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पोलिओ से जंग

१२ अप्रैल २०१०

पोलिओ के कारण मां-बाप ने घर से निकाला, लेकिन हार नहीं मानी. कॉंगो की सड़कों पर रात गुजारनी पड़ी, पेट के लिए गाना गाते गाते बना लिया खुद का मिउजिक बैंड. अब लगे हैं लोगों में पोलिओ के खिलाफ जागरुकता फ़ैलाने में.

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एक कॉन्सर्ट में परफॉर्म करते हुए 'स्टाफ बैंडा बिलिली'तस्वीर: picture-alliance/dpa

कोंगो का बैंड 'स्टाफ बैंडा बिलिली' बारह लोगों से मिलकर बना है और इस बैंड में ज़्यादातर या तो बैसाखिओं के सहारे हैं या फिर व्हीलचेयर पर. इन्हीं में से एक है अठारह साल का रॉजर जो अपने बैंड में सबसे छोटा है. छः साल पहले मां-बाप ने उसे घर से निकाल दिया था. गरीब होने के कारण वो उसके पोलियो का खर्चा नहीं उठा सकते थे. इसके बाद रॉजर कोंगो की राजधानी किन्सासा में दर-दर की ठोकरें खाता रहा. रौजर का कहना है: "मुझे बाहर सड़कों पर सोना पड़ता था. दिन भर मैं माउथ ऑर्गन बजाकर कुछ पैसे कमा लेता था. पर मैंने कभी चोरी नहीं की. मैं अपने देश के बड़े बड़े संगीतकारों से बहुत प्रभावित था और हमेशा उन्हीं की तरह संगीत बजाना चाहता था."

हिट हुआ मिउज़िक एल्बम

रॉजर ने बारह साल की उम्र से संगीत शुरू किया. हालांकि उस समय उसकी मां उसके संगीत के खिलाफ थी, लेकिन उसने परवाह नहीं की. घर से निकाले जाने पर भी संगीत ही उसके काम आया. धीरे धीरे वो अपने जैसे और लोगों से मिला और इन्होने मिलकर बनाया अपना बैंड 'स्टाफ बैंडा बिलिली'. इस बैंड के सभी इंस्ट्रुमेंट्स पारंपरिक हैं और इन्हें बनाया भी इन सब ने खुद ही है. रॉजर ने एक अनोखा इकतारा तैयार किया है: "यह सोलो-गिटार जैसा है. इसे साटोंग कहते हैं. मैंने एक छड़ी ली, एक लोहे का कैन और एक तार. बस बन गया. दस साल तो हो गए हैं इसे. मुझे लगता है, मैं इसके साथ आगे चल कर यहां का सबसे बड़ा साटोंग एक्सपर्ट बन जाऊंगा."

Die Band Staff Benda Bilili
'स्टाफ बैंडा बिलिली' का एक गायकतस्वीर: picture-alliance/dpa

संगीत बजाते बजाते एक दिन वो हुआ जो सिर्फ फिल्मों में होता है. एक म्युज़िक प्रोड्यूसर ने 'स्टाफ बैंडा बिलिली' के गाने सुने और उन्हें वो इतने पसंद आए कि उन्होंने उनकी एल्बम बना डाली. इस एल्बम ने पूरे कोंगो में इस बैंड को प्रसिद्ध कर दिया है. लोगों को इन अनोखे म्युज़िक इंस्ट्रुमेंट्स का और ख़ास तौर से रॉजर के साटोंग का संगीत बेहद पसंद आ रहा है.

पोलिओ पर गाने

अब रॉजर और उसके साथी अपनी लोकप्रियता को लोगों में पोलिओ के खिलाफ जागरुकता फ़ैलाने के काम में ला रहे हैं क्योंकि वो जानते हैं कि पोलियो के साथ जीना कितना मुश्किल है. रौजर ने अपने साथिओं के साथ मिलकर पोलिओ पर गाने बनाए हैं जिससे उनकी सभी से यही अपील है कि वे अपने बच्चों को पोलियो की वैक्सीन ज़रूर दिलाएं. साथ ही साथ वो यह भी चाहते है कि लोग पोलियो पीड़ितों के साथ भेदभाव न करें. बहरहाल रॉजर ने लोगों के दिलों में अपनी जगह तो बना ही ली है और इस बीच उसके माता पिता ने भी उसे फिर से स्वीकार लिया है.

गाने भले ही हिट हो गए हों, लेकिन रॉजर और उसके साथिओं की हालत में बहुत ज़्यादा सुधार नहीं आया है. अपाहिज होने के कारण वो कहीं नौकरी भी नहीं कर पा रहे हैं. लेकिन उन्होंने उम्मीद का दामन नहीं छोड़ा है. हर शाम यह सब निकल पड़ते हैं सड़कों पर और बार्स में गाने बजाने के लिए. और इससे वो दो वक़्त की रोटी तो जुटा ही लेते हैं. अब रॉजर इस बारे में सोच रहा है कि किस तरह से वो अपनी और अपने परिवार की ज़िन्दगी सुधार सकता है. वो अपना खुद का घर बनाना चाहता है और अपनी पूरी ज़िन्दगी संगीत को समर्पित करना चाहता है. अपने भविष्य को लेकर वो बेहद आशावादी है: "क्या पता एक दिन मैं इसी के लिए दुनिया भर में मशहूर हो जाउं."

रिपोर्ट: सालेह म्वानामिलोंगो/ईशा भाटिया

संपादन: उज्ज्वल भट्टाचार्य