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पिस रहे हैं सोना कूटने वाले

२७ अप्रैल २०१२

उनका काम एक जैसा, पीठ दुखाने वाला और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है. लेकिन म्यांमार के युवा सोना कूटने की परंपरा को गर्व के साथ आगे ले जा रहे हैं.

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सोने की कुटाई करते मांडले के युवातस्वीर: DW

बड़ा सा हथौड़ा लिए वार पर वार करते थांत मिंत ती के चेहरे पर पसीने की बूंदे चमकती हैं. उनकी मांसपेशियों पर इसका असर देखा जा सकता है. मंडले में वह पांच घंटे से सोने पर हथौड़ा चला रहे हैं. वे कहते हैं, "यह पीठ तोड़ने वाला काम है. इसमें काफी ताकत लगती है." थांत मिंत ती 15 साल से यह काम कर रहे हैं. एक जैसी गति वाले इस काम की आवाज दुकान के सामने से सुनी जा सकती है और म्यात पार यात के अधिकतर घरों में सुनाई देती है.

50 परिवार हैं, जो कई पुश्तों से पारंपरिक धंधा कर रहे हैं, सोने का वरक बनाने का काम. कुछ परिवार छोटे हैं कुछ बड़ी कंपनियां बन गई हैं. चो सोए विन की कंपनी उनके दादाजी ने बनाई थी. यह परंपरा उनके घर में सौ साल से चली आ रही है.

Die Goldklopfer von Mandalay
बांस और हिरण की खाल में लिपटा सोनातस्वीर: DW

पारंपरिक काम

चो सोए विन के लिए करीब 100 लोग काम करते हैं. दुकान में सोना कूटने वाले लोग पास पास खड़े रहते हैं. दुबले पतले लेकिन ताकत से भरपूर, खुले सीने वाले ये लोग हल्के झुके हुए एक साथ सोने पर हथौड़ा मारते हैं. यहां सुनार की भी सौ है और लुहार की भी सौ.

सोना बांस के पेपर और हिरन की चमड़ी में बंद रहता है, इसे तीन किलो के हथौड़े से ठोंका जाता है. चो सोए विन बताती हैं, "पहले आधे घंटे सोने की कुटाई होती है फिर एक घंटा और फिर पांच घंटे."

सोने की पत्ती बनाने का तरीका सदियों से वही है. आज भी सोने की गढ़ाई में बहुत कम जगहों पर मशीनों का इस्तेमाल होता है. एक ग्राम सोने से 200 महीन वरक बनाए जाते हैं.

समय का नाप

बिलकुल पारंपरिक तरीके से कूटने का समय गिना जाता है, हर घंटे पर शिफ्ट बदलती है. जल घड़ी बताती है कि समय कब खत्म होगा. पानी के बर्तन में नारियल का छिलका होता है, इसमें एक छोटा सा छेद होता है. ठीक एक घंटे में यह नीचे डूब जाता है. इसके डूबने पर 15 मिनट का ब्रेक मिलता है.

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हवा से दूर महिलाओं का कामतस्वीर: DW

थांत म्यिंत ती दुकान के सामने सुपारी चबाते बैठे हुए हैं. उनके दांत सुपारी से रंगे हैं. लेकिन इससे उन्हें रिलैक्स होने में मदद मिलती है. 31 साल के थांत की पीठ में बहुत दर्द है, "इस नौकरी के कारण पीठ बहुत दुखती है, शाम को मैं दर्द हटाने के लिए पारंपरिक दवाई का इस्तेमाल करता हूं."

कुटाई का काम करने वाले अधिकतर लोग 16 साल की उम्र में छह महीने की ट्रेनिंग के बाद काम शुरू कर देते हैं. 10 साल यह काम करने के बाद उनकी पीठ खराब हो जाती है. 45 साल में वह ये काम बंद कर देते हैं क्योंकि इसके बाद वे इस लायक नहीं रहते.

जिस समय पुरुष पीठ तोड़ने वाला कुटाई का काम कर रहे होते हैं उस समय महिलाएं दूसरा काम कर रही होती हैं. बिना हवा वाले कमरे में छोटे टेबलों पर बैठ वह इन महीन पत्तियों को काटती हैं ताकि वरक बन सके. चो सोए विन कहते हैं, "कमरे में हवा बिलकुल नहीं होनी चाहिए नहीं तो सोने की पत्तियां उड़ सकता है या टूट सकता है."

सोने का वरक

लुंगी पहने अपने हथौड़े को ढूंढते थांत म्यिंत ती कहते हैं, "अगर मेरा कोई बेटा होता तो मैं उसे सोने की कुटाई कभी नहीं करने देता. यह बहुत मुश्किल काम है और शरीर और आत्मा के लिए यह अच्छा नहीं है." लेकिन इस काम की कीमत बहुत अच्छी मिलती है. इस काम की सबसे ज्यादा मांग सर्दियों में होती है. क्योंकि इस दौरान कंपनियों को ऑर्डर मिलते हैं. थांत म्यिंत ती और उनके साथियों को करीब 96 रुपये प्रति दिन मिलते हैं.

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बुद्ध मंदिरों में सोनातस्वीर: DW

मांडले में हर दिन का खर्च करीब 60 रुपये है. म्यांमार की औसत तनख्वाह दक्षिण एशिया में सबसे कम है. देश में सोने से जुड़े काम को बहुत सम्मान से देखा जाता है. चो सोए विन बताती हैं कि सोना दिल के लिए बहुत अच्छा माना जाता है. "लोग केले या शहद के साथ सोना खाना पसंद करते हैं."

सोने की पत्ती यानी वरक ज्यादातर बौद्ध मंदिरों या पैगोडा में इस्तेमाल किया जाता है. पैगोडा में इसकी बहुत मांग है. इसकी कीमत 300 से 700 क्यात (म्यांमार की मुद्रा) होती है. कई साल से बुद्ध की मूर्तियों पर सोने का वरक चढ़ाया जाता है.

रिपोर्टः मोनिका ग्रीबेलर/आभा मोंढे

संपादनः ए जमाल