पापी पेट भूत भी बना देता है
६ मार्च २०११भूत बनना 65 साल के गोपाल का पेशा है. उनका वजन है महज 24 किलो. नरकंकाल जैसी कद काठी ने गोपाल को पश्चिम बंगाल के दक्षिण 24 परगना जिले के पाकुड़तला गांव में चलता फिरता भूत बना दिया है. वह बरसों से मेले और नाटकों में भूत बनते आ रहे हैं. मेकअप में उनको देख कर यह बताना मुश्किल है कि वे आदमी हैं या सचमुच के भूत. शक्ल सूरत और बनावट ऐसी कि कम रोशनी में सामने पड़ जाएं तो बच्चे तो बच्चे, बड़े बड़े साहसियों का कलेजा भी कांप उठे.
गोपाल इतने लंबे अरसे से भूत बन कर रहे हैं कि कभी-कभी उनको भी भ्रम हो जाता है कि वह भूत हैं या इंसान. खुद गोपाल ही ऐसा कहते हैं. गोपाल को उसके असली नाम से कम लोग ही पहचानते हैं. लेकिन इलाके में कोई भी यह बता सकता है कि चलते फिरते भूत का गांव कौन सा है. गोपाल बताते हैं, "बचपन से ही दो वक्त का खाना नहीं मिलने के कारण मैं कुपोषण का शिकार हो गया. जब खाने के लिए पैसे नहीं थे तो डॉक्टर को कहां से दिखाता? पैसों की कमी से ही अपने दो बेटों को पढ़ा लिखा नहीं सका."
पेट की खातिर
अब शरीर साथ नहीं देता. फिर भी पेट के लिए काम तो करना ही पड़ता ही है. हां, दूर दूर से नाटकों में भूत की भूमिका के प्रस्ताव मिलते हैं. वह जाते भी हैं. दरअसल, बरसों से यही उनका मुख्य पेशा बन गया है. लेकिन उस भूमिका के एवज में पहले रोजाना 30 रुपये मिलते थे. अब 60 रुपये मिलते हैं. हां, खाना पीना मुफ्त मिल जाता है.
क्या अपनी शारीरिक बनावट व वजन कम होने के कारण कभी कोई दिक्कत नहीं हुई? वह बताते हैं, "नहीं. जीवन में हर काम किसी सामान्य आदमी की तरह ही किया. अब तक कभी कोई गंभीर बीमारी नहीं हुई. शादी हुई. दो बेटे भी हुए. अब बड़े बेटे की भी शादी हो चुकी है. पत्नी मालती हालदार व दोनों बेटे दूसरे के खेतों में काम करते हैं. मेरे पास जमीन का एक छोटा-सा टुकड़ा है."
कब्जे में किए भूत
गोपाल की पुत्रवधू वंदना बताती है कि बाबूजी को नींद की कोई समस्या नहीं है. लेकिन खाना पीना काफी कम हो गया है. "सुबह और रात में रोटी या मुढ़ी खा लेते हैं." वहीं बैठे गोपाल बताते हैं, "कमजोरी के कारण कभी कभी चक्कर आते हैं. लेकिन कभी किसी डॉक्टर को नहीं दिखाया."
इलाके में भूत का पर्याय बन चुके गोपाल का कहना है कि लोग कहते हैं कि उन्होंने भूतों को अपने कब्जे में कर रखा है. वही लोग उन्हें असली भूत जैसा बना देते हैं. इतने लंबे अरसे से भूत बन रहे हैं कि अब तो कभी कभी लगता है कि वह सचमुच भूत ही हैं. वह कहते हैं, "साल में छह महीने भूत बनने की भूमिका मिलती है. तब कुछ पैसे मिल जाते हैं. बाकी समय तो खेतों में काम करते या बैठ कर शतरंज खेलने में ही बीतता है. लेकिन भूत का मेकअप करने के बाद खासकर बच्चे और महिलाएं देख कर काफी डर जाती हैं."
10 मिनट में भूत
गोपाल के पास एक छोटे से बक्से में भूत के मेकअप का सामान है. मेकअप कर भूत बनने में उनको महज 10 मिनट लगते हैं. उनके गांव के लोग बताते हैं कि बचपन से ही गोपाल की शक्ल भूत जैसी है. उनकी मां भी दुबली पतली ही थी.
स्थानीय डॉक्टर अब्दुल हसन बताते हैं, "कुपोषण के अलावा हार्मोन की कमी या आनुवांशिक कारणों से भी किसी वयस्क व्यक्ति का वजन 24 किलो से कम हो सकता है. पूरी जांच के बिना कुछ कहना संभव नहीं है." लेकिन गोपाल बाबू को डॉक्टरों की बातों की कोई फिक्र नहीं है. वह तो फिलहाल भूत बनने के लिए मुर्शिदाबाद जिले के एक मेले में जाने की तैयारी कर रहे हैं.
रिपोर्टः प्रभाकर, कोलकाता
संपादनः ए जमाल