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फिरौती के जाल में फंसा कराची

२५ सितम्बर २०१२

पाकिस्तान की आर्थिक राजधानी कराची में काम करना और मुश्किल हो गया है. अगर आतंकवाद और हिंसा से बचे भी तो फिरौती के लिए अपहरण का खतरा है. इस शहर में पैसों के लिए किसी को भी पकड़ लिया जाना आम बात हो गई है.

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तस्वीर: picture alliance/Asianet Pakistan

कराची में फैक्ट्री चला रहे 50 साल के एक नगरिक का कहना है कि वह हर महीने 50000 रुपये (लगभग 410 यूरो) देते हैं ताकि उनका अपहरण नहीं किया जाए. उनका कहना है कि वह तो खुद को खुशकिस्मत समझते हैं क्योंकि दूसरों को इससे कहीं ज्यादा पैसे देने पड़ते हैं.

शहर के आम बोलचाल में इस धंधे को भट्टा माफिया कहा जाता है. आम तौर पर इसमें 18 से 30 साल के युवा लगे हैं और इन्हें चार प्रमुख पार्टियों का समर्थन हासिल है, जिसमें पाकिस्तान की सत्ताधारी पीपीपी भी शामिल है. इसके अलावा अवामी नेशनल पार्टी, मुत्तहीदा कौमी मूवमेंट और हकीकी का भी साथ हासिल हुआ करता है. हाल ही में तालिबान ने भी अपहरण के इस "उद्योग" में हिस्सा मांगना शुरू कर दिया है.

कराची चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज के पूर्व अध्यक्ष अंजुम निसार का कहना है कि अपहरण की वारदात कोई तीन साल पहले शुरू हुई. उनका कहना है कि शुरू में यह कुछ औद्योगिक जगहों तक ही सीमित था लेकिन देखते ही देखते अब यह पूरे शहर में फैल गया है. अब न सिर्फ बड़े फैक्ट्री मालिकों का अपहरण हो रहा है, बल्कि अपहरणकर्ता छोटे मोटे दुकानदारों को भी अगवा करने से गुरेज नहीं करते. निसार का कहना है कि अपहरणकर्ताओं का डर इतना ज्यादा है कि कोई भी इस बारे में बात तक नहीं करना चाहता है, उन्हें पहचानने की तो बात भी भूल जाइए.

कराची के एक दुकानदार ने गुमनामी की शर्त पर बताया, "सबसे पहले एक फोन कॉल किया जाता है. फोन करने वाला अचानक से एक भारी भरकम रकम की मांग कर बैठता है. साथ बताने लगता है कि आपके बच्चे कहां पढ़ रहे हैं और वे कहां कहां जाते हैं. अगर ऐसे बात नहीं बनती, तो फिर आपकी दुकान पर गोलियां चला कर चले जाते हैं. इसके अलावा कई बार एक नई गोली खरीद कर किसी पत्र के साथ भेज देते हैं. इसमें लिखा होता है कि इसका इस्तेमाल आपके किसी कर्मचारी या खुद आप पर किया जा सकता है."

शहर के मशहूर तारिक रोड के एक बुजुर्ग से दुकानदार का कहना है, "चूंकि आपको पता होता है कि यह चेतावनी सही साबित हो सकती है, लिहाजा आप समझौता कर लेते हैं. मोलभाव करके किसी एक रकम को तय कर देते हैं." उन्होंने बताया कि अपहर्ताओं की हिम्मत इतनी ज्यादा होती है कि कई बार तो आपके मोबाइल फोन पर एसएमएस भी भेज देते हैं और अगर इसकी शिकायत लेकर पुलिस के पास जाएं कि वह नंबर का पता लगाए, तो पुलिस भी पैसे मांगती है.

प्लाजा के दुकानदारों का कहना है कि वे लोग हर साल 5,000 से 10,000 रुपये अलग अलग गैंग को देते हैं. शहर में कम से कम आधा दर्जन अपहरण गैंग हैं. प्लाजा में सबसे ज्यादा ऑटो स्पेयर पार्ट की दुकानें हैं. यहां के एक कारोबारी का कहना है, "कई बार आपके पास फोन आते हैं कि उन्हें फौरन से दो लाख से पांच लाख रुपये चाहिए." उन्होंने बताया कि किस तरह से इन लोगों का खौफ बढ़ता जा रहा है.

यहीं काम कर रहे एक शख्स का कहना है, "वे सबसे पहले आपका अपहरण करते हैं. इसके बाद आपसे कहते हैं कि अपने ही फोन से अपने रिश्तेदारों को फोन करें और इस दौरान उन्हें दो घंटे में पैसों का इंतजाम करने को कहें. ये तेज गति वाले अपहरण होते हैं और आपको कुछ ही घंटों में रिहा कर दिया जाता है." इस शख्स ने अपना नाम बताने से साफ इनकार कर दिया और कहा कि यह उसके लिए बेहद खतरनाक साबित हो सकता है.

उनके एक मित्र का कहना है, "हमारी युवा पीढ़ी ने पैसे कमाने का तेज रास्ता ढूंढ निकाला है. उनमें से बहुत से पढ़े लिखे भी हैं लेकिन इस तरीके से उन्हें ज्यादा पैसे मिलते हैं और छोटे से पिस्तौल के साथ घूमना, भद्दी बातें कहना और खुलेआम इस तरह की हरकत करने से उन्हें मजा भी आता है."

निसार इसकी एक वजह बेरोजगारी देखते हैं, "करीब 30 लाख लोग हर साल रोजगार कार्यालय में जा रहे हैं लेकिन उनके पास कोई काम नहीं है. नतीजा यह निकलता है कि ये लड़के गलत तरीके से पैसे कमाने की राह पर चल निकलते हैं."

निसार ने सरकारी आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि कराची में करीब पौने दो करोड़ लोग रहते हैं और यह पाकिस्तान की आर्थिक रीढ़ समझी जाती है. विदेशी कारोबार का करीब 95 फीसदी हिस्सा यही शहर देता है, जबकि देश के औद्योगिक उत्पादन का 30 प्रतिशत भी यहीं से आता है. पिछले सालों में पाकिस्तान का जीडीपी हर साल डेढ़ से दो प्रतिशत घट रहा है.

ऑटोमोबाइल स्पेयर पार्ट एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष अरशद इस्लाम रास्ता सुझाते हैं, "इस शहर को हथियारों से मुक्त कर देना चाहिए और रात का कर्फ्यू लगा देना चाहिए. तभी इन लोगों पर काबू किया जा सकता है."

हाल ही में सिंध प्रांत के मुख्यमंत्री सैयद कासिम अली शाह, पुलिस प्रमुख और खुफिया विभाग के अधिकारियों की बैठक हुई. इसमें दावा किया गया कि उन्हें यह भी पता नहीं चल पाता है कि कहां से फोन किया जाता है और इसके पीछे किन लोगों का हाथ है.

लेकिन कराची वाले इन बातों को मानने को तैयार नहीं. एक दुकानदार ने कहा, "मैं इस बात को नहीं मान सकता कि सरकारी तंत्र इस मामले से नहीं निपट सकता है. अगर हमारा खुफिया विभाग कट्टर आतंकवादियों को पकड़ सकता है, तो फिर इन छोटे मोटे अपराधियों को क्यों नहीं."

एजेए/एएम (आईपीएस)