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पाकिस्तान के चुनाव में हिंदू आवाज

१५ अप्रैल २०१३

दो बिस्तर, पांच गद्दे कुछ बर्तन और 1400 रूपये की जमा पूंजी लेकर वीरो कोल्ही पाकिस्तान के चुनाव में खम ठोंकने निकली हैं. उनके पास दौलत की ताकत तो नहीं लेकिन गरीब वोटरों का भरोसा है जो नेताओं के झूठे वादों से परेशान हैं.

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तस्वीर: Reuters

चुनावी अभियान में कोल्ही नई पहचान बन कर उभरी हैं. चुनावी अखाड़े में वो पहली ऐसी उम्मीदवार हैं जो जागीरदार जैसे किसी जमींदार के चंगुल से भाग कर आई हैं. ये जमींदार आधुनिक युग में भी अपने कर्मचारियों से गुलामों जैसा बर्ताव करते हैं. हैदराबाद के बाहरी हिस्से में एक कमरे के मिट्टी के घर में रहने वाली वीरो कोल्ही ने समाचार एजेंसी रॉयटर्स से कहा, "जमींदार हमारा खून चूस रहे हैं, उनके मैनेजर दलालों की तरह व्यवहार करते हैं, वो हमारी बेटियों को उठा ले जाते हैं और जमींदारों के हवाले कर देते हैं."

अपने समर्थकों के लिए कोल्ही बड़ी उम्मीद हैं. पाकिस्तान की सत्ता में पहली बार लोकतांत्रिक बदलाव होने जा रहा है और इन लोगों को उम्मीद है कि इस्लामी चरमपंथ, राजनीतिक उठापटक और अल्पसंख्यकों पर जुल्म से परेशान देश इन चुनावों से प्रगति की ओर जाएगा. कोल्ही के जीतने की उम्मीद पर आशंका जताने वालों की कमी नहीं है और इससे यह भी पता चलता है कि 11 मई के चुनाव से बहुत कुछ बदलेगा नहीं, लेकिन इससे उनकी कोशिश की अहमियत कम नहीं होती. 50 साल से ऊपर की वीरू कोल्ही 20 बच्चों की नानी दादी हैं.

Pakistan Veero Kolhi Wahlkampagne in Hyderabad
तस्वीर: Reuters

भारी हंसी वाली कोल्ही बोलने को कहो तो फर्राटे से शुरू हो जाती हैं, लेकिन कलम चलाना हो तो अपने नाम से आगे बात बढ़ती नहीं. कोल्ही पहले पाकिस्तान में बंधुआ मजदूर थीं. देश में बंधुआ मजदूरी गैरकानूनी तो है लेकिन बड़े पैमाने पर फैली हुई है. यहां के जमींदार मामूली कर्ज न चुका पाने की हालत में पूरे पूरे परिवार को अपना गुलाम बना कर रखते हैं. कोई दो दशक पहले अपने मालिक के चंगुल से भागी कोल्ही ने पुलिस और कोर्ट के साथ मिल कर अपनी तरह के हजारों मजदूरों को सिंध प्रांत से आजाद करवाया. इनमें से ज्यादातर उनकी तरह हिंदू हैं.

इसी साल 5 अप्रैल को कोल्ही ने अपने सफर में एक नया मुकाम हासिल कर लिया जब हैदराबाद की अदालत ने उनके चुनाव लड़ने के अधिकार पर सहमति की मुहर लगा दी. किसी राजनीतिक पार्टी ने उन्हें समर्थन नहीं दिया है. ऐसे में उनकी आजाद उम्मीदवारी, जरदारी की सत्ताधारी पार्टी का गढ़ माने जाने वाले सिंध में कुछ खास असर डाल सकेगी कहना मुश्किल है. हां इतना जरूर है कि कोल्ही को पसंद करने वालों को उनकी जूझारू मिजाज की एक और बानगी मिल गई है. उनके समर्थकों में ज्यादातर उन लोगों का परिवार है जो उनकी मुहिम की वजह से आजाद हो सके. हैदराबाद के आजाद नगर में रहने वाले इन्हीं में से एक ठाकोरो भील कहते हैं, "कभी मैं केवल काली चाय पीता था, अब मैं दूध वाली चाय भी पी सकता हूं. अब मैं अपने फैसले खुद करता हूं. यह सब केवल वीरो की वजह से हो सका."

Pakistan Veero Kolhi Wahlkampagne in Hyderabad
तस्वीर: Reuters

नंगे पांव आधी रात में

लाखों भूमिहीन लोगों की तरह ही कोल्ही की मुसीबत भी कोई एक पीढ़ी पहले शुरू हुई, जब भारत से लगते थार मरूस्थल में उनका गांव भयानक सूखे की चपेट में आ गया. उनके मां बाप भूख की मार से बचने के लिए सिंध में चले आए, जहां मिर्च और सूर्यमुखी की खेती होती है. कोल्ही की शादी एक किशोर से कर दी गई, लेकिन उसका पति कर्ज के जाल में फंस गया जिसके बाद कोल्ही को 10-10 घंटे तक कपास चुनने जाना पड़ता. इस दौरान यह डर भी बना हुआ था कि जमींदार उनकी बेटी गंगा के लिए कहीं कोई पति न चुन दे जो अब 10 साल की हो गई थी.

Pakistan Veero Kolhi Wahlkampagne in Hyderabad
तस्वीर: Reuters

एक रात कोल्ही हथियारबंद गार्डों को चकमा दे कर नंगे पांव ही भाग निकली और एक गांव पहुंच कर उनसे मदद मांगी. कोल्ही के पति की इस दौरान खूब पिटाई हुई लेकिन वह किसी तरह एक मानवाधिकार कार्यकर्ता तक पहुंचने में कामयाब रही जिसने पुलिस तक उसकी फरियाद पहुंचाई. पुलिस पहले तो जमींदार पर हाथ डालने से कतराती रही, लेकिन कोल्ही ने उसके बाद पुलिस स्टेशन पर भूख हड़ताल शुरू कर दी. तीन दिन के अनशन के बाद पुलिस ने 40 लोगों को रिहा कराया. इस दौरान क्या उन्हें डर नहीं लगा? कोल्ही बताती हैं, "डर तो बहुत लगा लेकिन मुझे उम्मीद थी कि मैं अपने और अपने परिवार के लिए आजादी हासिल कर लूंगी, इसलिए मैं भागती रही."

अब कोल्ही के दिन धूल भरी सड़कों पर एक टूटी फूटी सुजुकी मिनीवैन से प्रचार करने में बीतते हैं. इस वैन पर चे ग्वेरा के स्टीकर लगे हैं, एक पुराना मेगाफोन भी है और गोल्ड लीफ के सिगरेट पी कर वो अपने दिमाग की थकान उतारती हैं. कोल्ही को अपने समर्थकों से मिलना खूब पसंद है और दोनों हथेलियां महिलाओं के सिर पर रख कर उन्हें संरक्षण का भरोसा देती हैं. हालांकि करीब 1 लाख 33 हजार वोटरों वाले चुनाव क्षेत्र के बहुत थोड़े हिस्से तक ही अब तक वो पहुंच पाई हैं. इलाके में जीतने के आसार शरजील मेमन के जताए जा रहे हैं जो असरदार कारोबारी और पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सिपहसलार हैं, लेकिन कोल्ही की उभरती चमक से उनकी आंख भी तो चुंधिया ही रही होगी.

एनआर/एमजे (रॉयटर्स)

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