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फूट नहीं डाल रहे अमेरिका अफगानिस्तान के बीचः पाक सरकार

२७ अप्रैल २०११

पाकिस्तान की सरकार ने मीडिया रिपोर्टों को खारिज किया है जिनमें लिखा है कि उसने अफगानिस्तान से अमेरिका का साथ छोड़ने की बात की है और कहा है कि काबुल में सरकार को इस्लामाबाद और बीजिंग के साथ हो जाना चाहिए.

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पाक प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानीतस्वीर: AP

अमेरिकी अखबार वॉल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक अफगान अधिकारियों का कहना है कि अप्रैल 16 को अफगान राष्ट्रपति हामिद करजई से मिलकर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी ने कहा कि अमेरिका ने दोनों देशों को निराश किया है. इसलिए करजई को लंबे समय तक अफगानिस्तान में अमेरिकी सेना की उपस्थिति के बारे में 'भूल जाना चाहिए' और उसे सहमति नहीं देनी चाहिए. लेकिन ट्विटर पर अमेरिका को पाकिस्तान के राजदूत हुसैन हक्कानी का कहना है, "जिन खबरों में लिखा गया है कि गिलानी और पाकिस्तान के बीच बातचीत हुई है जिसमें अमेरिका से दूर जाने की बात है, वे सब गलत हैं." पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता तहमीना जनूजा ने कहा, "हमने इससे पहले कभी भी इस तरह की बेहूदा खबर नहीं देखी."

Hamid Karzai
अफगान राष्ट्रपति हामिद करजईतस्वीर: AP

पाक अमेरिका के बीच तनाव जाहिर

वॉल स्ट्रीट जर्नल के मुताबिक इस बातचीत से पाकिस्तान और अमेरिका के बीच तनाव के साफ संकेत आ रहे हैं. रिपोर्ट में पाकिस्तानी अधिकारियों के हवाले से कहा गया है कि वे अपने ही देश में अमेरिकी आदेशों को स्वीकार नहीं कर सकते. पाकिस्तान के एक वरिष्ठ अधिकारी ने जर्नल को बताया, "पाकिस्तान अपने हित के लिए खुद जिम्मेदार है. हम किसी को भी नहीं ढूंढ रहे है, जो हमारी सुरक्षा करे, खास कर अमेरिका. अगर वे इलाके को छोड़ कर जा रहे हैं, तो जा रहे हैं और उन्हें जाना चाहिए."

उधर अफगानिस्तान में राष्ट्रपति करजई के प्रवक्ता वहीद ओमर ने कहा, "पाकिस्तान हमारे सामने इस तरह की मांग नहीं रखेगा. लेकिन अगर उन्होंने रखा भी तो अफगान सरकार कभी भी इन्हें मानेगी नहीं." कुछ अमेरिकी अधिकारियों का कहना है कि उन्हें काबुल में पाकिस्तानी प्रधानमंत्री और करजई की बैठक के बारे में जानकारी थी. अधिकारियों का मानना है कि इसके जरिए अमेरिका के साथ बातचीत में अफगानिस्तान अपना 'भाव बढ़ाने' की कोशिश कर सकता है. हालांकि उनका कहना है कि इस तरह की बातें हर तरह की लेन देन का हिस्सा होती हैं.

2014 के बाद क्या?

अमेरिकी सेना 2014 से अफगानिस्तान से बाहर निकलना चाहती है. लेकिन इसके बारे में योजना अब भी साफ नहीं है. अमेरिका को डर है कि 2014 के बाद अफगानिस्तान एक बार फिर आतंकवादियों के हाथ आ जाएगा. चीन के अलावा ईरान और रूस ने भी 2014 के बाद अमेरिकी सेना की मौजूदगी पर नाराजगी जताई है. अफगानी राष्ट्रपति हामिद करजई भी अमेरिका को अपनी नाखुशी दिखाने में पीछे नहीं हट रहे. उधर, तालिबान के साथ समझौता भी अमेरिका की गैरहाजिरी पर निर्भर है. तालिबान नेताओं ने कहा है कि विदेशी सैनिक जब तक अफगानिस्तान में उपस्थित रहेंगे, तब तक किसी भी तरह के समझौतों पर बातचीत मुमकिन नहीं होगी.

रिपोर्टः एजेंसियां/एमजी

संपादनः उभ

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