पाकिस्तान में 'अनचाहे' हजारा
१८ फ़रवरी २०१३पिछली बार एक बिलियर्ड्स क्लब और इस बार एक बड़ी इमारत. शिया मुसलमानों के हजारा समुदाय पर 2013 में लगातार दूसरा हमला हुआ. अल कायदा और तालिबान के हमलों में उलझे परमाणु हथियार संपन्न देश के लिए सुन्नी चरमपंथी एक और मुश्किल बन कर उभरे हैं. करीब साढ़े पांच लाख की आबादी वाले शिया मुसलमान गुस्से से भरे पड़े हैं और उनके कभी भी फट पड़ने का खतरा पैदा हो गया है.
लश्कर ए जंगवी नाम (एलईजे) की एक सुन्नी चरमपंथी संस्था ने हमलों की जिम्मेदारी ली है और शिया मुसलमानों का गुस्सा बलूचिस्तान से होता हुआ राजधानी इस्लामाबाद तक पहुंच चुका है. राजधानी में एक प्रदर्शन के दौरान शिया कार्यकर्ता हसन रजा ने कहा, "हमें पता है कि इसके पीछे एलईजे का हाथ है और हम चाहते हैं कि सरकार संस्था के खिलाफ कदम उठाए."
सरकार का सिरदर्द
पाकिस्तान में पहली बार कोई सरकार पांच साल का अपना कार्यकाल पूरा कर रही है. लेकिन सत्ताधारी पीपीपी के वक्त देश के अंदर चरमपंथ और आतंकवाद बेतहाशा बढ़ा है. ऊपर से महंगाई और राजनीतिक विरोध की वजह से सरकार हमेशा सवालों में रही है. दो बार प्रधानमंत्री बनाए गए, जिनमें से एक को पद छोड़ना पड़ा और दूसरा भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरा है. ऊपर से शिया सुन्नी की दरार और चौड़ी होती गई.
क्वेटा में ताजा हमले के बाद आलम यह था कि दो दिनों तक लोग 70 लाशों के साथ खड़े रहे और मांग करते रहे कि जब तक इलाका सेना के सुपुर्द नहीं किया जाता, वे लोग इन्हें नहीं दफनाएंगे. हालांकि उनकी कब्रें तक तैयार हो चुकी थीं. "शियाओं का कत्लेआम बंद करो" के नारों के बीच क्वेटा में उनके एक रहनुमा सैयर मुहम्मद हादी ने कहा, "हमारी मांगें बनी हुई हैं कि शहर को सेना के हवाले किया जाए और आतंकवादियों की निशानदेही करके उन्हें खत्म किया जाए."
इलाके के हिसाब से पाकिस्तान के सबसे बड़े सूबे बलूचिस्तान की सुरक्षा की जिम्मेदारी अर्धसैनिक बलों पर है, लेकिन यहां के लोगों का कहना है कि वे सुरक्षा में दिलचस्पी नहीं लेते. पाकिस्तान में हजारा समुदाय के ज्यादातर लोग बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा में रहते हैं.
कौन हैं हजारा
मंगोल और तुर्क मूल के हजारा समुदाय का जिक्र कोई 1000 साल से होता आया है. समझा जाता है कि हिन्दुस्तान पर चंगेज खान और बाद में मुगल आक्रमण के वक्त हजारा समुदाय तेजी से फैला. वे मुसलमानों के शिया पंथ को मानते हैं और अपने खास नैन नक्श की वजह से आसानी से पहचाने जा सकते हैं. इसलिए सुन्नी चरमपंथियों को उन्हें निशाना बनाने में आसानी होती है. अफगानिस्तान में करीब 10 फीसदी हजारा समुदाय के लोग हैं.
करीब 200 साल पहले ब्रिटिश भारत में हजारा समुदाय के लोग अफगानिस्तान से प्रवास कर पाकिस्तानी हिस्से में पहुंचे, जहां वे सर्दियों में सड़क बनाते और खान में काम करते थे. ब्रिटिश सरकार ने उनका इस्तेमाल अफगानिस्तान के खिलाफ जंग में भी किया. भारत से अलग होने के बाद सुन्नी राष्ट्र पाकिस्तान ने हजारा समुदाय को कभी नहीं अपनाया. उलटे पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई पर आरोप है कि उसने शिया मुसलमानों पर निशाना साधने वाले सुन्नी चरमपंथियों को बढ़ावा दिया, ताकि ईरान से मुकाबला किया जा सके. ईरान की ज्यादातर आबादी शिया मुसलमानों की है. मुहम्मद मूसा के तौर पर पाकिस्तान में एक हजारा सेना प्रमुख जरूर हुआ है लेकिन इसके अलावा उनकी भागीदारी नगण्य रही है.
एजेए/एमजी (एएफपी, एपी, रॉयटर्स)