित कर देनी चाहिए और परमाणु परियोजनाओं को दी गई स्वीकृति रद्द कर देनी चाहिए.

इस बीच चाणक्य संस्थान द्वारा किए गए एक सर्वे से पता चला है कि 77 फीसदी लोग आणविक सुरक्षा के सवाल पर चिंतित हैं और 69 फीसदी का मानना है कि भारत वे परमाणु दुर्घटना से निपटने के लिए वैसी व्यवस्था नहीं है, जैसी कि जापान में थी.

रिपोर्ट: एजेंसियां/उभ

संपादन: ओ सिंह

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