बंगाल में एक और सिंगूर की तैयारी
१५ दिसम्बर २०१०यहां उपनगरी बसाने के लिए सरकार ने कुछ साल पहले बड़े पैमाने पर जमीन का अधिग्रहण किया था. ममता बनर्जी ने सरकार पर जबरन अधिग्रहण का आरोप लगाते हुए कम से कम दस फीसदी जमीन किसानों को लौटाने की मांग में आंदोलन शुरू किया है. पार्टी ने उन किसानों को साथ लेकर धरना और प्रदर्शन शुरू किया है जिनकी जमीन का कथित तौर पर जबरन अधिग्रहण किया गया था. तृणमूल ने राजारहाट में जमीन अधिग्रहण में हुए कथित वित्तीय घोटाले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) से कराने की मांग की है.
माकपा और तृणमूल आमने-सामने
राजारहाट के सवाल पर तृणमूल और माकपा में तलवारें खिंच गई हैं. एक ही मुद्दे पर दोनों दलों ने एक ही दिन उस इलाके में रैली कर अपने इरादे जता दिए हैं. अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले राजारहाट का जमीन अधिग्रहण एक बड़े मुद्दे के तौर पर उभर सकता है. ममता बनर्जी ने राजारहाट के उपनगरी बनने से प्रभावित किसानों को सिंगूर व नंदीग्राम की तरह न्याय दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट तक जाने का ऐलान किया है.
लेकिन अबकी माकपा ने भी कमर कस ली है. ममता की रैली और जमीन के जबरन अधिग्रहण के आरोपों के बाद सरकार ने अगले दिन तमाम अखबारों में पूरे पेज का विज्ञापन देकर दावा किया कि राजारहाट के लोगों ने अपनी मर्जी से सरकार को जमीन दी है और इसके एवज में उनको बेहतरीन पुनर्वास पैकेज दिया गया है. इस विज्ञापन में कुछ दर्जन ऐसे लोगों की तस्वीरें भी छपी थी जिन्होंने कथित तौर पर अपनी मर्जी से जमीन दी है.
राजारहाट मुद्दा
राजारहाट बंगाल की राजधानी कोलकाता से सटा है. उत्तर 24-परगना जिले के तहत आने वाले इस इलाके में एक उपनगरी बसाने के लिए सरकार ने लगभग पंद्रह साल पहले इलाके के किसानों से लगभग 25 हजार एकड़ जमीन ली थी. यह अधिग्रहण हाउसिंग इन्फ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट कार्पोरेशन (हिडको) के जरिए किया गया था. राज्य के आवासन मंत्री गौतम देव ही हिडको के अध्यक्ष हैं. वहां बनने वाली उपनगरी का नाम राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री के नाम पर ज्योति बसु नगरी रखा गया है.
विपक्ष का आरोप
तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने माकपा नेताओं व मंत्रियों को चेतावनी देते हुए कहा है कि अगले साल सत्ता बदलने के बाद राजारहाट में उद्योगों के नाम पर ली गई एक-एक इंच जमीन के अधिग्रहण की जांच होगी और दोषियों को किसी भी सूरत में बख्शा नहीं जाएगा. उन्होंने आरोप लगाया है कि इस इलाके को औद्योगिक क्षेत्र में विकसित करने के लिए राज्य सरकार ने 25 हजार एकड़ खेती की जमीन किसानों से जबरन ली है. इसके लिए किसानों को कोई मुआवजा नहीं मिला है. अब तक दो सौ से ज्यादा किसानों से उनकी जमीन जबरन ली गई है और उनको किसी तरह का भुगतान नहीं हुआ है. ममता का कहना है कि इस क्षेत्र का विकास होने के बाद उसका 10 प्रतिशत जमीन किसानों को लौटाई जानी चाहिए. ऐसा नहीं होने की सूरत में पार्टी कानूनी कार्रवाई करेगी. तृणमूल का आरोप है कि हिडको ने इस उपनगरी के लिए किसानों की जमीन कौड़ियों के मौल खरीदी थी और अब उसे करोड़ों में बेच रही है. किसानों को जमीन की समुचित कीमत देने के बदले यह रकम पार्टी यानी माकपा के फंड में चली गई. तृणमूल कांग्रेस के नेता पार्थ चटर्जी कहते हैं कि सरकार ने राजारहाट में एक ऐसी कंपनी को कौड़ियों के भाव सैकड़ों एकड़ जमीन दी है जिसके मालिक पूर्व मुख्यमंत्री ज्योति बसु के पुत्र चंदन बसु हैं. इलाके में तेजी से बहुमंडिली इमारतें और विभिन्न सूचना तकनीक कंपनियों के दफ्तर बन रहे हैं.
माकपा की बेचैनी
विपक्ष के आरोपों से माकपा खेमे में काफी बेचैनी है. मंत्री गौतम देव ने इस मुद्दे पर आमने-सामने बातचीत करने की चुनौती दी है. देव कहते हैं कि चुनावी फायदे के लिए ही तृणमूल कांग्रेस ने नंदीग्राम व सिंगूर की तरह राजारहाट की जमीन का मुद्दा उठाया है. उनके मुताबिक, विपक्ष के आरोप निराधार हैं. मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य ने भी विपक्ष पर राज्य के विकास की राह में रोड़े अटकाने का आरोप लगाया है. माकपा को डर है कि जिस तरह सिंगूर व नंदीग्राम ने जमीन ने ही उसके पैरों तले की जमीन छीन ली थी, कहीं अगले विधानसभा चुनाव में राजारहाट का मामला भी वैसा ही नहीं साबित हो. इसलिए उसने तृणमूल के साथ बाकायदा वाकयुद्ध शुरू कर दिया है.
यहां राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि फिलहाल राजारहाट के मुद्दे पर कोई भी पक्ष पीछे हटने को तैयार नहीं है. ऐसे में अगले विधानसभा चुनाव से पहले राजारहाट एक नए नंदीग्राम में बदल सकता है.