बर्लिन दीवार से जुड़ी अहम तारीख़
२ नवम्बर २००९8 मई 1945: विश्वयुद्ध समाप्त
फ़ील्ड मार्शल विल्हलम किटल ने बर्लिन के कार्ल्सहोर्स्ट में जर्मनी की बिना शर्त हार के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए. हिटलर की मृत्यु हुई, यूरोप में द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ तथा जर्मनी और यूरोप में नाज़ी आधिपत्य आख़िरकार मिटा दिया गया. लेकिन शीत युद्ध अभी शुरू ही हुआ था जिसे चार दशकों से अधिक समय तक चलना था.
17 जुलाई से 2 अगस्त 1945: जर्मनी के बारे में फ़ैसले
युद्ध के बाद पोट्सडाम में हिटलर विरोधी सहबंध के "तीन बड़े नेताओं" की बैठक हुई जिसमें सोवियत संघ से स्टालिन, इंग्लैड से चर्चिल और अमेरिका से ट्रूमैन ने हिस्सा लेकर ओडर-नाइस्से नदी की रेखा को जर्मनी - पोलैंड का बॉर्डर बनाया और इस तरह पूर्वी क्षेत्रों में बसी जर्मन आबादी के निष्कासन को स्वीकार किया. युद्ध में विजयी राष्ट्रों के बीच पहली बार मतभेद तब दिखे जब यह सवाल उठा कि लड़ाई में हुए नुक़सान के मुआवज़े के लिए औद्योगिक कारखानों और मशीनों का उपयोग किस प्रकार किया जाए.
24 जून 1948: पश्चिमी बर्लिन की सोवियत घेराबंदी
सभी सड़कों और जल मार्गों को बंद करने से पश्चिमी सत्ताओं को भारी झटका लगा. पश्चिमी बर्लिन में रह रहे 22 लाख लोग सोवियत क्षेत्र से चारों ओर से घिर गए और उनके खाने पीने का इंतज़ाम करना पड़ा. पश्चिम की सरकारों ने फ़ैसला किया कि शहर नहीं छोड़ा जाएगा. "कैन्डी बॉम्बर" के नाम से जाने वाले हवाई जहाज़ों द्वारा बर्लिन में 2,78,000 बार खाद्य सामग्री लाई गई. बर्लिन में भूख थी, लेकिन उसे बचा लिया गया. मई 1949 में सोवियत सरकार ने बर्लिन की घेराबंदी समाप्त की.
15 सितंबर 1949: कोनराड आडेनाउअर पहले चांसलर बने
पश्चिमी जर्मनी की संसद बुंडसटाग ने उस समय 73 वर्षीय आडेनाउअर को सिर्फ़ एक वोट के बहुमत से चुना जो उनके करियर की पराकाष्ठा थी. इससे पहले वह कोलोन शहर के मेयर रहे, फ़िर नाज़ी कारावास में समय गुज़ारना पड़ा, उसके बाद कंज़र्वेटिव क्रिश्चियन पार्टी सीडीयू के संस्थापकों में से एक बने. चांसलर ने जर्मन संघीय गणराज्य की सफलता में अहम योगदान दिया. पश्चिमी देशों से संबंध और सामाजिक बाज़ार प्रणाली, साम्यवाद विरोध और राजधानी के रूप में बॉन इसके प्रमुख अंग थे. आडेनाउअर 1953, 1957 और 1961 में तीन बार चुने गए.
7 अक्तूबर 1949: दूसरा जर्मन देश
सोवियत क्षेत्र में जर्मन लोक परिषद (डॉयचर फ़ोक्सराट) ने फ़ोल्क्सकामर यानी जन संसद के गठन की घोषणा की. पहले से ही तैयार किया गया संविधान जारी किया गया. इसमें निर्धारित किया गया कि सरकार को ज़मीन पर क़ब्ज़ा करने का हक़ है और दलों के गुट की नीति के आधार पर सब पार्टियों को सरकार में हिस्सा लेने के लिए मजबूर किया जा सकता है. 11 अक्तूबर को विल्हल्म पीक पहले राष्ट्रपति चुने गए और ओटो ग्रोटेवोहल को सरकार बनाने का काम सौंपा गया. इस तरह दूसरे जर्मन देश "जर्मन जनवादी गणतंत्र" की स्थापना हुई.
