1. कंटेंट पर जाएं
  2. मेन्यू पर जाएं
  3. डीडब्ल्यू की अन्य साइट देखें

फॉर्मूला 1 का सपना और विवादों की रेस

२५ अक्टूबर २०११

कॉमनवेल्थ गेम्स विवाद और आयोजक के जेल जाने के बाद भारत सबसे बड़ा खेल आयोजन करने वाला है. अक्तूबर के आखिरी सप्ताहांत में फॉर्मूला वन सीजन की रेस दिल्ली के पास होगी. यह भी कानूनी विवादों में फंस चुकी है.

https://p.dw.com/p/12yGT
तस्वीर: dapd

भारत की ज्यादातर सड़कों की हालत ऐसी है कि वहां 50 किलोमीटर की रफ्तार से भी गाड़ी नहीं चलाई जा सकती. वहां 300 किलोमीटर से ज्यादा की रफ्तार से रेस लगाना किसी सपने से कम नहीं. टीवी पर तेज भागती कारें देखने वाले लोग पहली बार उन कारों को सड़कों पर उतरते देखने वाले हैं, जहां जर्मनी के सेबास्टियन फेटल, ब्रिटेन के जेनसन बटन और खुद भारत के नारायण कार्तिकेयन मुकाबले में नजर आएंगे.

चंढोक की नजर में

भारत में तेज रफ्तार रेसों के जनक समझे जाने वाले और फॉर्मूला वन ड्राइवर करुण चंढोक के पिता विकी चंढोक इस ट्रैक को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ ट्रैकों में गिन रहे हैं और बता रहे हैं कि टेस्ट ड्राइव में इसका नतीजा भी सामने आ चुका है. 5.14 किलोमीटर लंबे बुद्ध इंटरनेशनल सर्किट को जर्मन इंजीनियर हरमन टिलके ने डिजाइन किया है. चंढोक का कहना है, "हर छोटी से छोटी बात पर बेहद ध्यान दिया गया है. ट्रैक को उच्चतम गुणवत्ता वाले बिटमेंट और कंक्रीट से बनाया गया है. ग्रैंड स्टैंड में बैठने की शानदार व्यवस्था है और ट्रैक के चारों की सीटें बेहतरीन हैं. कुल मिला कर देखा जाए तो इसमें सर्वोत्तम उपकरणों का इस्तेमाल किया गया है. चाहे आग बुझाने के उपकरणों की या फिर रिकवरी उपकरणों की, सब विश्वस्तरीय है."

Formel 1 GP Deutschland Nürburgring FLASH-GALERIE
तस्वीर: dapd

महत्वपूर्ण समय

इस नए नवेले ट्रैक को ऐसे समय में आजमाया जा रहा है, जब हाल ही में अमेरिका के लास वेगास में एक कार रेस में ब्रिटिश ड्राइवर डैन वेलडन की मौत हो चुकी है. हालांकि चंडोक का कहना है कि इससे भारतीय रेस पर कोई असर नहीं पड़ने वाला, "फॉर्मूला वन कारें ज्यादा अच्छी तकनीक और बारीकी से बनाई जाती हैं. यह ज्यादा सुरक्षित होती हैं और ओवल्स (अंडाकार सर्किट) में नहीं दौड़ती हैं. अंडीकार रेस से इसकी तुलना नहीं की जा सकती. यह दुर्भाग्यपूर्ण हैं कि डैन की जान चली गई. वह एक अच्छे रेसर थे."

इंडियन ग्रां प्री में भारत का भी अच्छा प्रतिनिधित्व होगा, जहां विजय माल्या और सहारा ग्रुप की सहारा फोर्स इंडिया टीम दो कारों के साथ मुकाबले में उतरेगी, वहीं भारत के लिए पहली बार फॉर्मूला वन कार चलाने वाले नारायण कार्तिकेयन भी हिस्पानिया की कार चलाएंगे. हालांकि कार्तिकेयन से बहुत उम्मीद नहीं की जा सकती. 35 साल के कार्तिकेयन पहली बार टीम जॉर्डन के साथ 2005 में फॉर्मूला वन ट्रैक पर उतरे थे.

बेहिसाब पैसा

भले ही फॉर्मूला वन का क्रेज भारत में न हो लेकिन बेहिसाब पैसे ने हाल के दिनों में अंतरराष्ट्रीय खेल आयोजकों को अपनी ओर खींचा है. इसी वजह से क्रिकेट से शुरू होकर क्रिकेट पर खत्म हो जाने वाले देश में फुटबॉल और फॉर्मूला वन जैसे खेलों में खूब पैसा झोंका जा रहा है. जर्मन क्लब बायर्न म्यूनिख भी इन दिनों भारत से नजदीकी बढ़ाता जा रहा है.

हालांकि भारत में इस तरह के खेल आयोजन शानदार खेल नहीं, बल्कि खराब प्रबंधन और कानूनी मुकदमों से बदनाम हो जाते हैं. पिछले साल भारत ने भले ही विश्वस्तरीय कॉमनवेल्थ गेम्स करवाए हों लेकिन उसे शानदार आयोजन के लिए नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार और खराब प्रबंधन के लिए याद किया जा रहा है. उसके मुख्य आयोजक सुरेश कलमाड़ी को जेल भी जाना पड़ा.

