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फूल समझाएंगे मौसमी बदलाव को

२६ सितम्बर २०१०

यूं तो कहते हैं कि फूल पौधे पर ही अच्छे लगते हैं क्योंकि टूट जाने के बाद वे अपनी खूबसूरती खो बैठते हैं और किसी काम के नहीं रहते. लेकिन वैज्ञानिक जो काम कर रहे हैं वह तो इस धारणा के बिल्कुल उलट है.

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तस्वीर: DW

वे तो डेढ़ सौ साल पहले तोड़े गए फूलों से भी फायदा उठा रहे हैं. 1848 से 1958 के बीच तोड़े गए कुछ ऑर्किड्स दुनिया के वातावरण में हो रहे बदलावों के बारे में बता रहे हैं. दरअसल इंग्लैंड में इन फूलों को जब तोड़ा गया तो सही तारीख और दिन को लिख लिया गया.

Blumen Geschenk
तस्वीर: DW

उसी जगह वही फूल जब 1975 से 2006 के बीच खिले तो फिर से उन्हें तोड़ा गया और तारीख और दिन को लिख लिया गया. फिर वैज्ञानिकों ने इनके खिलने के वक्त की तुलना की. इस अध्ययन में पता चला कि तापमान में एक डिग्री सेल्सियस का फर्क पर पड़ने पर फूलों के खिलने के समय में छह दिन का फर्क पड़ गया. जरनल ऑफ इकोलॉजी में वैज्ञानिकों ने लिखा है कि जो साल ज्यादा गर्म रहे उस साल फूल जल्दी खिले.

इस अध्ययन के आधार पर वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि पौधों और फूलों को इस तरह संभाल कर रखना मौसम के बदलाव को समझने में मददगार हो सकता है. अगर तापमान का डेटा उपलब्ध नहीं है तो भी यह प्रक्रिया काफी मददगार साबित हो सकती है. दुनियाभर में फूलों, पौधों और पत्तियों को संभालकर रखा जाता है. कई जगहों पर तो ढाई सौ साल पुराने फूल भी संभालकर रखे गए हैं.

Bdt Valentinstag in Shanghai China
तस्वीर: AP

यानी ये फूल हमें 250 साल पहले के तापमान और मौसम के बारे में बता सकते हैं, जब कई देशों में तापमान को नोट करने और उसका रिकॉर्ड रखने की सुविधा ही नहीं थी.

इस अध्ययन पर काम करने वाले एंथनी डैवी ब्रिटेन की यूनिवर्सिटी ऑफ ईस्ट आंग्लिया में पढ़ाते हैं. वह कहते हैं कि यह प्रक्रिया संभाल कर रखे गए फूल-पौधों के इस्तेमाल के नए विकल्प दे सकती है. उनके मुताबिक यह तो मौसम में बदलाव का ऐसा भरोसेमंद डेटा है जो सदियों तक काम करेगा.

संयुक्त राष्ट्र के मौसम विज्ञानियों की एक रिपोर्ट में 2007 में कहा गया कि 19वीं सदी में दुनिया का तापमान 0.7 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ गया. इसमें ज्यादातर बढ़ोतरी हाल के सालों में हुई और इसकी वजह बना ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन. लेकिन उससे पहले मौसम में कितने बदलाव हुए उसके बारे में जानना हो तो ये सदियों पहले तो़ड़े गए फूल पौधे ही काम आएंगे.

रिपोर्टः एजेंसियां/वी कुमार

संपादनः आभा एम

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