27 मई 1952: जीडीआर द्वारा सीमा की नाकेबंदी
सन 1945 से ही दसियों हज़ार लोग पश्चिम की ओर भाग रहे थे. जीडीआर की तरफ़ से सीमा को अब और भी मज़बूत तरीक़े से बंद कर दिया गया. वास्तव में सीमा पूरी तरह से बंद ही कर दी गई. पांच किलोमीटर की दूरी तक बने वर्जित क्षेत्र में से "अविश्वसनीय" माने जा रहे निवासियों को "एक्शन कीड़ा-मकोड़ा" के तहत ज़बरदस्ती दूसरे स्थानों में रहने के लिए मजबूर किया गया. केवल बर्लिन के दोनों हिस्सों के बीच खुले आम आना-जाना संभव था.
17 जून 1953: जीडीआर में विद्रोह
जुलूस में हिस्सा लेने वालों का टैंकों से सामना किया गया: पूर्वी बर्लिन में काम करने की नीति में सख़्ती के कारण उल्ब्रिष्त शासन के ख़िलाफ़ लगभग 5 से 10 लाख के बीच लोगों ने 400 अलग अलग स्थलों पर विरोध किया. अंत में यह आंदोलन पुलिस और सोवियत सेना के बल पर कुचला गया. ज़ीडीआर सरकार के अनुसार 29 लोगों की, लेकिन पश्चिमी अनुमान के अनुसार लगभग 500 की मौत हुई. अब तक 55 लोगों की मौत के सबूत मिले हैं.
4 जुलाई 1954: बर्न का चमत्कार
जर्मनी फ़ुटबॉल का विश्व चैंपियन बना! 1954 में विश्व चैंपियनशिप के फ़ाइनल मैच में जर्मनी की हंगरी पर 3:2 की सनसनीख़ेज़ जीत के बाद कोच सैप हरबर्गर, टीम के कप्तान फ़्रीट्ज़ वाल्टर और होर्स्ट एकेल को मैदान में कंधों पर बैठा कर घुमाया गया. इस जीत से जर्मनी के दोनों हिस्सों में ख़ुशी का समां छा गया. युद्ध ख़त्म होने के नौ साल बाद जैसे एक पूरी क़ौम को युद्ध के बाद की उदासी से छुटकारा मिल गया हो.
23 अक्तूबर 1954: नाटो में जर्मन संघीय गणराज्य
23 अक्तूबर 1954 को पश्चिम रक्षा संधि के सदस्यों पश्चिम जर्मनी और इटली के बीच पेरिस समझौते पर हस्ताक्षर हुए. इस समझौते से रक्षा के लिए जर्मनी के योगदान के बारे में आपस में चल रही तनातनी का अंत हुआ. पश्चिमी जर्मनी नाटो का सदस्य बना और इस प्रकार अपनी स्वाधीनता की ओर एक क़दम आगे बढ़ा, हालांकि दो साल पहले जर्मन समझौते द्वारा अधिकृत शासन ख़त्म कर दिया गया था.
25 मार्च 1957: एक नया यूरोप
फ़्रांस, जर्मनी, इटली, बेल्जियम, नीदरलैंड और लक्ज़मबर्ग - इन छह संस्थापक देशों की सरकारों ने रोम समझौतों पर हस्ताक्षर किए. इसे यूरोपीय संघ के जन्म और यूरोपीय एकीकरण की अनोखी कामयाबी की कहानी समझा जाता है.
13 अगस्त 1961: बर्लिन दीवार का बनना
जीडीआर के लिए पश्चिम बर्लिन की खुली सीमा दुर्योधन की जांघ बनती जा रही थी. जुलाई में लगभग 30,000 तो अगस्त में 40,000 लोग जीडीआर छोड़कर भागे. 12 से 13 अगस्त की रात बर्लिन के दोनों हिस्सों के बीच खुले मार्ग बंद कर दिए गए. दिन भर मज़दूरों ने पूर्वी और पश्चिमी बर्लिन के बीच बाड़े लगाए. जीडीआर ने अपनी आबादी को देश के अंदर क़ैद कर लिया.
