पूर्वाग्रहों का शिकार महिलाएं
१८ फ़रवरी २०१३इंडोनेशिया में ऐसे सैंकड़ों मामले वहां महिलाओं के खिलाफ पूर्वाग्रहों का सबूत हैं. फर्क सिर्फ यह है कि अब शायद इन दोनों पुरुषों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़े. सामाजिक मीडिया इस देश में काफी लोकप्रिय है और इसके जरिए महिलाएं अपना मुहिम चला रही हैं. इंडोनेशिया के राष्ट्रीय महिला आयोग के हुसैन मुहम्मद कहते हैं, "हम अब एक दूसरे युग में रह रहे हैं. अब हमारे पास कानून और सामाजिक मीडिया है जिससे हम सबक सिखा सकते हैं."
जांच में कमी
लेकिन कार्यकर्ताओं का अब भी कहना है कि महिलाओं के लिए समान अधिकारों और हिंसा का जहां तक सवाल है, वहां देश अब भी बहुत पिछड़ा हुआ है. अब भी बलात्कार के मामलों की जांच पड़ताल में कमियां है और पीड़ितों को दोषी ठहराया जाता है. जहां तक एसएमएस के जरिए तलाक देने की बात है, अब भी एक आदमी का बहुत सारी महिलाओं से शादी करना आम बात है.
पिछले साल पश्चिम जावा के गरुट जिले के प्रमुख फिक्री ने शादी के चार दिनों बाद अपनी युवा पत्नी को तलाक दिया. फिक्री के मुताबिक शादी से पहले ही लड़की का कौमार्य भंग हो चुका था. लड़की ने इस बात से मना किया है. धीरे धीरे फिक्री और उसकी पत्नी का फोटो इंटरनेट पर फैलने लगा और सामाजिक मीडिया में लोग उसका विरोध करने लगे. दिसंबर में सड़कों पर उतरे लोगों ने विरोध प्रदर्शनों में मांग की कि फिक्री अपने पद से हटे. 40 साल की फिक्री की शादी को राष्ट्रपति सुसीलो बांबांग युधोयोनो ने खारिज किया और पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को सुझाव दिया कि उसे नौकरी से हटा दिया जाए.
अजीब फैसला
इसी तरह का मामला जनवरी में सामने आया जब जज मुहम्मद दामिंग सुनूसी ने एक संसदीय पैनेल से कहा कि बलात्कार में मृत्युदंड देना सही इसलिए नहीं होगा क्योंकि हमलावर और पीड़ित, दोनों को शायद इसमें मजा आया हो. सुनूसी को सुप्रीम कोर्ट में नौकरी नहीं मिली और अब उसे दक्षिण सुमात्रा हाई कोर्ट में अपने पद से भी हटाया जा सकता है.
पश्चिम जावा में एसएमएस से तलाक का मामला भी काफी विवादित रहा है. मुस्लिम होने के नाते इंडोनेशियाई पुरुष दोबारा शादी तो कर सकते हैं लेकिन तभी जब पहली पत्नी उन्हें शादी करने की इजाजत दे. लेकिन ज्यादातर पत्नियां मानती नहीं और इसलिए छिपकर निकाह करना आम बात है. इसे निकाह सिरी कहते हैं. लेकिन आम तौर पर यह वैश्यावृत्ति का अच्छा बहाना बन जाता है. ऐसी शादी में अगर महिला को बच्चा होता है तो उस बच्चों को स्कूल भेजने से लेकर नौकरी पाने तक मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है. लेकिन अब वहां के महिला आयोग की कोशिश है कि यह सब बदले.
रिपोर्टः एमजी/एएम (एपी)