प्रकृति से प्यार के बीच आया पैसा
२० अक्टूबर २०१२हाल ही में खत्म हो जाने के खतरे में जी रही जानवरों और पौधों की 400 प्रजातियों को एक रेड लिस्ट में शामिल किया गया. उसके बाद अब हैदराबाद में 80 देशों के प्रतिनिधि संयुक्त राष्ट्र जैव विविधता बैठक में साथ आए हैं. 2010 में जापान में आयोजित एक सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र के देशों ने तय किया कि 2020 तक पृथ्वी में प्राकृतिक संसाधनों की घटती मात्रा को रोकने की कोशिश करेंगे. इन सीमाओं का नाम आइची टार्गेट रखा गया. लेकिन विश्व में आर्थिक संकट की वजह से संरक्षण के लिए पैसे खत्म हो रहे हैं.
वर्ल्ड वाइल्डलाइफ फंड फॉर नेचर डब्ल्यूडब्ल्यूएफ के लासे गुस्टावसोन कहते हैं कि यूरोप में आर्थिक परेशानियों की वजह से संरक्षण मुश्किल हो रहा है. हैदराबाद में विशेषज्ञ इस परेशानी का भी हल निकालने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन गुस्टावसोन का कहना है कि समस्या का समाधान निकालना मुश्किल होगा. बैठक में जानवरों और पौधों के आसपास का पर्यावरण, संरक्षण क्षेत्र में पानी और जमीन की मात्रा को बढ़ाना, जैव विविधता को बनाए रखना और बर्बाद हो रहे इकोसिस्टम के कम से कम 15 प्रतिशत हिस्से को बचा कर रखने जैसे लक्ष्यों के बारे में विचार किया जा रहा है.
अंतरराष्ट्रीय प्राकृतिक संरक्षण यूनियन आईयूसीएन के मुताबिक विश्व के 13 प्रतिशत पक्षी, 41 प्रतिशत उभयचर और 33 प्रतिशत मूंगे के द्वीप धरती से खत्म होने के खतरे का सामना कर रहे हैं. लेकिन जापान में तय किए गए आईची लक्ष्यों को हासिल करने के लिए अरबों डॉलर खर्च करने पड़ेंगे. इस वक्त माना जा रहा है कि सालाना 10 अरब डॉलर संरक्षण में लगाया जाता है.
विशेषज्ञों का कहना है कि हैदराबाद आए विकसित देशों के प्रतिनिधियों से उम्मीद है कि वे जैव विविधता संरक्षण के लिए अब से दोगुना पैसा देने के लिए तैयार हों. ब्रिटेन के पर्यावरण मंत्री रिचर्ड बेनयन ने कहा है कि उनका देश ऐसा करने के लिए तैयार तो है लेकिन वे करदाताओं पर और बोझ नहीं डालना चाहते हैं. बैठक में मौजूद यूरोपीय आयोग के प्रवक्ता जो हनन ने कहा है कि बातचीत में कोई बाधा नहीं है और बातचीत अभी चल रही है.
एमजी/एजेए (एएफपी)