22 अगस्त 1961: बर्लिन दीवार पर पहला बलिदान
इडा सीकमान्न बर्लिन दीवार पर पहली शहीद थी. दीवार बनने के नौ दिन बाद 59 वर्षीय महिला बरनाउ स्ट्रासे 48 की तीसरी मंजिल से पश्चिम बर्लिन की ओर पटरी पर कूदी. कूदने से पहले उन्होंने पटरी पर नरम रज़ाई फेंकी पर फिर भी उनकी जान नहीं बच पाई और चोट से उनकी मृत्यु हो गई. आज पटरी की उस जगह पर उनकी याद में स्मारक तख़्ता लगा है.
26 जून 1963: बर्लिन में कैनेडी
किसी भी अन्य सरकारी यात्रा ने दो भागों में बंटे शहर को इतना उत्साहित नहीं किया जितना कि अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ़ कैनेडी की यात्रा ने. लाखों लोगों के सामने कैनेडी ने अपना प्रसिद्ध भाषण दिया जिसमें उन्होंने दीवारों के ज़रिए चारों ओर से बंद बर्लिन को पश्चिमी दुनिया की स्वतंत्रता का प्रतीक बताया. "समस्त स्वतंत्र लोग, चाहे जहां भी वे रह रहे हो, वे बर्लिन के नागरिक हैं, और इसलिए स्वतंत्र मनुष्य होने के नाते मुझे यह कहने में गर्व है कि मैं एक बर्लिनवासी हूं. जर्मन भाषा में उन्होंने कहा, "ईश बिन आइन बर्लिनर"!
21 अक्तूबर 1969: विली ब्रांट नये चांसलर
चुनाव के बाद सोशल डेमोक्रेटिक और लिबरल पार्टी के मोर्चे को बारह वोटों का बहुमत मिला. 20 सालों की सीडीयू सरकार के बाद जर्मनी की सरकार में परिवर्तन आया. विली ब्रांट एसपीडी की ओर से पहले चांसलर बनें. "अधिक लोकतंत्र के साहस" के नारे के साथ उन्होंने सामाजिक, शिक्षा और वैधानिक नीतियों को आधुनिक बनाने का वादा किया. विदेशी नीति के क्षेत्र में ब्रांट ने "नई पूर्वी नीति" के साथ वैचारिक खाइयों को पाटने की कोशिश की.
7 दिसम्बर 1970: वारसा में घुटने टेक कर श्रद्धांजलि
यहूदियों के स्मारक स्थल पर ब्रांट ने अचानक घुटना टेक कर कुछ सेकेंड प्रार्थना की. उसी दिन उन्होंने वारसा संधि पर हस्ताक्षर किए और युद्ध के बाद पोलैंड के अधिकार में आए जर्मन क्षेत्रों पर दावा त्याग दिया. जर्मनी की आन्तरिक राजनीति में यह घुटना टेकना और समझौता अत्यंत विवादास्पद रहे. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दोनों घटनाओं के लिए जर्मनी की सराहना की गई. 1971 में विली ब्रांट को उनकी पूर्वी नीति के लिए नोबेल शांति पुरस्कार मिला.
22 जून 1974: पश्चिम जर्मनी – जीडीआर 0:1
बेकनबावर, म्युलर और उनके साथियों को करारी चपत. जर्मनी में हो रहे 1974 के फ़ुटबॉल विश्व चैंपियनशिप में दो जर्मन टीमों के बीच पहला मुक़ाबला. पूर्वी जर्मनी के खिलाड़ी युर्गेन स्पारवासर के गोल से जीडीआर की 1:0 की जीत. फिर भी नीदरलैंड को 2:1 गोल से हरा कर पश्चिम जर्मनी विश्व चैंपियन.