Formel 1 Ungran Grand Prix Flash-Galerie
तस्वीर: dapd

गड़बड़ तंत्र

कॉमनवेल्थ खेल जैसे आयोजन सरकारी तंत्र की मदद से कराए जाते हैं, जिसमें सरकार का सीधा हस्तक्षेप होता है, जबकि फॉर्मूला वन एक निजी आयोजन है. फिर भी यह खुद को विवाद नहीं बचा सका. उत्तर प्रदेश सरकार ने ट्रैक बनाने वाली कंपनी जेपी ग्रुप का मनोरंजन कर माफ कर दिया, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से सवाल पूछ लिया है.

जबकि आस पास के गांवों के किसानों की जमीन अधिग्रहित करने का मामला तूल पकड़ता जा रहा है और कुछ ग्रामीणों ने तो यहां तक धमकी दी है कि वह 30 अक्तूबर को रेस नहीं होने देंगे. पर भारतीय किसान यूनियन रेस के खिलाफ नहीं है. हां, उसका यह जरूर कहना है कि रेस के लिए जमीन तो ले ली गई लेकिन किसानों को सही मुआवजा नहीं मिला.

मुआवजा कम

भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष राकेश टिकैत ने डॉयचे वेले से बातचीत में कहा कि इसके लिए उन्होंने मुकदमा भी किया है, "यहां काफी कम मुआवजा मिला है. सिर्फ 800-1000 रुपये का मुआवजा मिला है, जबकि 20-25 हजार रुपये का रेट है. किसानों को काफी कम पैसा मिला है और उन्हें उनका हक दिलाने के लिए हम संघर्ष कर रहे हैं."

न सिर्फ ग्रेटर नोएडा, बल्कि गुजरात और पश्चिम बंगाल जैसे भारत के दूसरे हिस्सों में भी किसानों की जमीनें अधिग्रहित की जा रही हैं. टिकैत का कहना है कि सिर्फ ऐसी जमीनों को अधिग्रहित किया जाना चाहिए, जो खेती लायक नहीं. ग्रेटर नोएडा की जमीन के बारे में उनका कहना है, "यहां की पूरी जमीन बहुत बढ़िया है. यह कहा जा रहा है कि यह खेती लायक नहीं है पर ऐसा नहीं है. इस जमीन पर तीन तीन फसल (हर साल) हो सकती है और यह बहुत बढ़िया उपजाऊ जमीन है. भारत में जिस तरह से जमीनों का अधिग्रहण हो रहा है, वह आने वाले समय में देश के लिए फूड सिक्योरिटी की प्रॉब्लम खड़ी कर सकती है."

Sebastian Vettel - Große Preis von Suzuka Flash-Galerie
तस्वीर: dapd

थोड़ी घबराहट

जहां तक तैयारियों का सवाल है, फॉर्मूला वन ट्रैक तैयार होने में जिस तरह वक्त लग रहा था, लोगों के हाथ पांव फूलने लगे थे. उन्हें पिछले साल का कॉमनवेल्थ गेम्स ही याद आ रहा था, जहां आखिरी दिनों तक काम किया जा रहा था. हालांकि भारत में आखिरी वक्त में काम करने की रिवायत है, जो फॉर्मूला वन में भी साबित हुआ. ट्रैक बन कर तैयार हो चुका है और 18 अक्तूबर को इसका उद्घाटन कर भी कर दिया गया है.

सिर्फ दो घंटे की रेस के लिए महीनों की तैयारियां पूरी हो चुकी हैं. आस पास के होटल दोगुने किराए में फुल हो चुके हैं और कुछ कंपनियां हॉलीडे पैकेज लेकर भी आ चुकी हैं. भारतीय उप महाद्वीप में पहली बार फॉर्मूला वन रेस होने वाली है और लोगों में इसको लेकर उत्सुकता बनी हुई है. फॉर्मूला वन के डाई हार्ड फैन्स यूरोपीय देशों से भारत पहुंच रहे हैं, जबकि सस्ती कीमतों पर मिल रही टिकटों की वजह से भारत के लोग भी इस रेस को एक बार देख ही लेना चाहते हैं.

अब सबको गुरुवार का इंतजार है, जब फॉर्मूला वन टीमें खेमे तंबू के साथ ग्रेटर नोएडा पहुंचेंगी. दो दिन अभ्यास के बाद रविवार को भारत अपनी पहली रेस देखेगा. दूसरी बार वर्ल्ड चैंपियन बन चुके जर्मनी के सेबास्टियन फेटेल रेस का प्रमुख आर्कषण होंगे. फेटेल भी चाहेंगे कि जीत के साथ भारतीय ट्रैक का उद्घाटन किया जाए.

रिपोर्टः अनवर जे अशरफ

संपादनः महेश झा

इस विषय पर और जानकारी को स्किप करें

इस विषय पर और जानकारी