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बंगाल के अकाल के लिए चर्चिल दोषी

१६ सितम्बर २०१०

एक नई किताब का कहना है कि द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटेन के प्रधानमंत्री रहे विंस्टन चर्चिल ने जानबूझकर लाखों भारतीयों को भूखे मरने दिया. भारतीयों के बारे में उनके रुख पर पहली बार नई जानकारियां सामने आईं.

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सिगार लिए चर्चिलतस्वीर: AP

बर्मा पर जापान के कब्जे के बाद वहां से चावल का आयात रुक गया था और ब्रिटिश हुकूमत ने अपने सैनिकों और युद्ध में लगे अन्य लोगों के लिए चावल की जमाखोरी कर ली थी, जिसकी वजह से 1943 में बंगाल में आए सूखे में तीस लाख से अधिक लोग मारे गए थे.

चावल की कमी होने के कारण कीमतें आसमान छू रही थी और जापान के आक्रमण के डर से बंगाल में नावों और बैलगाड़ियों को जब्त या नष्ट किए जाने के कारण आपूर्ति व्यवस्ता ध्वस्त हो गई. बाजार में चावल मिल नहीं रहा था, गावों में भूखमरी फैल रही थी और चर्चिल ने खाद्यान्न की आपात खेप भेजने की मांग बार बार ठुकरा दी.

1943 के बंगाल में कोलकाता की सड़कों पर भूख से हड्डी हड्डी हुई मांएं सड़कों पर दम तोड़ रही थी, लोग सड़े खाने के लिए लड़ते दिखते थे तो ब्रिटिश अधिकारी और मध्यवर्ग भारतीय अपने क्लबों और घरों पर गुलछर्रे उड़ा रहे थे. बंगाल की मानव रचित भुखमरी ब्रिटिश राज के इतिहास के काले अध्यायों में से एक रही है, लेकिन लेखक मधुश्री मुखर्जी का कहना है कि उन्हें ऐसे सबूत मिले हैं जो दिखाते हैं कि लोगों की दुःस्थिति के लिए चर्चिल सीधे तौर पर जिम्मेदार थे.

मधुश्री मुखर्जी की किताब चर्चिल्स सीक्रेट वार में अब तक उपयोग में नहीं लाए दस्तावेजों के हवाले से कहा गया है कि चर्चिल का यह दावा गलत था कि युद्ध की वजह से खाद्य परिवहन के लिए जहाज मुहैया नहीं कराए जा सकते थे. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान कैबिनेट की बैठकों, मंत्रालय के भूले बिसरे दस्तावेजों और निजी संग्रहालयों के विश्लेषण दिखाते हैं कि ऑस्ट्रेलिया से अनाजों से भरे जहाज भारत के करीब से भूमध्य क्षेत्र की ओर जा रहे थे जहां खाद्यान्न का विशाल भंडार तैयार हो रहा था.

फ्रैंकफुर्ट में रहने वाली मधुश्री मुखर्जी ने एएफपी के साथ एक साक्षात्कार में कहा, "सवाल चर्चिल के अयोग्य होने का नहीं है, बंगाल में राहत भेजने का मसला बार बार उठाया गया और उन्होंने तथा उनके निकट सहयोगियों ने हर प्रयास को नाकाम कर दिया. अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया ने सहायता भेजने की पेशकश की लेकिन युद्धकालीन कैबिनेट जहाजों को भेजने के लिए तैयार नहीं थी और जब अमेरिका ने अपने जहाज पर अनाज भेजने की बात की तो ब्रिटिश अधिकारियों ने उस पेशकश को आगे नहीं बढ़ाया."

नाज़ी जर्मनी के खिलाफ युद्ध जीतने वाले नेता के रूप में चर्चिल को इतिहास में स्थान मिला है लेकिन भारतीयों के प्रति उनके रवैये को सराहा नहीं गया है. मुखर्जी का कहना है कि वह भारतीयों के बारे में भयानक बाते कहा करते थे. एक बार उन्होंने अपने सेक्रेटरी से कहा था कि वे चाहते हैं कि उन पर बमबारी होती. एक बार उन्होंने भारतीयों पर भुखमरी का अप्रत्यक्ष आरोप लगाते हुए कहा था कि वे खरगोशों की तरह तेजी से बच्चे पैदा करते हैं. मुखर्जी कहती हैं, "चर्चिल भारतीयों से नाराज थे क्योंकि वह समझ गए थे कि अमेरिका भारत में ब्रिटिश राज को जारी रहने नहीं देगा."

प्रमुख ब्रिटिश इतिहासकार मैक्स हेस्टिंग्स ने मधुश्री मुखर्जी की किताब को महत्वपूर्ण और ब्रिटिश पाठकों के लिए चिंताजनक बताया है. भारतीय इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने कहा है कि इस किताब ने पहली बार इस बात के निश्चित सबूत दिए हैं कि एक महान आदमी के पूर्वाग्रहों ने आधुनिक इतिहास के सबसे भयानक अकाल में योगदान दिया.

रिपोर्ट: एएफपी/महेश झा

संपादन: ए कुमार