12 जून 1987: रीगन का बर्लिन में भाषण
अमेरिका के राष्ट्रपति रोनल्ड रीगन केनेडी की तरह एक महत्वपूर्ण भाषण देने के लिए बर्लिन पहुंचे. ब्रांडेनबुर्ग गेट पर बर्लिन दीवार के ठीक सामने रीगन ने कहा, "मिस्टर गोर्बाचोव, आइए इस गेट पर! खोल दीजिए इस गेट को! मिस्टर गोरबाचोव, तोड़ दीजिए इस दीवार को!" गोरबाचोव नहीं आए. फ़िर भी दीवार जल्द ही इतिहास का एक पन्ना बन कर रह गई.
8 मार्च 1989: आख़िरी मौत
गैस के ग़ुब्बारे के साथ सनसनीखेज़ ढंग से बर्लिन दीवार पार करने की कोशिश में 32 वर्षीय विनफ़्रिड फ़्रोयडनबर्ग की जान गई. उनकी मौत इस दीवार पर अंतिम क़ुर्बानी थी. लगभग एक महीना पहले बर्लिन-त्रेप्तो में जीडीआर के सैनिकों ने सीमा पार करने की कोशिश के दौरान क्रिस गेफ़रॉय को गोली से मार दिया था. दीवार पर मारे गए लोगों की संख्या विवादास्पद है. सन 1945 से इस सीमा पर लगभग 1,000 लोगों की अवश्य मौत हुई होगी.
2 मई 1989: लोहे का परदा खुला
लोहे का परदा गिर गया. ऑस्ट्रिया के विदेश मंत्री आलोयस मौक और हंगरी के विदेश मंत्री ग्यूला होर्न ने प्रतीकात्मक ढंग से सीमा पर कांटे का तार तोड़ा. यह तस्वीर विश्व भर में देखने को मिली. जीडीआर के हज़ारों लोग अब खुले बार्डर से भाग निकले जिससे पूर्वी यूरोप के डगमगाते कम्युनिस्ट प्रणाली पर दबाव बेहद बढ़ गया.
30 सितम्बर 1989: असंतोष जनता की भीड़
प्राग शहर में पश्चिमी जर्मनी के दूतावास में जीडीआर के 4,000 लोगों ने अपना डेरा जमा लिया. दीवार फांद कर आने वालों की संख्या बढ़ती गई. 30 सितंबर को पश्चिम जर्मनी के विदेश मंत्री हांस-डीटरिष गेन्शर ने ख़ुशी के बीच ऐलान किया कि जीडीआर सरकार ने इन लोगों को देश छोड़ कर बाहर जाने की इजाज़त दे दी है. अन्य दूतावासों में भी डेरा लगना आरम्भ हो गया. स्थिति को क़ाबू में रखना कठिन हो गया. जीडीआर का अंत नज़र आने लगा.
7 अक्तूबर 1989 - जीडीआर की 40वी जयंती: आला मेहमान की चेतावनी
एक ओर जुलूसों और देश से बाहर भागने वालों की संख्या बढ़ती जा रही थी, तो दूसरी ओर समाजवादी एकता पार्टी ने सैनिक परेड के साथ धूमधाम से जीडीआर की 40वीं जयंती मनाई. लेकिन विरोध प्रदर्शन भी जारी रहे. सुरक्षा बलों ने सख़्ती के साथ उन्हें दबाने की कोशिश की. 1,000 लोग गिरफ़्तार हुए. मुख्य मेहमान मिखाइल गोर्बाचोव ने जीडीआर के नेतृत्व को चेतावनी देते हुए कहा, "देर से आने वाले को ज़िंदगी सज़ा देती है".
9 नवंबर 1989: बर्लिन दीवार खुल गई
पोलित ब्यूरो के सदस्य गूंटर शाबोस्की ने शाम को हो रहे पत्रकार सम्मेलन में यह ख़बर पढ़ी कि अब से हर कोई बिना वीज़ा के तुरंत ही देश से बाहर जा सकता है. जब बाहर जाने वालों की भीड़ बढ़ती गई, तो शुरू में कुछ झिझक के बाद दीवार पूरी तरह से खोल दी गई. पश्चिमी बर्लिन के मेयर वाल्टर मोम्बर ने अगले दिन ख़ुशी से कहा, "हम जर्मन अब दुनिया के सबसे ख़ुश लोग हैं".
रिपोर्टः सचिन गौड़